Wednesday, February 4, 2009

कदम दर कदम उपाय

सरकार का एक बयान आया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि वो अमरनाथ मुद्दे पर कदम दर कदम बातचीत करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल सहित पूरी सरकार जम्मू के हालात पर चिंतित तो हैं, लेकिन कदम दर कदम उसका समाधान भी ढूंढेंगे। सही बात भी है, कोई भी काम तुरंत तो कर नहीं देना चाहिए खासकर राजनीति में तो कतई नहीं। अगर सरकार ने श्राइन बोर्ड भूमि मुद्दे को तुरंत ही सुलझा दिया तो इतना हो हल्ला कैसे मचेगा। जब हो हल्ला नहीं मचेगा तो पॉपुलरिटी उतनी मिलेगी नहीं। इसलिए सरकार हर कदम फंक-फूंक कर रख रही है।

इस मामले में ही नहीं सरकार लगभग सभी ज्वलंत और विवादित मामलों में कदम दर कदम उपायों को ढ़ूंढती है। सरकार को पता है कि जब कोई विवाद होता है तो पच्चीस-पचास तो मरते कटते ही रहते हैं। इसमें नई बात क्या है। और लड़ाई जब दो संप्रदायों में हो तो हल ढूंढने से ज्यादा वक्त आग में किस तरीके से सियासी राटियां सेंकी जाए, इस तरफ ज्यादा रहता है। सरकार कर भी वही रही है। इस मुद्दे पर मेरे एक मित्र सरकार की इस विचारधारा से सहमत दिखे। उनका कहना है कि अगर हर कोई अपने बारे में सोचता है तो इसमें बुरा क्या है! सरकार भी कोई अनोखी चीज तो है नहीं। जिससे फायदा नजर आ रहा है, वही काम तो कर रही है।

मैंने पूछा, कैसे, तो भाईसाहब बोले- देखो सारा खेल वोटों का है। अमरनाथ मुद्दा सिर्फ जम्मू की बात नहीं है। इससे पूरा देश जुड़ा हुआ है। अब सरकार यह देखेगी कि किधर पलड़ा भारी रखा जाए। अभी तो आजमाइश हो रही है। जसे ही सरकार को लगेगा कि उनका वोट बैंक थोड़ा बढ़ गया है, वैसे ही कोई फैसला सुना देगी। वो बोले- देखो, हड़ताल-वड़ताल सरकार के लिए मायने नहीं रखती। कर्फ्यू तो वैसे भी हमेशा कहीं न कहीं लगते ही रहते हैं, जम्मू में ही सही। राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त नहीं देखा, इस मामले में तो केंद्र सरकार ने कदम दर कदम उपाय खोजने की जहमत तक नहीं उठाई, क्योंकि वहां वोटों की गणित में आगे कोई और था। जम्मू-कश्मीर इतने वर्षो से आतंकवाद का दंश ङोल रहा है, लेकिन आज भी उपाय बस कदम दर कदम ही हो रहे हैं। चाहे 1992 हो या फिर 2008, सरकार तो बस उपायों को ढूंढने में लगी है। वो तब भी मूकदर्शक थी और आज भी उसी हालात में है।

फैसले लेने का दम होना चाहिए और जब सरकार की कुर्सी के चारों टांग गठबंधन के हैं, ऐसे में तो बस कदम दर कदम उपाय ही तो ढूंढे जा सकते हैं। इसलिए जम्मू विवाद में भी सरकार धीरे-धीरे समाधान की ओर बढ़ रही है।


धर्मेद्र केशरी

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