Wednesday, February 4, 2009

नाम बड़े और दर्शन छेाटे

तेज आवाजें बार-बार गूंज रही थीं। कृष्णा पर है कत्ल का आरोप, कृष्णा है कातिल। मैंने सोचा अपने कृष्ण जी तो माखन-दूध चुराते थे , गोकुल में दूध-दही की छोटी मोटी चोरियां किया करते थे। कत्ल की कोई बात तो धर्मग्रंथों में नहीं है, हां कंस कंस का वध जरूर किया था। कहीं मानवाधिकार उल्लंघन के चक्करों में तो नहीं उलझ गए। मुझसे रहा नहीं गया और आवाज की दिशा में घूम गया। देखा तो एक खबरिया चैनल से ये आवाजें आ रहीं थीं और चैनल में ख़्ाबर पढ़ रहे सज्जन यही वाक्य बार-बार दोहरा रहे थे कृष्णा है कातिल वगैरह, वगैरह। अब समझ में आया अपने किशन कन्हैया पर कत्ल का आरोप नहीं है बल्कि ये कलयुगी कृष्णा है।

मेरा दिल मुङो ही धिक्कारने लगा कि ये बात पहले क्यों नहीं समझ में आईं। अगर भगवान कृष्ण को दुराचारी कंस के वध का आरोपी बनाया गया होता तो देश में बवाल मच जाता। इल्जाम संगीन था वो भी भगवान पर, जो उनके भकतों सहित राजनेताओं को तो कत्तई हजम नहीं होती। जान में जान आई ये कलयुग वाले भाईसाहब हैं जिनका नाम भी कृष्णा ही है। कलयुग में ही पहले कहा जाता था कि नाम का असर व्यक्तित्व पर भी होता है। इसलिए लोग अमूमन भगवान के नाम पर नामकरण कर देते थे कि शायद नाम का कुछ तो असर हो जाए। लेकिन अब मामला बिल्कुल उल्टा है। आदमी का जसा नाम होता है होता है ठीक उसके विपरीत।

हमारे पड़ोस में एक रामचंद्र नामक महाशय हैं। चौबीस घंटों में ऐसी कोई घड़ी नहीं बीतती होगी जब उनके मुख से गालीवाणी न निकलती हो। नाम भर के रामचंद्र हैं मर्यादा तो बेचकर खा गए हैं। उनसे बीवी-बच्चे ही नहीं उनके मां-बाप भी उबियाएं हैं। मां-बाप तो यहां तक कह देते हैं कि कम्बक्ष्त का नाम रामचंद्र की बजाय रावणचंद्र रख देता तो इतना दुख तो नहीं होता। निगोड़ा भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहा है। हां एक बात में वो भगवान रामचंद्र की तरह हैं, बेचारी नौकरीपेशा बीवी, जिसके सहारे घर का खर्च चलता है, उसे शक के घेरे में रखकर गृहत्याग करा रखा है। खर,इसमें भगवान का क्या दोष। कलयुग में ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने नाम के विपरीत अर्थ को सिद्ध करने पर तुले होते हैं। जसे नाम है धर्मदास और हैं पकके अधर्मी।

एक बार मैं थाने गया था। दरोगा जी का नाम देखा, ईमानदार सिंह। जब मैंने उनके बारे में जानना चाहा तो मालूम हुआ कि भाईसाहब ने मेरा विश्वास तोड़ा नहीं है बल्कि नाम के उल्टे स्वभाव के ही हैं। पूरे महकमें में चर्चा आम है कि ईमानदार साहब बिना रुपए डकारे कलम नहीं चलाते हैं। जो भी है संतोष इस बात की है कि अपने अराध्य श्रीकृष्ण जी पर कोई इल्जाम नहीं है।

धर्मेद्र केशरी

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