Wednesday, April 29, 2009

कौन बना पप्पू?

अभी मेरा वोट बचा हुआ है। बचा इसलिए है मतदान कुछ दिनों बाद है। टीवी पर विज्ञापन, रेडियो पर विज्ञापन, अखबार में विज्ञापन देख-देखकर इस बार ये तय कर ही लिया है कि वोट डाल कर रहूंगा। पप्पू नहीं बनना है, सिर्फ इसलिए। सोचा, सोच लूं कि किसे वोट देना है। सबसे पहले मेरे विचार में वो पार्टी आई, जो देश पर एक अरसे से राज कर रही है, महंगाई जिसकी करीबी रिश्तेदार है और इस पार्टी के बाद उसे भी यहां जयर आना है। अब तो व्यक्तिगत उसका राज भी नहीं कह सकते, क्योंकि उनके पीछे ‘दलाल पार्टियोंज् की लंबी कतार है, जो चुनाव के बाद सौदेबाजी करेंगे।

कभी इधर तो कभी उधर पाला बदलने के मूड में अभी से हैं। पेंडुलम की तरह लटक रहे हैं, जिधर फायदा दिखेगा, निकल लेंगे। फिर मेरा ख्याल भगवा पार्टी की ओर गया। उन्हें देखते ही पुरानी बात याद आ गई, हिंदू, राम, कंधार विमान अपहरण, संसद हमला और भी न जाने क्या-क्या। इस पार्टी का विचार आते अजीब-सा एहसास होने लगा। फिर मैंने सोचा हाथी की ही सवारी कर लेते हैं, लेकिन अब हाथी की सवार महंगी हो गई है। खासकर तब से जब से उसके दिमाग में हाथी राजा बनने का फितूर सवार हुआ। अपने बाड़े की अनदेखी कर वो पूरे हिस्से पर कब्जा चाहता है। मैंने भी ‘बहुधन समाज पार्टीज् से हाथ जोड़ लिए।

अब करूं तो क्या करूं। साइकिल पर बैठ नहीं सकता, तीर कमान से दूरी ही अच्छी, हंसिया हथौड़ा कब रुठे कब चाय पर बैठ जाएं, कोई भरोसा नहीं। खर, हमारे देश में इतनी पार्टियां हैं कि विकल्प हमेशा खुला ही रहता है। तीन दिन तक मैं सभी पार्टियों के बारे में देखता, सुनता और समझता रहा, लेकिन कोई भी ऐसी पार्टी नहीं लगी, जिससे अपना वोट दे दूं। सच बताऊं इनके कारनामे देखकर वोट देने का मन ही नहीं करता, क्योंकि ये हमें हमेशा पप्पू बनाते आए हैं। बड़ी उधेड़बुन में हूं, वोट नहीं देता फिर भी पप्पू, दे दूं तो पप्पू बनना तय है। तभी मुङो बेचार सिंह दिखाई पड़े। मुङो देखते ही मेरी परेशानी पूछ बैठे।

मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई तो चाचा बेचार सिंह ने कहा- बेटा आज तो सभी नता और पार्टियां भ्रष्ट हैं, हमें चुनना उसी को है, जो कम भ्रष्ट हो। मैं तो दशकों से आजमाता आ रहा हूं, कोई उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है, पर हिम्मत नहीं हारा हूं और आज भी इसी उम्मीद के साथ वोट देने जा रहा हूं कि शायद इन खद्दरधारियों का मन बदल जाए और ये जनता की वोट को सार्थक कर सकें। मैंने भी आखिरकार यही किया और फिलहाल तो पप्पू बनने से बच गया पर आगे..?
धर्मेद्र केशरी

1 comment:

  1. उम्मीद की अलख जलाये रखिये, कभी तो सबेरा होगा!!

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