Wednesday, November 6, 2019

पॉल्यूशन का सॉल्यूशन, राम भरोसे देश में 'गधे' सरकार भरोसे बैठे हैं!


5-11-19
ये दिल्ली है मेरी जान जहां निकल जाते हैं बड़े बड़ों के प्राण। क्या रखा है गुजरात राजस्थान में। कुछ दिन तो गुजारिए दिल्ली के प्रदूषण स्थान पे। सिगरेट पीने वालों के लिए तो ये पॉल्यूशन टाइम एंजॉय करने के दिन होते हैं। धुंआ अनुलोम विलोम किए बिना ही लंग्स की आत्मा कपाल भाति कर रही होती है। हां, स्मॉग की तरह भगवान पानी में शराब मिलाकर बरसा दें तो मामला और भी जबरदस्त हो जाए।
एक बात तो है दिल्ली स्मॉग में दिखनी भले ही बंद हो जाए पर सर जी फिर भी कहते मिलेंगे, नई जी, हमने प्रदूषण कम कर दिया है। वो पंजाब हरियाणा वालों का दिल है कि मानता नहीं। सर जी ने हमेशा की तरह टोप्पी पड़ोसियों के सिर पर तरफ सरका दी है जी और पड़ोसी भी क्या करें। कौन सा धुंआ उनकी ओर रहना है फिलहाल आज तो उनके सिर पर से धुंआ टला,कल की कल देखी जाएगी। दिल्ली वाले इसके आसपास वाले मर भी जाएं तो कौन सा दिल्ली की जनसंख्या कम हो जाएगी। गांवों से और भी शहीद भगत सिंह दिल्ली आने को तैयार बैठे हैं।
कमाल है. प्रदूषण न हुआ हौव्वा हो गया। अरे महाने दो महीने में थोड़ी बहुत ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुंच ही जाएगी। राम भरोसे देश में गधे सरकार भरोसे बैठे हैं। गधों का का काम होता है सिर्फ बोझ ढोना। साफ ऑक्सीजन, पानी, खाना, जिंदगी की मांग गधे नहीं करते। बस चुपचाप सब कुछ सहते हुए लादी ढोते रहते हैं। क्या हुआ दिल्ली देश की राजधानी है।
 क्या हुआ जो महान देशभक्त सरकार बीच में और और आम आदमी वाली किनारे बैठी है। जब वोट लेना होगा तो उनका काढ़ा तैयार है। जिसे पीकर हम आप मदमस्त हो ही जाते हैं। अरे हां जनता सुनो एक काम करते हैं सरकारें, कोर्ट तो राय बहादुरी दिखाती रहेंगी। दीवाली वाले पटाखे बचें हों तो चलो फोड़ते हैं। नहीं तो खरीद लाएंगे। चलो प्रदूषण वाला सुसाइड करते हैं। मरना तो है ही थोड़ा जल्दी सही, तड़प-तड़प कर। नहीं तो गुलाम वाला गाना गुलामों की तरह गाते हैं, क्या करें क्या न करें, ये कैसी मुश्किल हाय, कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई। माई डियर जनता और डियरेस्ट सरकार,आदतें बदल लो, नहीं तो राम नाम तो सत्य होना तय है।
धर्मेंद्र केशरी

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