Saturday, August 5, 2017

कैसे...













भुला दूंगा...भूल तुम भी जाओगे
मगर इस दिल का संभालूं कैसे

बात तो साफ साफ कही थी तुमने
अपना हाल ए दिल समझाउं कैसे

मोहब्बत में कोई शर्त नहीं थी पहले
बंधा वादों में हूं निभाउं कैसे

तेरी बातें ही मेरा मरहम मेरी उम्मीद
तेरे बिन बेमोल हूं बताउं कैसे

मजाक मुहब्बत में गया कबसे बदल
दिल मेरी सुनता नहीं सुनाउं कैसे

पास आकर दूर जाने की ख्वाहिश है तुम्हें
अजीब सी कीमत है चुकाउं कैसे

बता दो तुम्हीे कैसे चाहूं तुम्हें
मुनासिब नहीं दूरी जाउं कैसे...


धर्मेंद्र केशरी





Saturday, May 13, 2017

कैसे समझाउं तुम्हे...


माना कि सोच एक सी नहीं
माना कि उम्र एक सी नहीं
माना कि दूरियां हैं मीलों की
माना कि यकीं कम है तुमको
माना कि दरम्यां है फासला
पर तुम ही बताओ 
मेरी सोच भी तुम
मेरी राह भी तुम
मेरी आस भी तुम 
मेरी ख़ास भी तुम 
मेरा यकीन भी तुम
मेरा वजूद भी तुम
खुद को खोया है तुममे
साथ रहना है तुमको भी
फिर ये संशय कैसा?
कैसी दुविधा का जाल है?
कहूंगा बस इतना ही
हर खुशी की सौगात दूंगा
हाल कैसा भी हो पूरा साथ दूंगा
अपने फैसले पर न पछताओगे तुम
ऐसा दिन दूंगा, ऐसी रात दूंगा।

धर्मेंद्र केशरी