Wednesday, February 4, 2009

अमर कहानी

कहते हैं राजनीति बच्चों का खेल नहीं। इसमें कब, कौन, किसको फंसा ले कहा नहीं जा सकता और कब उसी से नाता जोड़ना पड़ जाए जिससे कभी सिर फुटौव्वल की नौबत आन पड़ी थी, यह भी नहीं कहा जा सकता। अब अमर सिंह को ही ले लें। राजनीति के राखी सावंत हैं, कब क्या बोल दें खुद उनको ही नहीं पता होता है। विरोधी कैसा भी हो अमर सिंह अपने बातों के बाण किसी पर भी छोड़ सकते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि जसे ही उन्हें फायदा नजर आता है बंदे से गिले शिकवे फट्ट से दूर। अब कांग्रेस से सपा के पुराने रिश्तों को ही ले लीजिए।

एक साल भी नहीं बीते होंगे जब अमर सिंह ने उसी विदेशी महिला से दूर रहने की हिदायत दी थी। तब तो सोनिया मैडम पर इल्जाम तक लगा दिया कि अमर सिंह जी की हत्या तक की जा सकती है। हाय रे वक्त, क्या-क्या दिन दिखाता है। सोचा था कभी कांग्रेस से गलबहियां नहीं करेंगे, लेकिन करतूतों ने उत्तर प्रदेश में ऐसी पटखनी दी कि अब माया के डंडे से बचने के लिए कुछ भी करने को तैयार। माया मैडम ने केंद्र से मुंह मोड़ा तो दांत चिंघााड़ कर खड़े हो गए कि हम साथ-साथ हैं। न्यूक्लियर डील से मतलब नहीं, मतलब मौके से है। मौके की दरकार यही कहती है कि अमर एंड पार्टी कांग्रेस के गुण गाने शुरू कर दे और अपना प्यार जताने का मौका न गवाएं। अमर सिंह ने किया भी यही, क्योंकि उनकी राजनीति यही कहती है।

सच तो यह है कि उन्हें डील के नफा-नुकसान से कोई मतलब ही नहीं, खुद का फायदा हो यही काफी है। फिर इतने दिनों से कोई समाजवादी पार्टी का नाम लेवा भी नहीं था। दूर भविष्य तक सूबे में पार्टी के आने की नाउम्म्ीदी से कई सांसादों, विधायकों ने भी नमस्ते करने का मन बना लिया था, ऐसे में अचानक ही खबरों में छा गए। उललू-जूलूल ही सही पब्लिसिटी तो पब्लिसिटी होती है। कुछ तो जड़ों में पानी गया, पानी कहां का था उससे फर्क क्या पड़ता है। खर, राजनीति की इस बेशर्म खेल में अकेले अमर सिंह नहीं हैं जो कभी भी, कुछ भी बोलते रहते हैं, और भी हैं, लेकिन इतना जरूर है कि कोई अमर सिंह के आसपास नहीं फटक सकता।

अब भला राखी सावंत से कोई पार पा सकता है जो अमर सिंह से पाया जा सके। वैसे भी बॉलीवुड से प्रेरित रहते हैं सिंह साहब। अब सपा मतलब, अमर सिंह ही रह गया है, उनकी मर्जी जो होगी करेंगे। यही लोग अब नए राजनीति के कौटिल्य हैं। राजनीति को खेल समझने वाले माहिर खिलाड़ी।

धर्मेद्र केशरी

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