Tuesday, January 13, 2009

आखिर कब तक?

हिंदुस्तान की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादियों ने खुलेआम हमला बोला है। ऐसा हमला बोला है कि सबकी बोलती बंद हो गई है। चुनाव-चुनाव चिल्ला रहे राजनेताओं को सांप सूंघ गया है, लेकिन पक्के तौर पर वो इसे भी मुद्दा बनाकर चुनावी पटकथा तैयार कर रहे होंगे। यह निश्चित है कि राजनेता इस पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आए हैं।

अभी हालात बुरे हैं तो कोई अपनी जुबान नहीं खोल रहा है, लेकिन जरा सा मौका पाते ही आरोप-प्रत्यारोपों के लिए चोंगा सा मुंह खोल देंगे। अब मराठी-मराठी चिल्लाने वाले राज ठाकरे भी बिल में घुस गए हैं। वैसे भी उनके वश का कुछ है नहीं। ये वो लोग हैं, जो अपने पिछवाड़े पर ढाल और बुलेट और बुलेटप्रूफ जकेट पहनकर चलते हैं, ताकि भागते समय कोई इनके पिछवाड़े पर हमला न कर दे। कायर कहीं के। जब सेना को ही बॉर्डर से लेकर घर के अंदर ही जान की बाजी लगानी है तो लोकतंत्र की दुहाई क्यों देते हैं। ये सफेदपोश ऐसे हैं कि अपने स्वार्थ के लिए इमान का सौदा करने से भी कोई गुरेज नहीं। किसी एक की क्या बात करें, हर किसी की तो यही कहानी है। बेचारे हिंदुस्तानी बने ही हैं बर्दाश्त करने के लिए। बर्दाश्त करने वाली उम्र में अगर कोई प्रधानमंत्री बनेगा तो वो बर्दाश्त ही करता रहेगा, कार्रवाई करना तो उसके वश की बात है ही नहीं।

दिल्ली धमाके को बीते ज्यादा दिन नहीं बीते कि आतंकियों ने हमारी लाचारी फिर जाहिर कर दी है। नेता तो कर्महीन हैं ही, सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा संगठनों को भी सांप सूंघ गया है। इतनी बड़ी क्षति होने के बाद भी संयम से काम लेंगे? लेंगे क्यों नहीं अपनों को खोने का गम तो वो ही जानते हैं, जिनके अपने काल के गाल में समा गए। आतंकियों की हरकत तो वही वाली बात हो गई कि कोई खींचकर तमाचा जड़े तो बोलना कि अब मारोगे तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा, फिर चांटा खाने के बाद गाल पकड़कर बोलना कि अब मारोगे तो देख लेना, सामने वाला फिर मार देता है और हम बस दांत पीसते रह जाएं। यही हो रहा है हमारे मुल्क में भी मुल्क के आकाओं ने भी बर्दाश्त और संयम की वही घुट्टी पी और पिलाई है।

पड़ोसी कहते हैं कि वो मद्द करने को तैयार हैं, क्या आतंकियों की और भी खेप भेजकर हमारी मद्द करेंगे? अब तो जागो देश के मोहन प्यारों और प्लीज अलग-अलग जागने के बजाय मिल कर जागो तो बेहतर है नहीं तो भविष्य की जो रूपरेखा तय हो रही है, वो इससे भी वीभत्स और खतरनाक होगा। खद्दधारियों से सिर्फ एक ही सवाल है, आखिर कब तक?


धर्मेद्र केशरी

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