Wednesday, February 4, 2009

राम के नाम पर

भगवान की याद बंदे को तभी आती है जब वो मुश्किल दौर में हो। फंसा-फुसा हो या दूर-दूर तक बस फंसने की उम्मीद ही बाकी बची हो। ऐसे में नास्तिक भी मंदिरों या धार्मिक स्थलों की ओर रूख करता है। क्या पता भगवान की कृपा उस पर हो ही जाए। दो लोगों को भगवान की बहुत याद आती है। एक उन छात्रों को, जो परीक्षा के समय भगवान भरोसे ही रहते हैं दूसरा नेताओं को। नेताओं में कमल वाले तो भगवान के मुरीद हैं। मौका देखते ही चौका मार देते हैं। कमल का फूल लेकर भगवान राम को अर्पित करने को हमेशा तैयार।

छात्र तो फिर भी ठीक हैं, पास होने के बाद कम से कम भगवान की ड्योढ़ी पर माथा झुकाकर आशीर्वाद तो लेने आते हैं। भले ही वो हमेशा मंदिर न आएं, लेकिन भगवान को दिल से याद करते हैं। इन्हें कौन कहे? पहले तो राम का नाम लेकर खूब हो-हल्ला मचाया। कहा ये हमारे हिंदुत्व का एक्जाम है। भगवान हमारी मद्द करेंगे। देश में ऐसी आपाधापी मचा दी कि लगा कि लोग समङों यही सच्चे भक्त हैं बाकी सब ढोंगी, लेकिन सत्ता पर काबिज होते ही भगवान को भूल गए। हवाला दिया सिद्धांत और व्यावहारिक समझ का। कहां गई थी वो समझ, जिसने लोगों को नासमझ बना रखा था। परीक्षा में पास तो हुए, लेकिन महज अपनी स्वार्थ सिद्धि से प्रेरित होकर। उनके लिए भगवान तो कभी थे ही नहीं। कुर्सी असली भगवान।

हां, लोगों को भक्तिभावना में अंधा कर अपना उल्लू सीधा किया। वकत बीता, पंजे की जकड़ में कमल मुरझा गया। अब एक बार फिर बिल्ली की भाग्य से छींका टूटा है। महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ रखी है। अब ये दोबारा जनता के कमर दर्द को दूर करने के लिए आयोडेक्स लेकर घूम रहे हैं। मुरझाए कमल के फूल पर पानी का छींटा डालकर, जबरदस्ती इत्र-फुलेल घुसाकर बांटना शुरू कर दिया है। इसमें सुगन्ध तो नहीं राजनीति की बू जरूर याद आ रही है। कुर्सी का अदृश्य दीदार होते ही भगवान राम की सुध हो आईहै।

मंदिर की याद ताजा हो गई है इसलिए पुराने बने मंदिरों में प्रार्थना करने के बजाय फिर से नया मंदिर बनवाने का शिगूफा छेड़ रखा है। शंकर जी को भी आधार बनाने की पूरी तैयारी है। इस बार राम जी के साथ भोलेनाथ भी नहीं बचने के। नेताओं के चहेते संत-महात्मा प्रवचन की तैयारियां कर रहे हैं। प्रवचन की ऐसी पटकथा तैयार हो रही है ताकि भक्त के साथ भगवान भी लपेटे में आ जाएं। देखो, कितना लपेट पाते हैं। फंसे को फिर फंसाएंगे या फंसा बचकर निकल जाएगा। इन्हें तो अब राम का सहारा है।
धर्मेद्र केशरी

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