Wednesday, February 4, 2009

कहीं वो सीडी तो नहीं!

कॉलबेल बजी। नेताजी ने रामू को आवाज दी कि देख दरवाजे पर कौन है। रामू ने लौटकर एक पैकेट नेताजी को थमा दिया। पैकेट खोलते ही नेताजी को सांस ऊपर-नीचे होने लगी। पैकेट में कुछ और नहीं सीडी था। सीडी देखकर ही नेताजी के माथे पर बल पड़ गया। नेताजी को पसीना-पसीना देखकर घरवाले परेशान हो गए। वो दौड़कर नेताजी के पास पहुंचे और परेशानी का कारण पूछा। नेताजी ने दिल पर हाथ रखकर बिना कुछ कहे सीडी वाले पैकेट की ओर इशारा कर दिया।

नेताजी की बीवी ने सीडी को ओर देखकर कहा- ये तो मात्र सीडी है इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है? नेताजी ने कराहते हुए कहा यही तो परेशानी की बात है। आजकल की सीडीयों का कुछ भरोसा नहीं है। कब, कौन सी सीडी सारी पोल पट्टी खोल कर रख दे। बीवी को समझाते हुए उन्होंने कहा- तुमने देखा नहीं सीडी का जिन्न जब-जब बाहर आया है कोई न कोई परेशानी जरूर खड़ी कर दी है। दुश्मनी निकालने का तरीका बन गया है सीडी। बचपन में सांप-सीढ़ी का खेल खेलते थे, अब लोग सीडी-सीडी खेला करते हैं। राजनीति के गलियारों में तो सीडी का भूत कब्जा जमाए बैठा है। किसी से नाराजगी हुईनहीं कि सीडी निकाल के पटक दो। तुमने उमा भारती को नहीं देखा, अपने पूर्व पार्टी को कटघरे में खड़ा करने के लिए उन्होंने सीडी को ही सीढ़ी बनाया।

बीवी समझ गई कि इनकी परेशानी का सबब सीडी का भूत है। बीवी ने कहा- ओफ्फो बस इतनी सी बात, उमा भारती की बात तो आपने की, लेकिन यह भी तो लगभग साबित हो गया कि उन लोगों पर सीडी के जरिए जो भी आरोप लगाए गए थे वो सब सुनियोजित थे। पोल खुलते देख उमा भारती से भी कुछ कहते नहीं बन रहा था। नेताजी आह भरते हुए बोले- हर बार ऐसा थोड़ ही होता है। अगर किसी ने यह सीडी असली बना ली होगी तो फिर मेरी खर नहीं। न जाने क्या-क्या ङोलना पड़ेगा। पहले तो ब्लैकमेल किया जाएगा, पैसे मांगे जाएंगे यहां तक तो ठीक, लेकिन कहीं टीवी वालों के हाथ सीडी लग गई तो ये लोग बिना समङो-बूङो ही पोस्टमार्टम कर डालेंगे।

सच्चाई कुछ भी हो खबर मसालेदार और सनसनीखेज बन ही जाएगी। अरे कोई मुङो अस्पताल भी ले चलो। इतना कहकर नेताजी औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़े। तभी उनका बेटा दौड़ा हुआ आया और पैकेट खोलकर बोला- यह ‘गरम मसालाज् की सीडी है और आप अपने पास लेकर बैठे हैं। इतना कहकर वो सीडी लेकर चला गया। नेताजी ने चैन की सांस ली कि यह ‘गरम मसालाज् की सीडी है उनके कारनामों की नहीं।


धर्मेद्र केशरी

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