Wednesday, February 4, 2009

चालूराम की मुकिल

चालूराम बहुत परेशान हैं। वो उस दिन को कोस रहे हैं जिस दिन उन्होंने पार्टी ज्वाइन कर ली थी। चालूराम सोच रहे हैं कि काश किसी दल विशेष में न घुसा होता तो कुबेर बाबा उसके अकाउंट में घुस गए होते। चालूराम कहीं भी जाते हैं, लेकिन चेहरे पर बारह बजा रहता है। एक दिन उनका एक साथी पूछ बैठा- क्या बात है चालूराम मैं कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम ऐसी रोनी सूरत लेकर आते हो जसे मनमोहन सिंह सरकार गिरने की प्रबल आशंकाओं से दुखी रहते हैं। बताओ क्या बात है? चालूराम का मित्र थोड़ा उसके करीब था।

मित्र के बार-बार पूछने से वो टूट गया और अपनी व्यथा सुनाने लगा- यार अच्छा भला मैं चुनाव अपने दम पर जीत सकता था, लेकिन न जाने क्या सूझी कि पार्टी के बैनर तले कूद गया। मित्र ने पूछा तो इसमें परेशानी की क्या बात है, अच्छा ही तो है। मित्र की बात सुनते ही चालूराम बिफर गए, बोले- क्या खाक अच्छा किया, अगर मुङो पता होता कि इस बार लेफ्ट वाले गीदड़भभकी नहीं देकर बल्कि सरकार को लंगड़ी मारने का काम करेंगे तो कब का पार्टी को नमस्ते कर दिया होता। निर्दलीय होता तो मेरी भी बोली लगती, पचासएक करोड़ तो कहीं नहीं गए थे। एक झटके में जिंदगी भर का काम हो जाता। फिर न सीबीआई बैठती न कोई जांच, इससे सुरक्षित डील तो कुछ होती नहीं, ,सरकार खुद पैसे देकर जांच तो बिठाती नहीं।

पूरा पैसा नंबर एक का होता। कोई बेईमानी नहीं। जनता भी कुछ नहीं कहती, बल्कि एहसान जो होता वो अलग। चालूराम का मित्र थोड़ा हैरान होकर बोला- तो इसलिए तुम परेशान हो? खर दल बदलने की तो तुम लोगों की पुरानी आदत है सुना है इस समय दूसरे दल वाले अपनी पार्टी में मिलाने के लिए भी मुंह भर कर पैसा दे रहे हैं, घुस जाओ कहीं और। चालूराम सोचने लगा- नहीं भाई कहीं हमारे दल का नेता प्रधानमंत्री बन गया तो फिर मेरी खर नहीं, पता नहीं कैसे दिन देखने पड़ जाएं। चालूराम दुखी मन से बोले- दोस्त इतना मोटा पैसा हाथ से जाने का दुख मैं ही समझ सकता हूं। इतना कहकर उन्होंने सीने पर हाथ रख लिया। उनके मित्र ने ढांढस बंधाते हुए कहा- तो तुम एक काम करो पैसे अंदर कर लो और कह कह दो कि मैं हूं तो पार्टी का बंदा, लेकिन डील देश के हित में है इसलिए यूपीए को समर्थन देता हूं।

कई लोगों ने ऐसा किया भी है अब बीजेपी के बृजभूषण को ही देख लो, सैद्धांतिक रूप से पार्टी के साथ और व्यावहारिक रूप से यूपीए का हाथ पकड़ा। कौन जानता है सच्चाई? और कोई जानेगा भी नहीं। चालूराम दोस्त की बात सुनते ही मुस्कुराते हुए किसी को फोन करने में जुट गया।

धर्मेद्र केशरी

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