Friday, March 20, 2009

अनोखा इंटरव्यू

अखबार के विज्ञापन पर मेरी नजर चली गई। मजमून कुछ ऐसा था- आवश्यकता है, ऐसे बंदों की जो कुछ भी आसानी से कैच कर सकते हों, उतनी ही ताकत से वापस फेंक सकते हों। शिक्षा अनिवार्य नहीं, कद का भी पंगा नहीं, तेवर जुझारू हों, वेतनमान- पांच अंकों में। विज्ञापन देखते ही मेरी बांछें खिल गईं। मैं ठहरा नाकामयाब क्रिकेटर, क्रिकेट में मैंने अपनी जवानी गंवा दी थी। एक खेल के चक्कर में दीन दुनिया से बेघबर मेरे जसे बंदे के लिए ये विज्ञापन किसी रामबाण से कम नहीं था। जो भी अर्हताएं थीं, में उनमें फिट बैठ रहा था। निकल लिया इंटरव्यू देने।

बढ़ी दाढ़ी और हाथ में तमाम खेल प्रशंसाओं का पुलिंदा लिए मैं साक्षात्कारकर्ता के सामने था। इंटरव्यू लेने वाले को देखकर मैं सोच में पड़ गया। मैंने सोचा था कि इंटरव्यू लेने वाला सूट-बूट-टाई में राजा बाबू बनकर बैठा होगा, पर ये महाशय तो सफेद खद्दर कपड़ों में पान चबाए कुर्सी पर लात धरे बैठे थे। वो एक नेता जी थे। मेरे पहुंचते ही पीकदान में पान थूकते हुए पूछा- क्या-क्या कर सकते हो? कैच-वैच करना जानते हो कि नहीं।

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा- सर, मैं अपनी गली का नामी क्रिकेटर हूं, मैं कैच पकड़ने में माहिर हूं। आपकी ओर से अच्छा क्रिकेट खेलूंगा। यकीन मानिए, आपकी टीम कभी हारेगी नहीं। इतना सुनते ही नेताजी बोले- वो सब तो ठीक है। लेकिन यहां कोई मैच-वैच नहीं खेलना है। मैं चकरा गया- मैच नहीं खेलना है तो फिर क्या करना है। नेताजी ने कहा- तुम माइक-वाइक कैच करने में माहिर हो या नहीं?

मैंने कहा- सर, मैंने आजतक सिर्फ गेंदें कैच की हैं, माइक तो नहीं। अब नेताजी खिसिया गए- लगता है तुमने विज्ञापन ठीक से नहीं देखा। मुङो ऐसा बंदा चाहिए, जो माइक, कुर्सी, कागज का गोला और पेपरवेट पकड़ने में माहिर हो। सिर्फ पकड़ने में ही नहीं, बल्कि पलट के वार करने में भी सक्षम हो और अगर कोई आंखें तरेरे तो पटकी-पटका करने में भी सक्षम हो। तुमने देखा नहीं हमारे यहां संसद हो या विधानसभाएं जमकर फेंकाफेंकी होती है। ऐसे में अकेल तो मैं सब कुछ कर नहीं सकता, इसीलिए विज्ञापन दिया था ताकि कोई मुस्तंडा मेरी ओर से लोहा ले सके। तुम इस पद के लायक नहीं हो, अगर ये सब कर सकते हो तो बोलो, कल से ही काम पर आ जाना। मेरा सिर घूम रहा था, मैंने तो सोचा था कि क्रिकेट की प्रैक्टिस भी हो जाएगी और कुछ रुपए भी आ जाएंगे, पर वहां तो कुछ और ही गड़बड़ घोटाला था। मैं सिर पकड़ते हुए ऑफिस से बाहर निकल आया।

धर्मेद्र केशरी

1 comment:

  1. shi mei wah kyyyyyyyyyyyyy likha hai, sardar khush hua.............., aage aise hi sardar ko khush krte rho,

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