Wednesday, April 29, 2009

लादेन का पुर्नजन्म

एकता कपूर के करिश्माई सास-बहू धारावाहिक भले ही बंद हो गए हों, लेकिन उन धारावाहिकों का असर चारों ओर देखने को मिल रहा है। आप soch रहे होंगे कि करिश्माई किस लिहाज से, तो भइया, जो कई बार मर कर फिर जिंदा हो जाए तो उसे करिश्माई ही तो कहा जाएगा ना। उनके किरदारों की खास बात ही यही होती है कि वो कई बार मर कर भी जिंदा हो जाते हैं और जीते जी मार भी दिए जाते हैं।

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भले ही इनके सीरियलों को बंद कराया जा चुका है, पर एकता की विचारधारा को वहां के लोगों ने चुरा लिया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को तो एकता का कांसेप्ट बहुत पसंद आया है। अमेरिका को लादेन चाहिए, इसलिए वो पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर रहा है। पाक पर दबाव भी बनाया जा रहा है कि लादेन पाकिस्तान में ही छिपा बैठा है और वहां के हुक्मरान उल्टा उसकी मदद कर रहे हैं। कई बार अमेरिका चच्चा ने लादेन का तगादा उनसे किया है, पर पाक भाई कोई जवाब ही नहीं दे पाता। अब जरदारी करें भी तो क्या, कूछ सूझ नहीं रहा था कि तभी उन्हें एकता कपूर के सीरियल की याद आ गई, जब मिहिर को अचानक मार दिया जाता है।

फिर क्या था, जरदारी साहब फट से बोल पड़े कि लादेन मर गया है। वैसे लादेन पहली बार नहीं मरा है। पिछले आठ साल में वो कई बार मरा और जिंदा हुआ। जब उसे खोजने के लिए अमेरिका ने चांप चढ़ाई, तब-तब ये बयान सुनने को मिला कि उसकी मौत हो चुकी है। ऐसा लगता है कि लादेन का पुर्नजन्म होता रहता है, क्योंकि जब-जब उसके मरने की बात होती है, तब-तब कोई न कोई वीडियो संदेश जारी हो जाता है और अमेरिका की घिग्घी बंध जाती है। हो सकता है कि ओसामा का भूत ऐसे वीडियो जारी करता हो और बाद में गायब हो जाता हो, पर परी किस्सों की मानें तो भूतों का अक्स दिखता ही नहीं है, फिर ये कौन है जो ओसामा बनकर लोगों को डरा रहा है।

हो सकता है मॉडर्न जमाना है, ओसामा का भूत भी हाइटेक हो। अबकी जरदारी साहब ने उसे मारने का प्रयास किया है, लेकिन लगता नहीं कि बिना सबूतों के अमेरिका उनकी बात मानेगा भी। खर, ड्रामा की पटकथा देखकर तो ऐसा ही लगता है कि एकता कपूर का आइडिया चुराया गया है। अभी तक तो एकता ही अपने किरदारों को अपनी मर्जी से मौत की नींद सुला सकती थीं और जब मन चाहे जिंदा कर देती थीं, पर अब पाक नेताओं के साथ जरदारी साहब ने भी एकता के कहानी की नकल करनी शुरू कर दी है।
धर्मेद्र केशरी

कौन बना पप्पू?

अभी मेरा वोट बचा हुआ है। बचा इसलिए है मतदान कुछ दिनों बाद है। टीवी पर विज्ञापन, रेडियो पर विज्ञापन, अखबार में विज्ञापन देख-देखकर इस बार ये तय कर ही लिया है कि वोट डाल कर रहूंगा। पप्पू नहीं बनना है, सिर्फ इसलिए। सोचा, सोच लूं कि किसे वोट देना है। सबसे पहले मेरे विचार में वो पार्टी आई, जो देश पर एक अरसे से राज कर रही है, महंगाई जिसकी करीबी रिश्तेदार है और इस पार्टी के बाद उसे भी यहां जयर आना है। अब तो व्यक्तिगत उसका राज भी नहीं कह सकते, क्योंकि उनके पीछे ‘दलाल पार्टियोंज् की लंबी कतार है, जो चुनाव के बाद सौदेबाजी करेंगे।

कभी इधर तो कभी उधर पाला बदलने के मूड में अभी से हैं। पेंडुलम की तरह लटक रहे हैं, जिधर फायदा दिखेगा, निकल लेंगे। फिर मेरा ख्याल भगवा पार्टी की ओर गया। उन्हें देखते ही पुरानी बात याद आ गई, हिंदू, राम, कंधार विमान अपहरण, संसद हमला और भी न जाने क्या-क्या। इस पार्टी का विचार आते अजीब-सा एहसास होने लगा। फिर मैंने सोचा हाथी की ही सवारी कर लेते हैं, लेकिन अब हाथी की सवार महंगी हो गई है। खासकर तब से जब से उसके दिमाग में हाथी राजा बनने का फितूर सवार हुआ। अपने बाड़े की अनदेखी कर वो पूरे हिस्से पर कब्जा चाहता है। मैंने भी ‘बहुधन समाज पार्टीज् से हाथ जोड़ लिए।

अब करूं तो क्या करूं। साइकिल पर बैठ नहीं सकता, तीर कमान से दूरी ही अच्छी, हंसिया हथौड़ा कब रुठे कब चाय पर बैठ जाएं, कोई भरोसा नहीं। खर, हमारे देश में इतनी पार्टियां हैं कि विकल्प हमेशा खुला ही रहता है। तीन दिन तक मैं सभी पार्टियों के बारे में देखता, सुनता और समझता रहा, लेकिन कोई भी ऐसी पार्टी नहीं लगी, जिससे अपना वोट दे दूं। सच बताऊं इनके कारनामे देखकर वोट देने का मन ही नहीं करता, क्योंकि ये हमें हमेशा पप्पू बनाते आए हैं। बड़ी उधेड़बुन में हूं, वोट नहीं देता फिर भी पप्पू, दे दूं तो पप्पू बनना तय है। तभी मुङो बेचार सिंह दिखाई पड़े। मुङो देखते ही मेरी परेशानी पूछ बैठे।

मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई तो चाचा बेचार सिंह ने कहा- बेटा आज तो सभी नता और पार्टियां भ्रष्ट हैं, हमें चुनना उसी को है, जो कम भ्रष्ट हो। मैं तो दशकों से आजमाता आ रहा हूं, कोई उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है, पर हिम्मत नहीं हारा हूं और आज भी इसी उम्मीद के साथ वोट देने जा रहा हूं कि शायद इन खद्दरधारियों का मन बदल जाए और ये जनता की वोट को सार्थक कर सकें। मैंने भी आखिरकार यही किया और फिलहाल तो पप्पू बनने से बच गया पर आगे..?
धर्मेद्र केशरी

Thursday, April 16, 2009

क्या-क्या sahenge लौहपुरुष

कुर्सी जो करवा दे, वो कम। इस उम्र में भी इतना कुछ ङोलना पड़ रहा है। एक साथ कितने बवाल ङोलेंगे, लौहपुरुष आडवाणी जी। सभाओं ने हैरान तो कर ही रखा है अब श्रोता और जनता भी परेशानी की वजह बन गए हैं। पता नहीं वोटिंग के दिन वोट देंगे या नहीं, लेकिन अपना ‘चप्पलाशीर्वादज् जरूर दे रहे हैं। एक रैली में उन्हें ये दिन देखना पड़ा जो उन्होंने भरी जवानी में कभी नहीं देखा होगा। खर, अब आडवाणी जी भले ही खिसिया रहे हों, लेकिन चुनावी मौसम में पक्का उसे माफ कर देंगे। जनता भी कम नहीं, उन्हें पता है कि पांच साल तक बंदा शक्ल नहीं दिखाने वाला, कोर-कसर अभी निकाल लो।

सारा कसूर बुश पर चले जूते का ही है। वही अपनी बिरादरी को उकसा रहा है। इराक में चले जूते ने इतनी आवाज की कि दुनिया भर के जूते-चप्पलों का स्वाभिमान जाग गया है। अब वो पैरों में ही नहीं पड़ना चाहते, सिर पर भी पड़ने को आतुर हैं। कभी पूंजीवादी जूते पड़ते थे, अभी भी पड़ रहे हैं, लेकिन कहते हैं ना कि हर किसी का दिन बदलता है। चुनावी मौसम में लोकतांत्रिक जूता पड़ रहा है और लोग खुशी-खुशी इसे खाने को तैयार भी हैं। वोट की खातिर जूता महात्म्य की पूजा होने लगी है। लौहपुरुष जी, वो चप्पल इस दुर्घटना का जिम्मेदार नहीं है, बल्कि बुश पर पड़ा जूता इन सब का अगुआ है।

प्रधानमंत्री बनने पर इन्हें छोड़िएगा नहीं। खर, बात अपने नेताजी के तकलीफ की हो रही है। इधर सोनिया गांधी उन पर कंधार बम फोड़ रही हैं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें बयान बहादुर करार देते हैं। राहुल और प्रियंका भी कम नहीं, जसे आडवाणी जी को ही निशाने पर ले लिया हो। बाबरी मस्जिद का अतीत भी उनका गला पकड़े हुए है। तल्खी का आलम तो ये है कि पी एम और पी एम इन वेटिंग की बोलचाल फिलहाल बच्चों की तरह बंद हो गई है। जिन्ना की समाधि से निकला भूत भी अभी उनके पीछे ही है और लगता नहीं कि हाल-फिलहाल पीछा भी छोड़ेगा।

वो भी सेाच रहें होंगे, कहां जिन्ना के चक्कर में फंस गए। था छत्तीस का आंकड़ा, मिसाल महानता की दे दी। एक अकेले नेता पर चारों ओर से गोले दागे जा रहे हैं। ऊपर से ये चप्पल कांड। लौहपुरुष होने का एक फायदा तो है, इसीलिए इतना बवाल भी ङोल पा रहे हैं आडवाणी जी। अब तो राम ही इनकी कुछ मदद कर सकते हैं, पर इस बार भगवान राम भी नाराज चल रहे हैं। वजह, राम का नाम बार-बार बदनाम जो हो रहा है।
धर्मेद्र केशरी

pappu पर भारी है

पहले के जमाने में ‘पप्पूज् और मुन्नाज बहुत देखने को मिलते थे। कहने का मतलब ये कि पहले ये नाम बहुत रखे जाते थे, लेकिन जबसे अमिताभ बच्चन ने पप्पू का नाम खराब किया है, बेचारा पप्पू तो पप्पू, मुन्ना के दिन भी खराब रहने लगे हैं। क्यों भई, पहले बिग बी ही ने तो कहा था ‘पप्पू पास हो गया फिर तो भइया ‘पप्पुओं की जान पर बन आई। लोग कहने लगे ‘पप्पू कांट डांस साला। अदालत भी पापपुओंज को ढील देने की फिराक में नहीं है।

अपने एक पप्पू भाई भी चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके थे, लेकिन कोर्ट का ऐसा डंडा पड़ा है कि उनसे कुछ कहते ही नहीं बन रहा है। पप्पू यादव को कोर्ट ने लाल बत्ती दिखा दी है अब वो चुनाव नहीं लड़ सकते। अब आप ही बताइए, पप्पू के साथ नाइंसाफी हुई कि नहीं। हत्यारोपी है तो क्या हुआ, जनता की सेवा तो कर ही सकता है। सेवा का नमूना बंदा दिखा ही चुका है।

अब ‘पप्पुओंज् की दुर्दशा न होती तो शायद ये ‘पप्पूज् भी बच जाता, लेकिन जब ‘पप्पू खुद ही अपनी दुर्दशा के जिम्मेदार हों तो कहा भी क्या जा सकता है। मुन्ना के साथ भी वही परेशानी है। वही, अपने मुन्नाभाई, जो पर्दे से निकलकर सियासत में आने की योजना बना रहे थे। कोर्ट ने उन्हें याद दिला दिया कि वो सजायाफ्ता कैदी हैं, जो एक संगीन जुर्म की सजा काट रहा है। कोर्ट की छड़ी संजय सह नहीं पा रहे हैं और अमर सिंह इस मौके को खोना नहीं चाहते हैं। वो संजय के कंधे पर बंदूक रखकर दाग रहे हैं और संजय हैं कि अमराघिन्नी में फंसते चले जा रहे हैं।

राजनीति के ‘राखी सावंत अमर सिंह मुन्ना भाई को लें-देन raajnitee का पाठ सिखा रहे हैं। वैसे आपको बता दें कि संजय को अमर सिंह ने नया काम भी दे दिया है। अगर आपको किसी के कारनामों को खुफिया कैमरे में कैद करवाना हो तो अपने ‘मुन्नाभाई से संपर्क किया जा सकता है। संजय दत्त सिर्फ केंद्रीय मंत्रियों का ही स्टिंग ऑपरेशन करते हैं, इसके अलावा वो छोटे-मोटे लोगों पर रिस्क नहीं लेंगे। सर्किट भी मुन्ना के कारनामे देख कर दंग है। वो तो यही सोच रहा है कि सारे ‘जुगाd तो वही मुन्ना भाई के लिए सेट करता आया है। अमर सिंह सर्किट की नौकरी खाने के मूड में हैं। जो भी हो, एक बात तो तय है कि चाहे कोई भी ‘मुन्नाज् और ‘पप्पूज् कितना भी जतन कर ले, अगर वो कानून की फाइलों में है तो कोर्ट ऐसे सभी ‘पप्पुओंज् और ‘मुन्नाओंज् पर भारी है।
धर्मेद्र केशरी