Tuesday, November 12, 2019

शेर के कुटुंब पर 'हिजड़ों' की निगाह!


एक राष्ट्र था। उस राष्ट्र के महा नामक जंगल में एक शेर सपरिवार रहा करता था। शेर जंगल के गीदड़ और सियारों को कभी पास भी नहीं फटकने देता था। गीदड़ और सियार शेर को मार गिराने की साजिश रचते थे। कई बार गीदड़ों ने शेर को परेशान करने की कोशिश की थी, पर शेर तो शेर ठहरा। उसकी एक गुर्राहट में गीदड़ भाग खड़े होते थे।

उस शेर की खास बात ये थी कि वो कभी राजा नहीं बनता था, पर जंगल की सैद्धांतिक रखवाली का जिम्मा उस पर ही था। वो अपने बदले किसी और को राजा बनाता और दूर बैठकर निश्चिंत होकर पूरे जंगल का ख्याल रखता था। एक बार गीदड़-सियारों के साथ कुछ और जंगली जानवरों ने मिलकर  शेर को बांधने की कोशिश की। शेर बूढ़ा जरूर था, पर साफ बोला कि चाहे जो कुछ हो जाए वो 'हिजड़ों' की मदद नहीं लेगा। शेर उन गीदड़ और सियारों को 'हिजड़े' की संज्ञा देता था। शेर को जंगल का राजा न बनवा पाना मंजूर था, पर सिद्धांतों से समझौता कतई मंजूर नहीं था। धीरे-धीरे शेर बूढ़ा होने लगा और उसके बच्चे  जंगल की राजनीति पर ध्यान देने लगे।

बूढ़े होते शेर ने एक गलती की थी कि वो आखिरी क्षणों में पुत्रमोह में फंस गया और उसने अपने सही दावेदार की जगह अपने बच्चे को जंगल की रक्षा का जिम्मा सौंप गया। उसका नतीजा ये निकला कि शेर का शक्तिशाली परिवार दो भागों में बंट गया। एक दिन शेर दुनिया छोड़कर चला गया और उसके बच्चे ने जंगल संभाला। वक्त बीता और शेर के बच्चे ने ठीक अपने पापा शेर की तरह अपने बच्चे को विरासत देने में जुट गया। यानी शेर का बच्चा काबिलियत को किनारे कर पुत्रमोह में फंस गया।

बहरहाल नवजात बच्चे मे वो बात नहीं थी, पर शेर का पोता था इसलिए जंगल के अन्य जानवरों ने उसे हाथों हाथ लिया और अपना प्यार-दुलार दिया। शेर का बेटा और पोता बाघ के साथ मिलकर जंगल की रखवाली कर रहे थे। गीदड़ और सियारों की टोली उनकी एकता के आगे हुआं हुआं करने के सिवा कुछ न कर सकी। शेर और बाघ की सोच एक थी इसलिए कई बार विवाद होने के बावजूद दोनों एक हो जाया करते थे। जंगल में फिर चुनाव हुए शेर का बच्चा और बाघ साथ मिलकर चुनाव लड़े और जीत गए, पर इस बार मामला गड़बड़ हो गया।

शेर का बच्चा अपने अनुभवहीन नवजात बच्चे के सिर पर ताज पहनाने को अड़ गया। बाघ ने खूब मनाया पर वो नही माना, अन्य जानवरों ने भी मनाने की कोशिश की, पर शेर का बच्चा टस से मस नहीं हुआ। आखिरकार बाघ ने अपने पैर पीछे खींच लिए। शेर का बच्चा पुत्रमोह में इस कदर अंधा हो गया कि उसने गीदड़ और सियारों के सामने गठबंधन  के लिए हाथ जोड़ लिए। अपने पिता शेर की वो बात भी भूल गए जिसमें उसने गीदड़-सियारों को हिजड़ा कहा था। एक वरिष्ठ हंस ने शेर के बच्चे और पोते को फिलहाल 'हिजड़ा' होने से बचा लिया, पर ऐसा कब तक हो पाएगा। जिस जंंगल में शेर और बाघ के बीच आपसी प्यार था अब वहां राजनीति होने लगी है और गीदड़ व सियार इसका फायदा उठाने के लिए बेकरार हैं

नोट- इसका किसी राजनीतिक पार्टी और स्थान से कोई संबंध नहीं है।

धर्मेंद्र केशरी

Wednesday, November 6, 2019

पॉल्यूशन का सॉल्यूशन, राम भरोसे देश में 'गधे' सरकार भरोसे बैठे हैं!


5-11-19
ये दिल्ली है मेरी जान जहां निकल जाते हैं बड़े बड़ों के प्राण। क्या रखा है गुजरात राजस्थान में। कुछ दिन तो गुजारिए दिल्ली के प्रदूषण स्थान पे। सिगरेट पीने वालों के लिए तो ये पॉल्यूशन टाइम एंजॉय करने के दिन होते हैं। धुंआ अनुलोम विलोम किए बिना ही लंग्स की आत्मा कपाल भाति कर रही होती है। हां, स्मॉग की तरह भगवान पानी में शराब मिलाकर बरसा दें तो मामला और भी जबरदस्त हो जाए।
एक बात तो है दिल्ली स्मॉग में दिखनी भले ही बंद हो जाए पर सर जी फिर भी कहते मिलेंगे, नई जी, हमने प्रदूषण कम कर दिया है। वो पंजाब हरियाणा वालों का दिल है कि मानता नहीं। सर जी ने हमेशा की तरह टोप्पी पड़ोसियों के सिर पर तरफ सरका दी है जी और पड़ोसी भी क्या करें। कौन सा धुंआ उनकी ओर रहना है फिलहाल आज तो उनके सिर पर से धुंआ टला,कल की कल देखी जाएगी। दिल्ली वाले इसके आसपास वाले मर भी जाएं तो कौन सा दिल्ली की जनसंख्या कम हो जाएगी। गांवों से और भी शहीद भगत सिंह दिल्ली आने को तैयार बैठे हैं।
कमाल है. प्रदूषण न हुआ हौव्वा हो गया। अरे महाने दो महीने में थोड़ी बहुत ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुंच ही जाएगी। राम भरोसे देश में गधे सरकार भरोसे बैठे हैं। गधों का का काम होता है सिर्फ बोझ ढोना। साफ ऑक्सीजन, पानी, खाना, जिंदगी की मांग गधे नहीं करते। बस चुपचाप सब कुछ सहते हुए लादी ढोते रहते हैं। क्या हुआ दिल्ली देश की राजधानी है।
 क्या हुआ जो महान देशभक्त सरकार बीच में और और आम आदमी वाली किनारे बैठी है। जब वोट लेना होगा तो उनका काढ़ा तैयार है। जिसे पीकर हम आप मदमस्त हो ही जाते हैं। अरे हां जनता सुनो एक काम करते हैं सरकारें, कोर्ट तो राय बहादुरी दिखाती रहेंगी। दीवाली वाले पटाखे बचें हों तो चलो फोड़ते हैं। नहीं तो खरीद लाएंगे। चलो प्रदूषण वाला सुसाइड करते हैं। मरना तो है ही थोड़ा जल्दी सही, तड़प-तड़प कर। नहीं तो गुलाम वाला गाना गुलामों की तरह गाते हैं, क्या करें क्या न करें, ये कैसी मुश्किल हाय, कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई। माई डियर जनता और डियरेस्ट सरकार,आदतें बदल लो, नहीं तो राम नाम तो सत्य होना तय है।
धर्मेंद्र केशरी

जो गीदड़ को शेर बना दे, वो यूपी पुलिस!



30-06-2008
धर्मेंद्र केशरी
एक बार राज्यों के पुलिस दल के बल को आजमाने का निर्णय आलाअधिकारियों ने लिया, सभी राज्यों की पुलिस को एक जगह इकट्ठा किया गया, सभी को एक काम सौंपा गया, काम ये कि जंगल से एक जिन्दा शेर पकड़ कर लाएगा उस राज्य की पुलिस को श्रेष्ठ पुलिस का एवार्ड दिया जाएगा सभी राज्यों की पुलिस अलग-ंअलग दिशा में शेर को पकड़ने निकली अब शेर पकड़ना कोई दाल भात तो है नहीं नहीं कि गप से मुंह में भर लिया, लगभग सभी राज्यों की पुलिस खाली हाथ लौट आई, लेकिन कोई जिंदा शेर नहीं पकड़ पाया, केवल यूपी की पुलिस वापस नहीं लौटी, अधिकारियों ने सोचा कि यूपी की टीम अभी जंगलों में ही है शायद जिंदा शेर पकड़ने का कारनामा उसी के खाते में दर्ज हो जाए
दो दिन बीत गए। सभी टीमें हारकर आ गईं, लेकिन यूपी पुलिस अब भी नहीं आई अधिकारियों को चिंता हुई कि आखिर यूपी की पुलिस कहां रह गई कोई बात-वात तो नहीं हो गई, किसी अनिष्ट की आशंका के बारे में सोचते ही आलाअधिकारियों ने जंगल की ओर कूच किया जंगल में दूर तक निकल जाने के बाद एक जगह से धुंआ उठता दिखाई दिया नजारा कुछ यूं था,दरअसल, वहां यूपी पुलिस ठहरी हुई थी, पुलिस ने एक गीदड़ को पकड़ रखा था और उसपर जमकर थर्डडिग्री आजमाइश हो रही थी।  पुलिस गीदड़ पर जमकर डण्डे बरसाए जा रही थी और बार-ंउबार दोहरा रही थी कि बोल कि तू शेर है, बेचारा गीदड़ मार खाता जाता और गिड़गिड़ाता नहीं साब मैं गीदड़ हूं, शेर नहीं
पुलिस का गुस्सा सातवें आसमान परतू ऐसे नहीं मानेगाएक बंदे ने आदेश दिया भरो इसके पिछवाड़े में लाल मिर्ची खुद ब खुद कहेगा कि ये शेर हैभयंकर यातना के बाद आखिरकार गीदड़ का साहस जवाब दे गयाउसने यूपी पूलिस के आगे हार मान ली और धीरे से कहा, हां हूजूर मैं ही शेर हूंपुलिस ने कहा ऐसे नहीं अकड़ कर बोल कि तू शेर है, गीदड़ ने कराहते हुए कहा साब मैं ही शेर हूं पुलिस ने कहा शेर की तरह गरज कर बोल कि तू शेर है। डरा सहमा गीदड़ और मार खाने के डर से चिल्लाकर बोला कि मैं शेर हूं
अब तनकर, अकड.कर शेर की तरह चलके दिखा। मरता क्या न करता गीदड़ ने सीना चौड़ाकर चाल भरी, यूपी पुलिस ने नकेल कसी और कहा हां अब लग रहा है शेर और धमकी भरे लहजे में कहा सुन किसी से बताया तो अपना हश्र समझ लियो। तब से आलाअधिकारी वहां पहुंच गए यूपी पुलिस ने गीदड. से कहा बता तू कौन हैगीदड़ ने सहम कर यूपी पुलिस की तरेरती आंखों को देखा और बोला मैं ही शेर हूं फिर क्या था अधिकारियों ने यूपी पुलिस को इंडिया की सर्वश्रेष्ठ पुलिस का दर्जा दे दिया।
धर्मेंद्र केशरी

राम-कृष्ण के देश में, नाम बड़े और दर्शन छोटे



16-06-08
धर्मेंद्र केशरी
तेज आवाजें बार-बार गूंज रही थीं। कृष्णा पर है कत्ल का आरोप, कृष्णा है कातिल। मैंने सोचा अपने कृष्ण जी तो माखन-दूध चुराते थे , गोकुल में दूध-दही की छोटी मोटी चोरियां किया करते थे। कत्ल की कोई बात तो धर्मग्रंथों में नहीं है, हां कंस का वध जरूर किया था। कहीं मानवाधिकार उल्लंघन के चक्करों में तो नहीं उलझ गए। मुझसे रहा नहीं गया और आवाज की दिशा में घूम गया। देखा तो एक खबरिया चैनल से ये आवाजें आ रहीं थीं और चैनल में ख़बर पढ़ रहे सज्जन यही वाक्य बार-बार दोहरा रहे थे कृष्णा है कातिल वगैरह, वगैरह।
अब समझ में आया अपने किशन कन्हैया पर कत्ल का आरोप नहीं है बल्कि ये कलयुगी कृष्णा है। मेरा दिल मुझे ही धिक्कारने लगा कि ये बात पहले क्यों नहीं समझ में आर्इं। अगर भगवान कृष्ण को दुराचारी कंस के वध का आरोपी बनाया गया होता तो देश में बवाल मच जाता। इल्जाम संगीन था वो भी भगवान पर, जो उनके भक्तों सहित राजनेताओं को तो कत्तई हजम नहीं होती। जान में जान आई ये कलयुग वाले भाईसाहब हैं जिनका नाम भी कृष्णा ही है।
कलयुग में ही पहले कहा जाता था कि नाम का असर व्यक्तित्व पर भी होता है। इसलिए लोग अमूमन भगवान के नाम पर नामकरण कर देते थे कि शायद नाम का कुछ तो असर हो जाए। लेकिन अब मामला बिल्कुल उल्टा है। आदमी का जैसा नाम होता है होता है ठीक उसके विपरीत। हमारे पड़ोस में एक रामचंद्र नामक महाशय हैं। चौबीस घंटों में ऐसी कोई घड़ी नहीं बीतती होगी जब उनके मुखारबिंद से गालीवाणी न निकलती हो। नाम भर के रामचंद्र हैं मर्यादा तो बेचकर खा गए हैं।
उनसे बीवी-बच्चे ही नहीं उनके मां-बाप भी उबियाएं हैं। मां- बाप तो यहां तक कह देते हैं कि कम्बख्त का नाम रामचंद्र की बजाय रावणचंद्र रख देते तो इतना दुख तो नहीं होता। निगोड़ा भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहा है। हां एक बात में वो भगवान रामचंद्र की तरह हैं, बेचारी नौकरीपेशा बीवी, जिसके सहारे घर का खर्च चलता है, उसे शक के घेरे में रखकर गृहत्याग करा रखा है। खैर, इसमें भगवान का क्या दोष। कलयुग में ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने नाम के विपरीत अर्थ को सिद्ध करने पर तुले होते हैं। जैसे नाम है धर्मदास और हैं पक्के अधर्मी।
एक बार मैं थाने गया था। दरोगा जी का नाम देखा, ईमानदार सिंह। जब मैंने उनके बारे में जानना चाहा तो मालूम हुआ कि भाईसाहब ने मेरा विश्वास तोड़ा नहीं है बल्कि नाम के उल्टे स्वभाव के ही हैं। पूरे महकमें में चर्चा आम है कि ईमानदार साहब बिना रुपए डकारे कलम नहीं चलाते हैं। जो भी है संतोष इस बात की है कि अपने अराध्य श्रीकृष्ण जी पर कोई इल्जाम नहीं है।
धर्मेंद्र केशरी


अब भूतों के लिए जगह कहां?



3-6-2008
धर्मेंद्र केशरी
एक बार मेरे एक मित्र मेरे कमरे पर रात बिताने के लिए रूके। कमरा इसलिए कि एनसीआर में छोटे-मोटे लोग घरों में नहीं बल्कि तंग कमरों में ही रहते हैं। नींद नहीं आ रही थी तो बातों का सिलसिला चल पड़ा। मेरे दोस्त ने अचानक मुझसे सवाल किया- भूत प्रेतों में यकीन करते हो कि नहीं? मैंने कहा- बिलकुल करता हूं, जब इस धरा पर इंसान हैं, भगवान हैं तो शैतान भी ज़रूर ही होंगे। उन्हे न जाने क्या सूझा कि कहने लगे कभी सच्ची के भूत को देखा है? मैं ठहरा डरपोक इंसान, मैंने कहा-यार भूत, चुड़ैलों की बात न करो तो बेहतर है।
मैंने मना तो कर दिया फिर भी भूतों के बारे में जानने का इच्छुक भी था। वो समझ गया कि मैं उसकी भूतिया कहानी में इंट्रेस्ट ले रहा हूं। मेरे मित्र ने अपनी आपबीती सुनाई कि- गांव में एक दिन जब वो खेत को पार कर रहा था तो कुछ लोग सफेद कपड़ों में जाते दिखे। पहले तो उसने वहम समझा। जब कुछ आगे बढ़ा तो फिर वही लोग सामने से टकरा गए। किसी तरह मन पक्का करके वह आगे बढ़ा तो फिर वही लोग दिख गए। अब तो उसका धैर्य टूट गया और भागता हुआ घर पहुंच कर राहत की सांस ली।
उसने बताया कि असल में वो भूत थे। मैंने पूछा- जब तुमने भूत देखा था तो टाइम कितना हो रहा था। उसने बताया कि यही कोई रात के एक से दो बजे के बीच का समय रहा होगा। मैंने घड़ी पर निगाह डाली पूरे डेढ़ बज रहे थे। थोड़ी देर बाद मेरे मित्र को नींद आने लगी उसने कहा कि बत्ती बुझा दो। मैं डर रहा था मैंने कहा लाइट बंद कर दी तो नींद नहीं आएगी और क्या पता अंधेरे में कोई भूत-वूत आ गया तो? मेरा इतना कहना था कि वो हंसने लगा कहा- यार तुम भी कमाल की बात करते हो नोएडा में इंसानों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है भूत यहां कहां से आ जाएंगे?
नोएडा या दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जब इंसानों के लिए जगह नहीं तो भूत बेचारे कहां विचरण करेंगे। दोस्त तुम्हे भूतों से डरने की कोई ज़रूरत भी नहीं क्योंकि यही हाल अब लगभग पूरे देश का हो गया है और जिस स्पीड से जनसंख्या बढ़ रही है भूतों के आने का कोई चांस ही नहीं बनता है। दोस्त की बात में दम था। लेकिन मैं कोई रिस्क नहीं ले सका और लाइट बुझाकर सोने का साहस मुझमें नहीं आया।
धर्मेंद्र केशरी

आरक्षण की रेवड़ी पाने का फॉर्मूला



29-5-2008
धर्मेंद्र केशरी
मुद्दा गरमाया है। जिसे जिसे बहती गंगा में हाथ धोना हो जल्दी करें। राजस्थान के गुर्जर समुदाय से सबक लें और फटाफट आन्दोलन शुरू कर दें। यही सही मौका है सरकार से अपनी बात मनवाने का। कहें कि हमारी जाति पिछड़ी है और केवल आरक्षण ही हमारा उद्धार कर सकती है। उन लोगों के लिए तो बड़ा ही मुफीद समय है जो लोगों के रहनुमा बनकर अपना भविष्य सुधारने की मंशा रखते हैं। हिम्मत दिखाइए और बैंसला साहब की तरह जाति के उद्धार आन्दोलन के नायक बन जाइए।
बात मनवाने का तरीका बेहद आसान है। ट्रेन रोकिए, वाहनों को जलाइए, जगह-जगह तोड़ फोड़ तो बेहद जरूरी है। बस चक्काजाम ही कर दीजिए। न इधर का बंदा उधर जा सके और उधर का इधर आने का साहस दिखाए। सरकार का पुतला वुतला जलाइए, सभाएं कीजिए। व्यवसाय अपना भी बंद कर दूसरों को भी न करने दें। उत्पात तो ऐसा मचाइएगा कि दस-बीस भगवान के द्वार जरूर पहुंचें। जब तक कफर्यू ना लगे, बवाल, बवाल नहीं लगता है इसलिए हिंसा की हद तक हिंसा करना जरूरी है।
नाक में बिल्कुल दम करने की प्रतिज्ञा होनी चाहिए। फिर देखिए कौन ऐसा हिम्मती खादीधारी है जो आपकी बातों को नज़रअंदाज़ करने की हिराकत कर सके। सोचना सही है आपका। जातिवाद का मुद्दा ऐसा है, जब चाहेंगे कैश करवा लेंगे। और हां सरकार पर परफेक्ट दबाव बनाना है तो सरकार के विपक्षी दलों के महापुरूषों को पकड़ें। वो आग में घी डालने का काम तो करेंगे ही साथ ही साथ अपनी पापुलरिटी के लिए आप के साथ जरूर खड़े रहेंगे। वो अलग बात है कि आग लगाकर तमाशा देखने इनकी फितरत है। किसी भी चीज का अनुभव ज़रूरी है। राजस्थान के गुर्जर समुदाय पर फोकस करें कि आखिर किस बारीकी से ये अपनी बात मनवाने की कला को अपना रहें हैं।
प्रैक्टिकल करना तो अति आवश्यक है तो हूज़ूर आरक्षण की चाह को मन में मत दबाइए। इस गुबार को निकलने दीजिए। अगर आपको लगता हैकि आरक्षण ही सफलता की सीढ़ी है तो इस सीढ़ी पर चढ़िए, क्योंकि अब आपका विश्वास पढ़ाई लिखाई या प्रतिभा पर नहीं आरक्षण पर आ टिका है। महानुभावों, राजस्थान के गुर्जरों का बवाल देखो, उठो और आरक्षण की मांग करो। डरो नहीं कि सरकार कितनी जातियों को आरक्षण देगी। बस पक्का इरादा करके उतरो। सरकार को अगर आपमें जबरदस्त फायदा नज़र आया तो मिल सकता है आरक्षण। वैसे अगर अभी नहीं आन्दोलन छेड़ सकते तो चाहे जब छेड़ देना। इस देश की उपज हो अपनी मर्जी के मालिक भी। आरक्षण की रेवड़ी बंटेगी ज़रूर। बस लगे रहो।
धर्मेंद्र केशरी