Monday, March 30, 2009

आजाद देश के गुलाम

देश की आजादी को कितने साल हो गए होंगे। गुस्सा मत होइए। आपको पता है, लेकिन कसम खा के कहता हूं कई लोगों को ये भी नहीं याद होगा कि हम कब आजाद हुए थे। रोजी-रोटी का चक्कर ही ऐसा है बाबू। आजादी मिले साठ साल पार हो चुके हैं। अब हम गुलाम नहीं है। ऐसा ही कुछ भाषणबाजी मैं अपने दोस्तों में कर रहा था। मैं ठहरा पत्रकार, तो मेरे दोस्त भी मेरी बात पर कान धर के सुन रहे थे। तभी मेरा पुराना दोस्त चिरकुट प्रसाद जोर से बोला- किसने कहा गुलाम नहीं है हम? मैं सिटपिटा कर उसकी ओर देखने लगा, फिर बोला- बेटा, अपने देशवासियों की बात कर रहा हूं।

मेरी बात सुनकर उसकी भौंहे चढ़ गई, बोला- मैं कहां का रहने वाला हूं, इसी देश का ना! फिर भी बाप-दादा का कर्ज उतारने के लिए मुफ्त में कब से खप रहा हूं। बता, गुलाम हुआ कि नहीं! खर, मेरी छोड़ तू जिस भारतीय क्रिकेट पर नाज करता है, उनके खिलाड़ियों के बारे में बता, क्या उनका हाल भी सालों पुराने गुलामी प्रथा की तरह नहीं है। देश के लिए खेलते हैं तो गर्व होता है, लेकिन आईपीएल के लिए अपने मालिकों की बात नहीं मान रहे हैं क्या। मालिक जो कहेंगे, ये वही करेंगे। कहेंगे दक्षिण अफ्रीका चलना है, वहां मैच खेलना है। भले ही देश के भविष्य की बात क्यों न हो, लेकिन इन्हें वोट से ज्यादा क्रिकेट से मिलने वाले पैसे पर ध्यान देना होगा।

वैसे भी बीसीसीआई को पैसों की खनक से मतलब है, वोट, सरकार, देश के भविष्य से उसका क्या लेना-देना। पैसे होंगे तो किसी की भी सरकार हो, रहेगी इनके पीछे ही। बेचारे खिलाड़ी खुलकर अपना दर्द भी बयां नहीं कर सकते। बता, ये गुलामी है कि नहीं। बीसीसीआई पूंजीवादी मालिकों की तरह व्यवहार नहीं करती! करती है और ये बात सभी को पता है। हां, थोड़ा हाइक्लास गुलामी कह सकता है। अंतर सिर्फ इतना है कि कभी गोरों ने हमसे गुलामी करवाई, अब भारतीय ही हमसे वही काम करने को कह रहे हैं।

सच्चाई तो यही है कि यहां हर कोई किसी न किसी का गुलाम है। इस पूंजीवादी दौर में हर कोई गुलाम बनने को मजबूर है। सदियों पुराना नियम है, जिसके हाथ में पैसा है, ताकत है, वही मालिक है। अपने नेताओं को भी देख ले। इतना कहकर वो हाथ में झोला लटकाए निकल गया। मैं सोच में पड़ गया कि आखिर हम सच में आजाद हैं या आजाद देश के गुलाम!
धर्मेद्र केशरी

1 comment:

  1. watevr u r syin iz really very TRUE....totallly agreein...:)

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