Wednesday, June 17, 2009

पी आर की महिमा

आजकल एक शब्द ने सबको हैरान कर दिया है। वो है पी आर यानी ‘पब्लिक रिलेशनज्। भइया पी आर का जमाना है। जिसका पूरा फायदा कांग्रेस उठा रही है। कांग्रेस की नई पीढ़ी जानती है कि काम के साथ नाम बहुत जरूरी है। इस शब्द ने कई नेताओं के होश उड़ा दिए कि आखिर ये मुंआ पी आर है क्या बला। जब राहुल गांधी दलित की झोपड़ी में रात बिता रहे थे और कलावती के दर्द को सार्वजनिक कर रहे थे तो दंतहीन नेता खींसे चिंघाड़कर गा रहे थे कि ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला, लेकिन परिणामों की चोट से वो समझ गए हैं कि राहुल क्या कर रहे थे।

हर पार्टी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की जीत हासिल करने की, लेकिन जिनका पी आर मजबूत था, उन्हें ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। कांग्रेस भी वही कर रही है, काम तो करना ही साथ नाम करना भी। राहुल ने युवाओं के बीच ‘पी आर बनायाज् और मैडम महिलाओं के बीच अपनी पैठ और भी गहरी कर रही हैं। मनमोहन सिंह देश के पहले सिख प्रधानमंत्री, प्रतिभा पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति और अब पहली महिला स्पीकर।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो मीरा कुमार भी इतिहास रचेंगी। ये सब कुछ इसी ‘पी आरज् के तहत हो रहा है। दरअसल, मैडम को पता है कि भारतीय जनता समझदार से ज्यादा भावुक है। भावुकता को कैश कराने के लिए ऐसे कदम उठाने जरूरी होते हैं। वैसे कांग्रेस जो भी कदम उठा रही है, उसमें जनता का भला और जागरूकता साफ दिख रही है, जो बेहद अहम है। ‘पी आरज् करने में कांग्रेस अन्य पार्टियों से कहीं आगे है। विपक्ष के नेता का मान सम्मान कर वो लोगों की नजर में अपनी मृदुभाषी पहचान कायम रखना चाहते हैं।

भगवा पार्टी व्यावहारिकता पर अमल करने के बजाय सपनों में तैरती रही। लोगों के बीच अपनी जो पहचान बनाई, उसी का परिणाम देखने को मिल रहा है। पी आर की माया आरएसएस को समझ में आने लगी है। यही वजह है कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उनका नरम बयान सुनने को मिला। उनका कहना था कि फिलहाल देश को ऐसी ही सरकार की जरूरत है। ये भी एक तरह का पी आर है, जो भगवा पार्टी अब समझ गई है। लालू प्रसाद को तो पी आरकी जबरदस्त याद सता रही है। रेल मंत्रालय को फायदे में लाकर तो उन्होंने पी आर बनाया, लेकिन जनता को सरेआम गालियां देकर सब गुड़-गोबर कर लिया। बस, अमर सिंह थोड़े अलग हैं। वो पहले भी फिल्मी कलाकारों से पी आर बनाते थे और आज भी।
धर्मेद्र केशरी

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