Tuesday, April 5, 2011

कुत्ता खाने को मजबूर इंसान

2 अप्रैल 2011 का दिन हमेशा याद रखा जाएगा। इस दिन हमने इतिहास जो दोहराया है। श्रीलंका का मात देकर टीम इंडिया दूसरी बार वर्ल्ड चैंपियन जो बनी है, पर यही दिन मुङो किसी और घटना के लिए याद रहेगी। फाइनल मैच था और मेरी ऑफिस से छुट्टी। जाहिर सी बात है मैच तो देखना ही था। नोएडा में अकेला रहता हूं। 1 अप्रैल तक यही सोच रहा था कि आखिर कल (2 अप्रैल) का मैच अकेले देखना पड़ेगा? तभी रात को मेरे बड़े भाई जसे वरिष्ठ अतुल दयाल जी का फोन आया कि मैं उनके सोसायटी में आऊं और मैच का आनंद लूं। मैं निकल भी गया। पहली पारी में श्रीलंका के बल्लेबाज जुटे पड़े थे।

  टोटके के तौर पर मैं तीस ओवर के बाद सर के साथ बाजार की ओर निकल गया। लौटते समय तो बड़ी घटनाएं हुईं। पहली ये कि हमारे सामने ही किसी गाड़ी ने एक व्यक्ति को टक्कर मार दी। उसके सिर से खून बह रहा था। हम उसे अस्पताल तो नहीं पहुंचा सके, लेकिन मौके पर पुलिस को सूचना देकर हम घर की ओर निकल गए। फिर तुरंत ही एक और घटना हुई। ऐसा दर्दनाक दृश्य देखा कि 10 सेकेंड से ज्यादा देखने की हिम्मत नहीं हुई। दरअसल, सड़क के बीचोंबीच एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति सड़े-गले कुत्ते की लाश को नोचकर खा रहा था। 

 आपके सामने ये दृश्य चलने लगे होंगे और उकताई भी रही होगी, पर ये सच है। वा एक मरे कुत्ते को अपना भोजन समझ के खा रहा था वो। इस दृश्य ने मुङो हिला दिया। थोड़ी देर तक मैं कुछ सोचने और समझने की स्थिति में नहीं था। ये कोई डिस्कवरी के मैन वर्सेज वाइल्ड का एपिसोड नहीं था, बल्कि जीने की चुनौतियों के साथ एक जीता-जागता मानसिक रूप से मजबूर इंसान था। वहां मैं सोचने के सिवा कुछ नहीं कर पाया। उस इंसान को देखकर मेरे दिमाग में फौरन सरकार के वो 45 करोड़ नजर आने लगे, जो वर्ल्ड कप में इंडिया के फाइनल में पहुंचने पर आइसीसी को टैक्स में छूट के रूप में दिए गए हैं। उस आइसीसी को, जिसे इस विश्व कप से अरबों का फायदा हुआ है। 

 आंकड़े तो स्पष्ट नहीं, पर आइसीसी का फायदा फिलहाल करीब 400 से साढ़े चार सौ करोड़ बताया जा रहा है। अगर सरकार उन्हें छूट देती तब भी उन्हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने वाला था। अगर यही 45 करोड़ मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के देखभाल के लिए सरकार लगा देती तो उस मजबूर और मानसिक रूप से बीमार इंसान को सड़क के किनारे बैठकर सड़ा-गला कुत्ता खाने पर मजबूर नहीं होना पड़ता। करने को सरकार दावा कर सकती है कि वो ऐसे लोगों पर पूरा ध्यान दे रही है, पर सच्चाई बिलकुल अलग है। सफेदपोश किसी कमाऊ संस्था पर धन वर्षा कर सकते हैं तो ऐसे बीमार और लाचार लोगों पर ध्यान क्यों नहीं? 

धर्मेद्र केशरी

वर्ल्ड कप और आधी आबाद का जोश


इंडिया विश्व विजेता बन चुकी है। 121 करोड़ लोगों की दुआ काम आई है। इस वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के शानदार प्रदर्शन, लोगों का जज्बा तो दिखा ही, पर सबसे ज्यादा हैरान करने वाली थी आधी आबादी का टीम इंडिया का हौसला अफजाई करना। फिर वो चाहें स्टेडियम में हों, अपने मुहल्ले में हों या किचेन में। इस बार महिलाओं ने भी क्रिकेट और विश्व कप में उम्मीद से ज्यादा अपनी दिलचस्पी दिखाई है। ऐसा नहीं है कि महिलाएं क्रिकेट को एंजॉय नहीं करती थीं, लेकिन इस बार टीम को पूरे देश की महिलाओं ने अपनी शुभकामनाएं देने के साथ-साथ टीम इंडिया के सभी मैचों को पूरी लगन से देखा।
जी हां, इस बार क्रिकेट का लुत्फ उठाने में नारियां किसी से पीछे नहीं थीं। ऐसा आश्चर्यजनक रूप से पहली बार हुआ कि महिलाओं ने हर मैच का आनंद लिया भले ही उस दौरान उनके किचेन ठंडे रहे। अमूमन सास-बहू जसी और अनेक तरह की सीरियलों में खोई रहने वालीं गृहणियां इस बार पूरे जोश-खरोश के साथ टीम के साथ डटी रहीं। वसुंधरा इंक्लेव के सेल एपार्टमेंट में महिलाएं अक्सर तीज-त्योहारों पर कोई न कोई कार्यक्रम करती थीं, लेकिन इस बार उन्होंने वर्ल्ड कप के मैचों के दौरान ज्यादा दिलचस्पी दिखाई और बड़े पर्दे पर मैच देखने की अपनी कॉलोनी में ही व्यवस्था की। महिलाओं के जुनून ने इस बार मर्दो को भी पीछे छोड़ दिया। इतना ही नहीं, पुरुष तो मैच के दौरान टहलते-घूमते भी दिखाई दिए, लेकिन महिलाएं सेमी फाइनल और फाइनल के पूरे मैच में अपनी सीट से चिपकी रहीं। उन्होंने अपने पतियों को हिदायत भी दे रखी थी कि मैच के दौरान उन्हें परेशान न किया जाए।
सोसायटी की ही एक गृहणी मोनिका दयाल ने बताया कि वो मैच का लुत्फ लेने के लिए दोपहर को ही शाम का खाना भी बना चुकी हैं और अपने सारे काम भी झटपट निपटा लिए हैं। मोनिका के अलावा दीप्ति शर्मा, अंजलि गर्ग, माला, कविता, रूचि, गायत्री ये उनके नाम हैं, जिन्होंने सोसायटी को ही मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम का रूप दे दिया। पूरे मैचे के दौरान महिलाएं चिल्ला-चिल्लाकर टीम इंडिया को चियरअप करती रहीं। ऐसा लग रहा था कि वो अपने कॉलोनी के फील्ड में नहीं, बल्कि स्टेडियम में बैठी हों। भारत के मैच जीतते ही ढोल नगाड़ों की थाप पर भी जम कर महलाएं नाचीं और पटाखे भी फोड़े। ये दृश्य दिल्ली-नोएडा में लगभग सभी जगह देखने को मिल रहा था। वास्तविकता तो यही है कि इस बार पूरे देश की महलिाओं ने क्रिकेट देखने में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया है। महिलाओं के उत्साह को देखकर आखिर पुरुषों को कहना ही पड़ा कि उफ! हम यहां भी मात खा रहे हैं।

आधी रात सड़क पर निकलीं
इंडिया की जीत पर पूरा देश जश्न में डूबा था। इस जश्न में एक सुखद आश्चर्य भी था। देश की सड़कों पर आधी रात को युवतियां नाचती-गाती दिखाई दीं। कुछ गाड़ी के ऊपर बैठी थीं तो कुछ बाइक पर खड़ी होकर चीखती-चिल्लाती इंडिया की जीत को सेलिबेट्र कर रही थीं। सड़कों पर जश्न मनाने में लड़कियां भी किसी से पीछे नहीं रहीं।
धर्मेद्र केशरी, नई दिल्ली