Tuesday, January 13, 2009

अंधविश्वास और विश्वास

एक बार मैं ऑफिस के बाहर खड़ा चाय पी रहा था। पीपल के पेड़ के नीचे चाय की दुकान है। अक्सर कबूतर और कई पक्षी सिर पर या कपड़ों पर बीट कर दिया करते हैं इसलिए चाय लेकर थोड़ा संभलना पड़ता है। जसे ही मैंने चाय की ग्लास संभाली थी कि मेरे ऊपर बीट गिरते-गिरते रह गया। मैंने दोस्तों से आग्रह किया कि चलो यहां से नहीं तो चाय के साथ कपड़ों का भी खाना खराब हो जाएगा। तभी मेरी एक दोस्त ने एक नए तरह के विश्वास से मेरा परिचय कराया। उसने बताया कि कबूतर का बीट शरीर पर गिरना शुभ होता है। कोई भी काम बन जाता है।

उस समय तो मैंने बोल दिया कि अंधविश्वासों को नहीं मानता हूं, लेकिन अंदर ही अंदर कोई और ख्याल पक रहा था। इस देश का नागरिक होने के कारण अंधविश्वास पर विश्वास करना मेरा परम कर्तव्य जो ठहरा। मैंने दिल में ही ठान लिया कि एक दिन मैं इन बीटों का फायदा जरूर उठाऊंगा। कुछ दिन बाद ही मेरा इंटरव्यू होने वाला था। इससे सही मौका इस अंधविश्वास को विश्वास बनाने के लिए कहां मिलने वाला था। खर, मैं बड़े सवेरे ही तैयार होकर चाय की दुकान पर पहुंच गया। चाय पीते-पीते मैं एकटक पेड़ के को देखता और कबूतर भगवान से प्रार्थना करता कि वो एक बीट तो कर दें।

काफी देर बाद भी एक भी बीट मेरे कपड़ों पर नहीं गिरी तो मैंने अर्जुन की तरह निशाना साधा और लक्ष्य साधकर बीटों को गिरता हुआ देखता। मेरी तपस्या सफल होने लगी थी। जिधर बीट गिरता मैं भी उधर ही भाग लेता। उसका फायदा यह हुआ कि मेरी सफेद शर्ट बीटों से रंगीन हो गई। कोई मुङो देखता तो हंसते हुए पढ़ा-लिखा पागल कहकर चल देता। मैं मन ही मन कहता रहा जिस दिन बिल्ली रास्ता काटेगी और कहीं जाने से पहले छींक आएगी और तेरा काम बिगड़ेगा, तब पूछूंगा हंसी किसे कहते हैं। बीटों से भरी शर्ट लेकर मैं पांच घंटे लेट इंटरव्यू के लिए पहुंचा। साक्षात्कार होते ही सामने बैठे लोग मुङो देख कर हंसने लगे और काम के सवाल पूछने के बजाय पूछ डाला- कितने दिन शर्ट नहीं साफ की है। बाद में उन्होंने कड़े शब्दों में नहा-धोकर, साफ शर्ट पहन कर आने की सलाह भी दे डाली।

उन्हें क्या पता कि मैं देश के बाशिंदों की तरह ही एक मिथक पर कई घंटों के साथ अपनी शर्ट भी बरबाद कर आया हूं। इंटरव्यू में सेलेक्शन तो नहीं हुआ, अलबत्ता हंसी का पात्र बन गया सो अलग। अंधविश्वास पर विश्वास करके मैंने अपना माखौल बना लिया। घर पहुंचते-पहुंचते लोग न जाने मुङो किन नजरों से देखते रहे। फिर मैंने कभी कबूतरों की बीटों पर भरासा नहीं किया।

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