Wednesday, June 17, 2009

नेकी कर जूते खा

जमाना कितना बदल गया है। जमाने और लोगों तक तो ठीक था, इस बदलाव ने मुहावरों तक को बदल दिया है। सुबह जब मैं ऑफिस के लिए रवाना हो रहा था तभी मेरी नजर एक बस के पीछे लिखे शब्दों पर पड़ी। वहां लिखा था ‘नेकी कर जूते खा, मैंने खाए तू भी खा। पढ़कर हंसी आ गई, लेकिन इस वाक्य ने मौजूदा हालात का फलसफा बयां कर दिया। पहले कहा जाता था ‘नेकी कर दरिया में डाल यानी कोई भला काम करके भूल जाओ, लेकिन अब तो मामला उल्टा है।

‘नेकी कर जूते खा सुनकर ही पता चल जाता है कि लोग कितने बदल चुके हैं। अवसरवादियों से मार खाए लोग कोई नेकी भरा काम करना ही नहीं करना चाहता है। आज के जमाने में नेकी का जवाब भी धोखे से मिलता है, वैसे भी विकास के नाम पर दरिया सूख रहे हैं। नेकी कर डालें भी तो कहां! इसलिए बेचारे दर्द भरे कवि ने इस मुहावरे का सृजन कर डाला। सुबह की शुरुआत ही अनोखे मुहावरे से हुई तो शाम कैसे खाली जाती। मैं अपने दोस्त के साथ दिल्ली की सड़कों पर गुजर रहा था।

रेडलाइट पर गाड़ी रुकी तो एक भिखारी महोदय हमारी ओर आए। तब तक ठक-ठक करते रहे, जब तक कार का शीशा नहीं खुला। शीशा सरकते ही उसकी आवाज कानों में आई ‘तुम पांच रुपए दोगे वो एक लाख देगा। भिखारी के मांगने के अंदाज को देखकर मैं मुस्कुराने लगा। मैंने पूछा- एक बात बताओ जिस गाने पर तुमने मांगा वो कुछ इस तरह है कि ‘तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा, फिर तुम पांच रुपए क्यों मांग रहे हो और एक ही लाख मिलने की बात कर रहे हो। भिखारी मुङो ऊपर से नीचे तक देखने लगा। बोला- साब, किस दुनिया में जी रहे हो। एक पैसा चलना कब का बंद हो गया, अब एक रुपए में कुछ होता नहीं है इसलिए पांच रुपए मांग रहा हूं।

पहले मैं सीधे दस रुपए मांगता था, लेकिन जब से मंदी शुरू हुई है मेरी भीख में भी कटौती हो गई है। मैं सरकार नहीं हूं, लेकिन आप लोगों का हाल समझता हूं इसलिए पांच रुपए ही मांग रहा हूं। एक बात और बताऊं आपको, मैं प्रोफेशनल और प्रैक्टिकल भिखारी हूं। मुङो पता है कि भगवान भी घाटे में चल रहे हैं, ऐसे में ज्यादा फेंकना नहीं चाहिए, दस लाख क्या एक रुपए भी वापसी की कोई श्योर गारंटी तो होती नहीं है, इसलिए एक लाख रुपए मिलने की ही बात करता हूं। अब तुम्हें पांच रुपए देने हैं या॥। मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा दोस्त बोल पड़ा- गुरु, जिससे तुम एक लाख दिलाने की बात कर रहे हो, उसी से ही मांग लो और कार का शीशा चढ़ाकर गाड़ी आगे बढ़ा दी।
धर्मेद्र केशरी

2 comments:

  1. नेकी कर जूते पहन
    खा तो नेताओं ने लिए
    चुनावों में बहुतेरे

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  2. सही लिखा है जी.....नेकी कर....

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