Tuesday, January 13, 2009

तोता मैना की कहानी..


तोता मैना की कहानी पुरानी हो गई..। ये अब सच होता लग रहा है। बहुत पुरानी बात हो गई जब हमारी दादी, नानियां तोता-मैना के प्यार भरे किस्से सुनाया करती थीं। हमारे देश में भी ‘तोते-मैनाओंज् की संख्या भी कुछ कम नहीं है। कम क्या लगातार बढ़ रही है। और बढ़नी भी चाहिए, प्यार बढ़ने में तो कोई बुराई नहीं है। न ही सरकार ने इन्हें रोकने का कोई कानून बनाया है और न ही कोई पॉलिसी। एक दिन तोता और मैना दोनों उदास बैठे थे।

मैंने उनकी उदासी का कारण पूछा तो कहने लगे- आजकल हमें कोई पूछता ही नहीं है। पुराने लोग तो उनके किस्से सुनते थे, लेकिन अब कोई हमारे प्यार का किस्सा नहीं सुनता है। अब दादा-दादी परिवार से अलग कर दिए जाते हैं, कोई किस्सा सुनाए भी तो कैसे? और तो और तुम इंसानों ने ऐसी खुराफात कर दी है कि कोई हमारी कहानी ही नहीं सुनना चाहता है। मैंने कहा- मैना रानी, ये तो समझ में आता है कि परिवार में अलगाववाद हावी है, लेकिन इंसानों ने क्या खुरापात कर दी? तोते ने कहा- अच्छा, ज्यादा भोले मत बनो तुम्हें सब पता है।

प्यार तुम करोगे, बदनाम हमें होना पड़ता है। अब तो तुम्हारे यहां के राजनेता खुल कर रास रचाने लगे हैं। देखा नहीं, एक औरत के चक्कर में अच्छे-भले चंद्रमोहन, चांद मुहम्मद बन गए। अपने परिवार तक को छोड़ दिया। अरे यह भी कोई मुहब्बत होती है। हम भी प्यार करते थे, लेकिन किसी एक को ही, तुम लोगों की तरह ‘प्यार का प्रसादज् नहीं बांटते फिरते थे। अरे, आज से 25 साल पहले ‘चांद बाबूज् ऐसा कदम उठाते तो हम भी उन्हें अपनी सलामी देते, लेकिन 45 साल की उम्र में उन्हें तोता कहा जाए, मजनू या रांझा। वो तो ये सब भी नहीं कहे जा सकते हैं। एक वो भी हैं, आपके पुलिस अफसर, हां हां वही, ‘कलयुगी राधाज्। पांडा साहब पर इश्क की खुमारी बुढ़ापे में छाई और ढोंगी राधा तक बनने से नहीं चूके। वो भी पराई नार पर नजर डालने की हिमाकत कर बैठे।

अब बेमन से कृष्ण भजन कर रहे हैं। उनके तो भूले ही जा रहे हैं, जिन्होंने पढ़ाते-पढ़ाते अपनी शिष्या को ही बीवी बना लिया। अपनी पहली बीवी और बच्चों के बारे में भी नहीं सोचा। खर, उनकी माया वो ही जानें, लेकिन तुम्हीं बताओ जब यही सारा अटेंशन ले लेंगे तो हमें भला कौन पूछेगा। बच्चों के सामने इनके किस्से का गलत असर भी तो पड़ेगा। मैं तोता-मैना की परेशानी से सन्न रह गया। कह भी क्या सकता था, आखिर उन्होंने गलत कहां कहा था।


धर्मेद्र केशरी

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