Wednesday, February 4, 2009

कब मिलेगा शुभ समाचार?

पाकिस्तान के नए-नवेले राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उम्मीद जताई है कि कश्मीर पर जल्दी ही कोई शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है। आखिर कब तक? जब भी वहां कोई नया राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री चुना जाता है, वह कश्मीर पर शुभ समाचार सुनाने की बात तो ऐसे करता है, जसे दाई बच्चा पैदा होने की खबर सुनाती है। पाकिस्तान को कोई नेता शायद इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहता है। पूर्व राष्ट्रपति मियां परवेज मुशर्रफ भी भारत कई मुद्दों पर बात करने आए थे।

पहले तो यहां की खातिरदारी का जमकर लुत्फ उठाया, लेकिन जब कश्मीर की बात आई तो भाग खड़े हुए। बस, अपनी बेगम से बोले- बेगम बैग पैक करो हमें तुरंत निकलना है। पलटकर कोई जवाब भी नहीं दिया। बेचारे बाजपेयी साहब यही सोचते रह गए कि आखिर मुर्शरफ साहब को अचानक हो क्या गया, जो पिछवाड़े पर पेट्रोल लगे घोड़े की तरह भाग खड़े हुए। यहां पर लोग अटल जी के बारे में तरह-तरह की बातें करते रहे। बेगम सहबा भी साथ आई थीं, आज तक यह राज ही है कि मुशर्रफ मियां अचानक भागे क्यों? शायद मुशर्रफ साहब ने सपने में कश्मीर का कोई भूत देखा था, जो सिर पर पैर रखकर भाग खेड़े हुए। भारत में थे तो पैदाइशी हवेली और दिल्ली का गान गाया, इस्लामाबाद पहुंचते ही सुर बदल लिए।

मियां 9 साल तक पाकिस्तान के सव्रेसर्वा रहे, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर ऐसी चुप्पी साधी, जसे हमारे नेताओं को बम ब्लास्ट या आतंकी घटनाओं के बाद खामोशी घेर लेती है। मियां मुशर्रफ क्या पाकिस्तान का कोई भी शासक कश्मीर के मुद्दे पर बोलने से रहा। कोई क्यों भला सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हाथ से जाने देगा। अब जरदारी साहब ने इस आग में हाथ डालने की बात कही है। उनका कहना है कि मंत्रिमंडल से मशवरे के बाद वो कोई ठोस हल निकालेंगे। जो मियां मुशर्रफ नहीं कर पाए, वो जरदारी साहब करेंगे। भारत आएंगे, घूमेंगे, टहलेंगे, दो-चार बात करेंगे और वापस लौट जाएंगे। दशकों से यही तो होता आ रहा है। भारत सैर करने का मन हुआ, कश्मीर का झोला लेकर चले आए, लेकिन झोले से निकाला कुछ भी नहीं। उन्हें पता है कि जब उनके ‘चच्चाज् इस मामले में इंट्रेस्ट ले रहे हैं तो आसानी से हल कैसे निकाल लेंगे, फिर पाकिस्तान में लोकतंत्र होता तो शायद कोई हल निकल भी जाता, मनमानी तंत्र में तो किसी की नहीं चलने वाली।

जरदारी साहब हमारे देश की जनता और नेताओं ने बर्दाश्त, संयम की घुट्टी पी है। आइए आप भी आइए। हल चलाकर शुभ समाचार की घास ही पैदा कर दीजिए, फसल की उम्मीद भी कर लेंगे। पर आप भी मुशर्रफ की तरह ही ‘मतलबी यार किसके, खाए-पिए खिसकेज् कह कर मत निकल लीजिएगा।
धर्मेद्र केशरी

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