Wednesday, February 4, 2009

एक हजार करोड़ का फायदा

पूरे एक हजार करोड़ का फायदा होने वाला है। किसे! ये तो उन्हीं को पता है जो इन रुपयों पर आंख जमाए बैठे हैं। बिहार में बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ का पैकेज देने का एलान किया है। ‘बाढ़ पीड़ितोंज् की बड़ी लंबी लिस्ट है। इसे इतने लोगों में बांटा जाएगा कि पता नहीं यह ज्ज्सच में बाढ़ पीड़ितों में पहुंच पाएगा भी या नहीं। डर है कहीं कोसी की लहर में यह राहत पैकेज न बह जाए। जसा कि अन्य राहत पैकेजों के साथ होता है। मंत्री से लेकर संतरी तक के पॉकेट इन राहत पैकेजों से राहत की सांस लेते हैं।

मैं भी बिहार के बाढ़ का जायजा लेने पहुंचा। किनारे खड़ा होकर दूर तक फैले पानी के चादर को देख ही रहा था कि एक व्यक्ति तिनके के सहारे पार लगता हुआ दिखाई दिया। मैंने कहा- ओ महानुभाव किसी तरह किनारे आ जाओ, ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है, हजार करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा हुई है। अब तुम्हें परेशानी नहीं ङोलनी पड़ेगी। वो व्यक्ति कुछ बोला नहीं, बस व्यंग भरी मुस्कान लिए तिनके के सहारे तैरता रहा। मुङो बड़ा बुरा लगा कि एक डूबता व्यक्ति मेरी बातों की अवहेलना कर रहा है। मैंने उसे दोबारा टोंका तो महाशय बोल उठे- बहुत राहत पैकेज की घोषणा हो तो गई, पर हमें क्या मिलने वाला है। हम चाहें डूबे या उतराएं, किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला है। यह हमारे लिए नहीं है, इस पैकेज से नेताओं और अफसरों की मौज होने वाली है।

बाढ़ पीड़ितों का तो नहीं पता हां,उनके घरों में पैसों की बाढ़ जरूर आ जाएगी। हमारे झोपड़ियों की परवाह न उन्हें कभी थी और न आगे भी कभी होगी। अगर होती तो हर साल आने वाली इस विकराल बाढ़ का कोई न कोई हल जरूर ही निकाल लेते। प्राकृतिक आपदा बताकर पल्ला थोड़े न झाड़ते। और तो और ये सफेदपोश तुम्हारी तरह ही किनारे बैठकर इस भयंकर स्थिति में भी सियासी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे। एक भाई साहब तो पिछले 15 साल से बिहार के मुख्यमंत्री थे और तब भी कोसी में बाढ़ आती थी, लेकिन उन्हें तब समस्या नहीं लगी और आज कह रहे हैं कि सरकार चाहती तो हम बच सकते थे। सच तो यह है कि न इस सरकार ने चाहा और न उस सरकार ने चाहा था। मौतों पर राजनीति ही इनकी पुरानी आदत है। रही पैकेज की बात, तो लुटेरों की जमात है, जो जितना लूट सकेगा उतना लूटेगा। उनकी जूठन से कुछ बचा तो खानापूर्ति हो जाएगी। इतना कहकर उसने तिनके को जोर से पकड़ कर पार लगने की कोशिश करने लगा।

धर्मेद्र केशरी

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