Tuesday, January 13, 2009

‘बावनरूपी की लीला

इस समय मुङो नेताओं के अंदाज-ए-बयां पर बड़ा मजा आ रहा है। हर कोई अपने तरीके से वोटरों को रिझाने का प्रयास कर रहा है। एक दिन मैं घर से बाहर ही निकला था कि दूर से एक ब्लैक एंड वॉइट वस्तु मेरी ही ओर आती नजर आई। जसे ही वो ‘वस्तुज् नजदीक आई तो देखा कि एक चकाचक सफेद खद्दरधारी व्यक्ति काली भैंस पर हाथ जोड़े चले आ रहे थे।

उनके पीछे कुछ लोगों का हूजूम था, सबसे ज्यादा मजा तो बच्चों को आ रहा था। मैंने एक बंदे से रोककर पूछा- ये महानुभाव भैंस पर बैठकर क्या कर रहे हैं? उसने जवाब दिया- ये हमारे नेताजी हैं, भैंस पर बैठकर हमसे वोट का प्रसाद मांगने आए हैं। मुङो हंसी आ गई, वाह! क्या तरीका है वोट मांगने का। पर यह तो कुछ भी नहीं है। इनसे भी बड़े-बड़े धुरंधर अपने हथकंडे अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक जगह मंडली जमी हुई थी, चारों ओर कीर्तन-भजन हो रहा था। भीड़ से ‘छोटो मेरो मदन गोपालज् की ध्वनि आ रही थी। भक्ति-भाव से विभोर होकर हाथ जोड़े में भी भीड़ में घुस गया और उनके साथ ताल से ताल मिलाने लगा।

सामने एक चश्मे वाले भाई साहब ‘कृष्ण भक्तिज् में तल्लीनता से लगे हुए थे। बाद में पता चला कि वो गायक नहीं, बल्कि नेताजी थे, जो वोटर देवता को मनाने के लिए ‘कृष्ण रागज् छेड़ रहे थे। नेताजी के कृष्ण प्रेम का राज मुङो बाद में पता चला। खर, जसे-तैसे मैंने वहां से भागकर घर की ओर कूच किया। रास्ते में देखा कि चिरौंजी लाल अपने घर की सामने वाली नाली साफ कर रहा था। मुझसे पूछे बिना नहीं रह गया- अरे चिरौंजी, सफाई तो होती है, फिर तुम्हें नाली साफ करने की धुन कैसे सवार हो गई? उसका जवाब सुनकर मैं हंसे बिना नहीं रह सका, चिरौंजी बोला- भैया, मैं नाली साफ नहीं कर रहा हूं, बल्कि सड़क और नाली को और भी गंदा कर रहा हूं।

पता चला है कि कल फलाने नेता वोट मांगने आने वाले हैं, जीत गए तब भी, हारे तो कोई बात नहीं, पांच साल अपना चेहरा दिखाने से रहे। वो पाखंड करेंगे ही। इसलिए मैं यह गंदगी मचा रहा हूं ताकि सफाई का ढोंग करने वाले इसी बहाने कुछ सफाई तो करेंगे, बाद में तो इनके दर्शन भी दुर्लभ हो जाएंगे। जनता भी क्या करे, जिसे मौका देती है उसके ही भाव बढ़ जाते हैं। यही तो मौका है कुछ समय के लिए ही सही इन्हें सबक सिखा सकेंगे। चिरौंजी की बात भी सही थी, लेकिन यह नेता हैं, अभिनेताओं को भी मात दे दें इसलिए ‘बावनरुपज् रचकर लोगों को छलने का हौसला रखते हैं।


धर्मेद्र केशरी

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