Tuesday, January 13, 2009

पड़ोसी शैतान सिंह

कहावत है कि चोर चोरी से चला जाए, लेकिन हेराफेरी से कभी नहीं जा सकता है। और जो सिर्फ साव बनने का ढोंग कर रहा हो, वो तो कभी भी सुधर ही नहीं सकता है। यह कहावत हमारे पड़ोसी पर बिलकुल फिट बैठता है। हमारे पड़ोस में एक शैतान सिंह नाम का बंदा रहता है। वो लोगों अपने घर के लोगों को को सिर्फ हिंसा का ही पाठ पढ़ाता है। गाली-गलौज कैसे की जाती है, मारपीट करने का हुनर और जान तक लेने का गुण भी अपने लोगों को सिखाता रहता है। और तो और हमारे यहां के भगोड़ों को भी अपने घर में पनाह देता है।

हद तो तक हो जाती है, जब वो यह कहता है कि फलाना हमारे घर में है ही नहीं, जबकि वो दामाद की तरह उनकी सेवा कर रहा है। कानून की आड़ में खिलवाड़ करता रहता है हमारा पड़ोसी। चांइयों के सारे गुण उसमें मौजूद है। सच तो यह है कि वो सारे शहर को परेशान करने का माद्दा रखता है। पिछले दिनों उसी के इशारे पर हमारे घर में मार-काट मची। वो कहता है कि हमारी मद्द करेगा, लेकिन जब मद्द करने की बारी आई तो औकात दिखा दी। जब हमारे घर के मुखिया ने पड़ोस में ऐश कर रहे भगोड़ों की मांग की तो शैतान सिंह ने भी अपना असली चेहरा दिखा दिया। शैतान सिंह को सबूत चाहिए। उन मौतों का सबूत चाहिए, जो उसके इशारे पर हुआ है। उस छिने सूकून का सबूत चाहिए, जो कई घरों में नदारद है। उजड़ी मांगों का सबूत चाहिए, खाली गोदों का सबूत चाहिए, सूनी कलाइयों का सबूत चाहिए। खर, शैतान से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। उसे तो लाल रंग से प्यार होता है, फिर अपनों का बहे या पड़ोसी का उसे फर्क नहीं पड़ता है। बस लहू दिखना चाहिए।

अभी वो रक्तपिचाशों की वकालत कर रहा है। कह रहा है सबूत दो तो हम अपने तरीके से सजा देंगे। हां, फूलों की सेज पर बैठाकर उनकी आवभगत करेंगे, घर के भेदी जो ठहरे। शैतान सिंह यह भूल गया है हर बुराई का अंत जरूर होता है। उसका भी होगा। रस्सी तो जल गई, लेकिन अभी ऐंठन बरकरार है। सीधे घर में घुसने की हिम्मत नहीं है तो सेंधमारी कर रहा है। अपने पड़ोसी रिश्तेदारों के बल पर बहुत कूद रहा है शैतान, लेकिन जिस दिन पाप का घड़ा भरेगा कोई उसकी तरफदारी भी नहीं करने वाला। इस शैतान का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है, जसे कोई बगुला भक्त हो और मछली देखते ही झट से शिकार कर ले। ये है हमारा पड़ोसी शैतान सिंह। अब आप ही सोचिए ऐसे पड़ोसी के साथ क्या हो?


धर्मेद्र केशरी

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