Sunday, October 25, 2020

#दिल की डायरी- पाती

पाती

वक्त तो अपनी रफ्तार से भाग रहा है, जैसे हमेशा भागता है...कल जब तुम्हारी उंगलियों को अपनी उंगलियों में पिरो रहा था...तब भी जानता था...वक्त भाग रहा है...वही मेट्रो, वही ऑटो और वही बिसलगढ़ी से पंचशील तक का सफर...जो पिछले एक महीने से कट रहा था...अब बदल गया है...

 

तब वापस लौटते वक्त याद होती थी अब बेचैनी...अजीब सा डर...फिर भी लौटता हूं इस उम्मीद में कि इन उंगलियों को जिन्हें मैंने अपनी उंगलियों में पिरो रखा है...उन्हें जन्म-जन्मांतर के बंधन में बदल दूंगा...ये हौसला पहली बार आया है कि तुम्हें खुद से जुदा नहीं देख सकता...जानता हूं कि सोचती हो मेरे बारे में...ये भी कह देना चाहता हूं...जान लोगी क्या मेरी...एकाध फोन करके सांसें भर दिया करो...

 

तुम्हारी आंखों को देखता हूं...छलक रहा होता है...दुनिया जिसे प्यार कहती है...हम क्या कहें? चलो नहीं देता कोई नाम...पर इतना तो कह ही सकता हूं कि ये जो एहसास है इसने मेरे मन के हर झरोखे, हर खिड़की, हर दरवाजे को खोल दिया है...रोशनी अब छनकर नहीं खुलकर अंदर आती है...अंदर का सीलन ताजा हवा के झोंके से मिट गया है...अभी फोन की घंटी घनघनाई...सोचा तुम हो...दिल का हाल अभी कह डालूंगा...पर तुम न थे...तुम्हारी आंखों को देखता हूं तो खो जाता हूं...डर भी जाता हूं...रहस्यमयी आंखें

 

यूं ही उंगलियों को पिरोए दिल्ली की गलियां, नोएडा की सड़कें, गाजियाबाद के फुटपाथ ही नहीं...पूरी दुनिया के रास्ते तय करना चाहता हूं...जब तुम्हारे गालों को चूमता हूं तो समाज को अश्लीलता दिखती होगी...पर मेरे लिए वो पाकीजा लम्हा है...तुम्हारा अचानक चूमकर मुस्कुरा देना सिरहन पैदा कर देता है...तुम ऐसा ही तो करती आई...कब, क्या उम्मीद नहीं...पर अब उम्मीदें हैं...इतनी बड़ी की बयां नहीं की जा सकतीं...तुम्हारा बचपना, तुम्हारा बड़प्पन सब प्यारा है मुझे...

 

बिना चश्मे के जब तुम देखती हो और मैं उंगलियों को बदल कर दिखाता हूं...तुमको पता भी नहीं चलता कि कितनी सफाई से मैं अपनी खुदगर्जी पूरा करता हूं...हां, तुम्हारे चेहरे पर जो खिलखिलाती हंसी आती है वही तो है उस खुदगर्जी का राज...देखो तुम बात कर लिया करो...सांस भर दिया करो...फोन को तो ऊर्जा मिल जाती है बिजली की या फिर जैसे भी...और मुझे?

 

तुम जानती हो कि बिना तुम्हारे मेरी जिंदगी की बैटरी डाउन ही रहती है...यूं ही सही...पर एक बार मेरे लिए...फिर कहता हूं...जान लोगी क्या मेरी...एकाध फोन करके सांसें भर दिया करो...

 

मार्च 2016

Sunday, August 2, 2020

बहुत दिनों से ब्लॉग लिखना शुरु करना चाहता था और आज शुरुआत कर रहा हूं। आज है 2 अगस्त 2020 दिन रविवार। चलिए सच के साथ अपनेअनुभवों, किस्सों को आपके साथ साझा करुंगा।

Tuesday, December 24, 2019

प्याज तेरी महिमा अपरम्पार है, गिरा देती तू सरकार है


चिरकुट प्रसाद की मंगेतर 21 दिनों से नाराज थी। चिरकुट की जान उसके हलक में फंसी थी कि अब होगा क्या। जानता तो था कि मंगेतर को मना लेगा, पर कैसे समझ में नहीं आया। बड़ी मिन्नतें कीं, कसम से अभी तो मंगेतर है बीवी बनेगी तो चिरकुट का फालूदा बना देगी और चिरकुट भाई फालूदा बनने के लिए तैयार भी थे, खैर ये उनका निजी मामला ठहरा। बीस दिन के बाद चिरकुट प्रसाद की मंगेतर मिस छनछनी चिरकुट की फरियाद सुनने के लिए तैयार हो गईं।
मिस छनछनी के सामने चिरकुट प्रसाद रोए जा रहे थे रोए जा रहे थे। तभी मिस छनछनी ने कहा कि ये प्याज के आंसू रोना बंद कर काम की बात करो। इसी झटके में चिरकुट कह बैठा कि उसने तो 20 दिन से प्याज खाया तक नहीं है। फंस गया लौंडा। जो अपनी होने वाली बीवी को प्याज तक नहीं खिला सकता वो उसकी डिमांड क्या खाक पूरी करेगा। मिस छनछनी ने उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा और शर्त रख दी कि जब प्याज का रेट कम हो जाएगा तब वो मानेगी।
चिरकुट प्रसाद के दिल को सुकून मिला कि चलो प्याज के सस्ता होने पर बात बन जाएगी, पर प्याज ने भी जैसे मिस छनछनी से कोई डील कर ली हो। 40 रुपए किलो प्याज 80 में बिकने लगा। दसियों दिन बीत गए, प्याज के नखरे कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। चिरकुट अजीब मुसीबत में फंस गया। न प्याज के रेट कम हो रहे थे और न ही मिस छनछनी मान रही थीं। चिरकुट को सरकार के मंत्री की बात याद आ गई वो तो कह रहे थे प्याज का पूरा भंडार भरा है, कोई दिक्कत नहीं होगी। धैर्य धारण किया कि चलो दो चार दिन में मामला सेट हो जाएगा। 
अब प्याज भी चिरकुट को मिस छनछनी जैसे ही दिखने लगा। मिस छनछनी जैसे ही प्याज का भाव भी कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। धीरे-धीरे डेढ़ महीने बीत गए और प्याज 80 से 120 पहुंच गया। उधर जिम्मेदार सरकार के जिम्मेदार मंत्री भी अपनी बात से पलट गए। साफ कह दिया कि गुरु प्याज पर संकट आन पड़ा है, अपना अपना देख लो। वैसे तो चिरकुट को भी इससे फर्क नहीं पड़ता पर यहां दिल का मामला था। प्याज का दाम कम हो तो प्यार मिले उनको। प्याज सस्ता होने का कोई चारा नजर ही नहीं आ रहा था। 
तभी चिरकुट की नजर उस खबर पर पड़ी कि कई साल पहले महंगी प्याज ने एक सरकार गिरा दी थी। ये देखते ही चिरकुट के हाथ-पैर ठंडे होने लगे। बुदबुदाने लगा कि प्याज तेरी महिमा अपरम्पार है, जब प्याज ने एक सराकर गिरा दी थी तो उसका प्यार गिरना तय ही था। चिरकुट ने हाथ जोड़े और मन ही मन प्याज की आराधना की- हे, प्याज देव अपनी भृकुटियां तानना बंद करो। अपने पहले के स्वरूप में आ जाओ। तभी उसके मन में एक बात कौंधी, शायद प्याज देव ने ही कुछ कहा। 
चिरकुट हाथ में थैला लिए मिस छनछनी के पास पहुंचा। कॉलबेल बजाई और 10 किलो प्याज वाला थैला मिस छनछनी को देते हुए कहा- मेरी आंखें खुल चुकी हैं, मैं समझ चुका हूं कि प्याज सस्ती हो या नहीं, मुझे अपनी कमाई ही बढ़ानी पड़ेगी। मिस छनछनी के चेहरे पर विजयी मुस्कान आई, जैसे कह रही हों कि आखिरकार तुम्हारे ज्ञान कपाट खुल ही गए। चिरकुट ने भी ठंडी सांस भरी, वो मिस छनछनी के प्याज के रेट कम होने की शर्त के मर्म को समझ चुका था। चिरकुट प्रसाद ने मन ही मन प्याज देव को नमन किया और मिस छनछनी के साथ घर के अंदर चला गया।

धर्मेंद्र केशरी

Tuesday, November 12, 2019

शेर के कुटुंब पर 'हिजड़ों' की निगाह!


एक राष्ट्र था। उस राष्ट्र के महा नामक जंगल में एक शेर सपरिवार रहा करता था। शेर जंगल के गीदड़ और सियारों को कभी पास भी नहीं फटकने देता था। गीदड़ और सियार शेर को मार गिराने की साजिश रचते थे। कई बार गीदड़ों ने शेर को परेशान करने की कोशिश की थी, पर शेर तो शेर ठहरा। उसकी एक गुर्राहट में गीदड़ भाग खड़े होते थे।

उस शेर की खास बात ये थी कि वो कभी राजा नहीं बनता था, पर जंगल की सैद्धांतिक रखवाली का जिम्मा उस पर ही था। वो अपने बदले किसी और को राजा बनाता और दूर बैठकर निश्चिंत होकर पूरे जंगल का ख्याल रखता था। एक बार गीदड़-सियारों के साथ कुछ और जंगली जानवरों ने मिलकर  शेर को बांधने की कोशिश की। शेर बूढ़ा जरूर था, पर साफ बोला कि चाहे जो कुछ हो जाए वो 'हिजड़ों' की मदद नहीं लेगा। शेर उन गीदड़ और सियारों को 'हिजड़े' की संज्ञा देता था। शेर को जंगल का राजा न बनवा पाना मंजूर था, पर सिद्धांतों से समझौता कतई मंजूर नहीं था। धीरे-धीरे शेर बूढ़ा होने लगा और उसके बच्चे  जंगल की राजनीति पर ध्यान देने लगे।

बूढ़े होते शेर ने एक गलती की थी कि वो आखिरी क्षणों में पुत्रमोह में फंस गया और उसने अपने सही दावेदार की जगह अपने बच्चे को जंगल की रक्षा का जिम्मा सौंप गया। उसका नतीजा ये निकला कि शेर का शक्तिशाली परिवार दो भागों में बंट गया। एक दिन शेर दुनिया छोड़कर चला गया और उसके बच्चे ने जंगल संभाला। वक्त बीता और शेर के बच्चे ने ठीक अपने पापा शेर की तरह अपने बच्चे को विरासत देने में जुट गया। यानी शेर का बच्चा काबिलियत को किनारे कर पुत्रमोह में फंस गया।

बहरहाल नवजात बच्चे मे वो बात नहीं थी, पर शेर का पोता था इसलिए जंगल के अन्य जानवरों ने उसे हाथों हाथ लिया और अपना प्यार-दुलार दिया। शेर का बेटा और पोता बाघ के साथ मिलकर जंगल की रखवाली कर रहे थे। गीदड़ और सियारों की टोली उनकी एकता के आगे हुआं हुआं करने के सिवा कुछ न कर सकी। शेर और बाघ की सोच एक थी इसलिए कई बार विवाद होने के बावजूद दोनों एक हो जाया करते थे। जंगल में फिर चुनाव हुए शेर का बच्चा और बाघ साथ मिलकर चुनाव लड़े और जीत गए, पर इस बार मामला गड़बड़ हो गया।

शेर का बच्चा अपने अनुभवहीन नवजात बच्चे के सिर पर ताज पहनाने को अड़ गया। बाघ ने खूब मनाया पर वो नही माना, अन्य जानवरों ने भी मनाने की कोशिश की, पर शेर का बच्चा टस से मस नहीं हुआ। आखिरकार बाघ ने अपने पैर पीछे खींच लिए। शेर का बच्चा पुत्रमोह में इस कदर अंधा हो गया कि उसने गीदड़ और सियारों के सामने गठबंधन  के लिए हाथ जोड़ लिए। अपने पिता शेर की वो बात भी भूल गए जिसमें उसने गीदड़-सियारों को हिजड़ा कहा था। एक वरिष्ठ हंस ने शेर के बच्चे और पोते को फिलहाल 'हिजड़ा' होने से बचा लिया, पर ऐसा कब तक हो पाएगा। जिस जंंगल में शेर और बाघ के बीच आपसी प्यार था अब वहां राजनीति होने लगी है और गीदड़ व सियार इसका फायदा उठाने के लिए बेकरार हैं

नोट- इसका किसी राजनीतिक पार्टी और स्थान से कोई संबंध नहीं है।

धर्मेंद्र केशरी

Wednesday, November 6, 2019

पॉल्यूशन का सॉल्यूशन, राम भरोसे देश में 'गधे' सरकार भरोसे बैठे हैं!


5-11-19
ये दिल्ली है मेरी जान जहां निकल जाते हैं बड़े बड़ों के प्राण। क्या रखा है गुजरात राजस्थान में। कुछ दिन तो गुजारिए दिल्ली के प्रदूषण स्थान पे। सिगरेट पीने वालों के लिए तो ये पॉल्यूशन टाइम एंजॉय करने के दिन होते हैं। धुंआ अनुलोम विलोम किए बिना ही लंग्स की आत्मा कपाल भाति कर रही होती है। हां, स्मॉग की तरह भगवान पानी में शराब मिलाकर बरसा दें तो मामला और भी जबरदस्त हो जाए।
एक बात तो है दिल्ली स्मॉग में दिखनी भले ही बंद हो जाए पर सर जी फिर भी कहते मिलेंगे, नई जी, हमने प्रदूषण कम कर दिया है। वो पंजाब हरियाणा वालों का दिल है कि मानता नहीं। सर जी ने हमेशा की तरह टोप्पी पड़ोसियों के सिर पर तरफ सरका दी है जी और पड़ोसी भी क्या करें। कौन सा धुंआ उनकी ओर रहना है फिलहाल आज तो उनके सिर पर से धुंआ टला,कल की कल देखी जाएगी। दिल्ली वाले इसके आसपास वाले मर भी जाएं तो कौन सा दिल्ली की जनसंख्या कम हो जाएगी। गांवों से और भी शहीद भगत सिंह दिल्ली आने को तैयार बैठे हैं।
कमाल है. प्रदूषण न हुआ हौव्वा हो गया। अरे महाने दो महीने में थोड़ी बहुत ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुंच ही जाएगी। राम भरोसे देश में गधे सरकार भरोसे बैठे हैं। गधों का का काम होता है सिर्फ बोझ ढोना। साफ ऑक्सीजन, पानी, खाना, जिंदगी की मांग गधे नहीं करते। बस चुपचाप सब कुछ सहते हुए लादी ढोते रहते हैं। क्या हुआ दिल्ली देश की राजधानी है।
 क्या हुआ जो महान देशभक्त सरकार बीच में और और आम आदमी वाली किनारे बैठी है। जब वोट लेना होगा तो उनका काढ़ा तैयार है। जिसे पीकर हम आप मदमस्त हो ही जाते हैं। अरे हां जनता सुनो एक काम करते हैं सरकारें, कोर्ट तो राय बहादुरी दिखाती रहेंगी। दीवाली वाले पटाखे बचें हों तो चलो फोड़ते हैं। नहीं तो खरीद लाएंगे। चलो प्रदूषण वाला सुसाइड करते हैं। मरना तो है ही थोड़ा जल्दी सही, तड़प-तड़प कर। नहीं तो गुलाम वाला गाना गुलामों की तरह गाते हैं, क्या करें क्या न करें, ये कैसी मुश्किल हाय, कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई। माई डियर जनता और डियरेस्ट सरकार,आदतें बदल लो, नहीं तो राम नाम तो सत्य होना तय है।
धर्मेंद्र केशरी

जो गीदड़ को शेर बना दे, वो यूपी पुलिस!



30-06-2008
धर्मेंद्र केशरी
एक बार राज्यों के पुलिस दल के बल को आजमाने का निर्णय आलाअधिकारियों ने लिया, सभी राज्यों की पुलिस को एक जगह इकट्ठा किया गया, सभी को एक काम सौंपा गया, काम ये कि जंगल से एक जिन्दा शेर पकड़ कर लाएगा उस राज्य की पुलिस को श्रेष्ठ पुलिस का एवार्ड दिया जाएगा सभी राज्यों की पुलिस अलग-ंअलग दिशा में शेर को पकड़ने निकली अब शेर पकड़ना कोई दाल भात तो है नहीं नहीं कि गप से मुंह में भर लिया, लगभग सभी राज्यों की पुलिस खाली हाथ लौट आई, लेकिन कोई जिंदा शेर नहीं पकड़ पाया, केवल यूपी की पुलिस वापस नहीं लौटी, अधिकारियों ने सोचा कि यूपी की टीम अभी जंगलों में ही है शायद जिंदा शेर पकड़ने का कारनामा उसी के खाते में दर्ज हो जाए
दो दिन बीत गए। सभी टीमें हारकर आ गईं, लेकिन यूपी पुलिस अब भी नहीं आई अधिकारियों को चिंता हुई कि आखिर यूपी की पुलिस कहां रह गई कोई बात-वात तो नहीं हो गई, किसी अनिष्ट की आशंका के बारे में सोचते ही आलाअधिकारियों ने जंगल की ओर कूच किया जंगल में दूर तक निकल जाने के बाद एक जगह से धुंआ उठता दिखाई दिया नजारा कुछ यूं था,दरअसल, वहां यूपी पुलिस ठहरी हुई थी, पुलिस ने एक गीदड़ को पकड़ रखा था और उसपर जमकर थर्डडिग्री आजमाइश हो रही थी।  पुलिस गीदड़ पर जमकर डण्डे बरसाए जा रही थी और बार-ंउबार दोहरा रही थी कि बोल कि तू शेर है, बेचारा गीदड़ मार खाता जाता और गिड़गिड़ाता नहीं साब मैं गीदड़ हूं, शेर नहीं
पुलिस का गुस्सा सातवें आसमान परतू ऐसे नहीं मानेगाएक बंदे ने आदेश दिया भरो इसके पिछवाड़े में लाल मिर्ची खुद ब खुद कहेगा कि ये शेर हैभयंकर यातना के बाद आखिरकार गीदड़ का साहस जवाब दे गयाउसने यूपी पूलिस के आगे हार मान ली और धीरे से कहा, हां हूजूर मैं ही शेर हूंपुलिस ने कहा ऐसे नहीं अकड़ कर बोल कि तू शेर है, गीदड़ ने कराहते हुए कहा साब मैं ही शेर हूं पुलिस ने कहा शेर की तरह गरज कर बोल कि तू शेर है। डरा सहमा गीदड़ और मार खाने के डर से चिल्लाकर बोला कि मैं शेर हूं
अब तनकर, अकड.कर शेर की तरह चलके दिखा। मरता क्या न करता गीदड़ ने सीना चौड़ाकर चाल भरी, यूपी पुलिस ने नकेल कसी और कहा हां अब लग रहा है शेर और धमकी भरे लहजे में कहा सुन किसी से बताया तो अपना हश्र समझ लियो। तब से आलाअधिकारी वहां पहुंच गए यूपी पुलिस ने गीदड. से कहा बता तू कौन हैगीदड़ ने सहम कर यूपी पुलिस की तरेरती आंखों को देखा और बोला मैं ही शेर हूं फिर क्या था अधिकारियों ने यूपी पुलिस को इंडिया की सर्वश्रेष्ठ पुलिस का दर्जा दे दिया।
धर्मेंद्र केशरी

राम-कृष्ण के देश में, नाम बड़े और दर्शन छोटे



16-06-08
धर्मेंद्र केशरी
तेज आवाजें बार-बार गूंज रही थीं। कृष्णा पर है कत्ल का आरोप, कृष्णा है कातिल। मैंने सोचा अपने कृष्ण जी तो माखन-दूध चुराते थे , गोकुल में दूध-दही की छोटी मोटी चोरियां किया करते थे। कत्ल की कोई बात तो धर्मग्रंथों में नहीं है, हां कंस का वध जरूर किया था। कहीं मानवाधिकार उल्लंघन के चक्करों में तो नहीं उलझ गए। मुझसे रहा नहीं गया और आवाज की दिशा में घूम गया। देखा तो एक खबरिया चैनल से ये आवाजें आ रहीं थीं और चैनल में ख़बर पढ़ रहे सज्जन यही वाक्य बार-बार दोहरा रहे थे कृष्णा है कातिल वगैरह, वगैरह।
अब समझ में आया अपने किशन कन्हैया पर कत्ल का आरोप नहीं है बल्कि ये कलयुगी कृष्णा है। मेरा दिल मुझे ही धिक्कारने लगा कि ये बात पहले क्यों नहीं समझ में आर्इं। अगर भगवान कृष्ण को दुराचारी कंस के वध का आरोपी बनाया गया होता तो देश में बवाल मच जाता। इल्जाम संगीन था वो भी भगवान पर, जो उनके भक्तों सहित राजनेताओं को तो कत्तई हजम नहीं होती। जान में जान आई ये कलयुग वाले भाईसाहब हैं जिनका नाम भी कृष्णा ही है।
कलयुग में ही पहले कहा जाता था कि नाम का असर व्यक्तित्व पर भी होता है। इसलिए लोग अमूमन भगवान के नाम पर नामकरण कर देते थे कि शायद नाम का कुछ तो असर हो जाए। लेकिन अब मामला बिल्कुल उल्टा है। आदमी का जैसा नाम होता है होता है ठीक उसके विपरीत। हमारे पड़ोस में एक रामचंद्र नामक महाशय हैं। चौबीस घंटों में ऐसी कोई घड़ी नहीं बीतती होगी जब उनके मुखारबिंद से गालीवाणी न निकलती हो। नाम भर के रामचंद्र हैं मर्यादा तो बेचकर खा गए हैं।
उनसे बीवी-बच्चे ही नहीं उनके मां-बाप भी उबियाएं हैं। मां- बाप तो यहां तक कह देते हैं कि कम्बख्त का नाम रामचंद्र की बजाय रावणचंद्र रख देते तो इतना दुख तो नहीं होता। निगोड़ा भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहा है। हां एक बात में वो भगवान रामचंद्र की तरह हैं, बेचारी नौकरीपेशा बीवी, जिसके सहारे घर का खर्च चलता है, उसे शक के घेरे में रखकर गृहत्याग करा रखा है। खैर, इसमें भगवान का क्या दोष। कलयुग में ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने नाम के विपरीत अर्थ को सिद्ध करने पर तुले होते हैं। जैसे नाम है धर्मदास और हैं पक्के अधर्मी।
एक बार मैं थाने गया था। दरोगा जी का नाम देखा, ईमानदार सिंह। जब मैंने उनके बारे में जानना चाहा तो मालूम हुआ कि भाईसाहब ने मेरा विश्वास तोड़ा नहीं है बल्कि नाम के उल्टे स्वभाव के ही हैं। पूरे महकमें में चर्चा आम है कि ईमानदार साहब बिना रुपए डकारे कलम नहीं चलाते हैं। जो भी है संतोष इस बात की है कि अपने अराध्य श्रीकृष्ण जी पर कोई इल्जाम नहीं है।
धर्मेंद्र केशरी