Friday, March 20, 2009

रियासत की सियासत में वसीयत

कहते हैं कि आज तक हुई किसी भी लड़ाई के पीछे तीन ही कारण हुए हैं ‘जर, जोरू और जमीनज्। इनके चक्कर में भाई, भाई का दुश्मन हो जाता है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी जीती जिंदगी में कभी नहीं चाहा कि उनका परिवार भी जायदाद के फेर में पड़े, पर ऐसा हो नहीं पाया। बीते साल 27 नवंबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में वी पी सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।


वो 17 सालों से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और तभी से डायलिसिस पर चल रहे थे। उनकी राजनीतिक उपलब्ध्यिों की चर्चा करने के बजाय यहां पारिवारिक स्थितियों का जायजा लिया जा रहा है। उनके परिवार में जिस तरह से मतभेद चल रहे थे उससे यह तय हो गया था कि राजा मांडा की मौत के बाद जमीन-जायदाद को लेकर संघर्ष होना ही है, लेकिन यह नहीं पता था कि उनकी मौत के ठीक एक महीने बाद ही रियासत पर सियासत तेज हो जाएगी। 28 दिसंबर की रात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के पारिवारिक कलह की कलई भी खुल गई, जब वी पी सिंह के पौत्र अक्षय सिंह को कंपकंपाती सर्दी में मांडा कोठी से बेइज्जत करके बाहर निकाल दिया गया।


इलाहाबाद के मांडा क्षेत्र में वी पी सिंह की पुश्तैनी जमीन है। मांडा में ही उनका एक कोठी (मोतीमहल) भी है। सिर्फ कोठी ही नहीं आज भी अरबों से ज्यादा की संपत्ति उनके नाम है। अक्षय को वी पी सिंह के बड़े बेटे अजेय प्रताप सिंह के कहने पर वहां के रखवालों ने खदेड़ दिया। अक्षय ने मांडा थाने में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया। दरअसल, विश्वनाथ प्रताप के मृत्यु के पहले ही उनके परिवार में घमासान मच चुका था। राजा मांडा के दो बेटे हैं, बड़े हैं अजेय प्रताप सिंह और छोटे डॉक्टर अभय प्रताप सिंह।


अजेय प्रताप की दो बेटियां हैं, जबकि अभय को एक बेटी और एक बेटा है। अक्षय अभय प्रताप की ही संतान हैं। पहले वी पी सिंह का पूरा परिवार मांडा और इलाहाबाद की कोठियों में ही रहा करता था, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अजेय सिंह और उनकी पत्नी श्रुति सिंह भी उनके साथ दिल्ली आ गए। अभय की शादी मनकापुर रियासत के राजा आनंद सिंह की बेटी निहारिका सिंह से हुई। शादी के बाद वो अमेरिका चले गए।


सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन पता नहीं किन कारणों से निहारिका बच्चों को लेकर हिंदुस्तान वापस आ गईं। उधर अभय प्रताप सिंह ने अमेरिका की नागरिकता भी हासिल कर ली और निहारिका को तलाक दे दिया। खर, संबंध विच्छेद क्यों हुआ ये कोई बताने को तैयार नहीं, लेकिन तलाक के बाद भी निहारिका और अभय में बातचीत होती थी।


इकलौता पौत्र होने के वजह से वी पी सिंह अक्षय को बहुत प्यार करते थे। यही वजह था कि अक्षय वी पी सिंह के साथ कई राजनीतिक दौरों पर भी जा चुके थे। अक्षय को विरासत का दावेदार माना जा रहा था, पर असलियत कुछ और थी। वी पी सिंह की मौत के कुछ महीने पहले बने वसीयत के आधार पर 6 गांव मांडा, नेहरू प्लेस नई दिल्ली का बेसमेंट, ऐश महल इलाहाबाद, खानदानी सिंहासन और समस्त चांदी अपने बड़े बेटे अजेय प्रताप सिंह के नाम कर दिया गया। दिल्ली की जायदाद जसे,बाराखंभा रोड, नेताजी सुभाष पैलेस, कैलाश कॉलोनी मार्केट और उत्तरांचल स्थित मांडा कोठी की मिल्कियत उन्होंने अपनी पत्नी सीता कुमारी के नाम किया है।


वसीयत के मुताबिक सीता कुमारी की मृत्यु के बाद ही अभय प्रताप उस संपत्ति के वारिस होंगे। दरअसल, अजेय प्रताप सिंह अपने पिता की राजनीतिक विरासत के अलावा संपत्ति का मालिकाना हक लेने के भी फिराक में हैं। खबर है कि अजेय मायावती की पार्टी से हाथ मिलाने वाले हैं और हो सकता है मायावती फतेहपुर लोकसभा सीट पर उन्हें मौका भी दे दें। बसपा से संबंध मधुर होने के वजह से ही अक्षय की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया। अजेय के मुकाबले अभय सज्जन किस्म के हैं। वो अपने ‘दादाभाईज् से बगावत करने से रहे, लिहाजा अक्षय की मां निहारिका अपने हक के लिए आगे आ गई हैं। अब लड़ाई मांडा स्टेट बनाम मनकापुर स्टेट हो गया है। आने वाले दिनों में मांडा से निकला ये संघर्ष और भी बड़ा हो सकता है।


अक्षय की मां निहारिका सिंह की चिंता भी जायज है। वो कहती हैं कि ‘अक्षय अगर वकील, डॉक्टर, टीचर या किसी प्रोफेशन में होते तो मैं चुपचाप बैठ जाती, लेकिन अक्षय के सामने जीविका का कोई साधन नहीं है ऐसे में पुश्तैनी जायदादा ही काम आती है।ज् उन्हें वी पी सिंह की मौत से पहले ही यह अंदेशा हो गया था कि अक्षय को प्रॉपर्टी से बेदखल किया जा सकता है, क्योंकि उनकी तरफ से (वीपी सिंह, अजेय सिंह, अभय सिंह और सीता देवी) अदालत में एक चेतावनी नोटिस दी गई थी कि अगर कोई प्रॉपर्टी पर हक का दावा करे तो उनका पक्ष भी सुना जाए।

निहारिका को लगता है कि असली वसीयत से छेड़छाड़ की गई है। उनको अपने पति से कोई शिकवा नहीं है। निहारिका ये भी कहती हैं कि उनके परिवार की ये परंपरा नहीं है कि वो कोर्ट-कचहरी में खड़े हों, अगर घर के लोग नाइंसाफी न करते तो ऐसी नौबत ही नहीं आती।

धर्मेद्र केशरी, नई दिल्ली

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