Wednesday, October 7, 2009

..तुझको चलना होगा

कहते हैं कि दिल से और मेहनत से किया गया कोई भी काम जाया नहीं होता है। देर से ही सही, लेकिन मेहनत का फल जरूर मिलता है। मन्ना डे दशकों से लोगों को सुरीले गीतों का गुलदस्ता देते आए हैं, लेकिन अब जाकर उनकी कला का आंकलन हुआ है। सुरीले गायक मन्ना डे को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।

वैसे इस कलाकार को सम्मान और पुरस्कारों का कोई मोह नहीं रहा है, पर ये भी सच है कि ये पुरस्कार उन्हें कहीं पहले मिल जाना चाहिए था। भारतीय फिल्म संगीत में दिए गए उनके योगदान को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ये सम्मान देने में देरी हुई है।
1 मई 1919 को पूरण चंद्र और महामाया के यहां पश्चिम बंगाल में जन्में प्रबोध चंद्र डे संगीत की दुनिया में इतना बड़ा मुकाम हासिल करेंगे, ये किसी ने सोचा भी नहीं था। मन्ना डे इनके घर का नाम था और यही नाम बाद में मील का पत्थर बन गया।

मन्ना डे का नाम हिंदी और बंगाली गायकों में शान से लिया जाता है। अपने गायन करियर में करीब 3500 गीतों को उन्होंने अपनी सुरीली आवाज से सजाया है। इनमें से कई गाने उन्होंने किशोर कुमार, मोहम्मद रफी और मुकेश के साथ भी गाया है।
मन्ना डे का जन्म कलकत्ता में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी उनकी वहीं हुई। स्कॉटिश चर्च कॉलेज के दिनों में मन्ना डे अपने साथियों की फरमाइश पर अक्सर गाया करते थे। बचपन में उनकी रुचि बॉक्सिंग में थी। उनके चाचा के सी डे ने उन्हें संगीत की बारिकियों से परिचित कराया। इसके अलावा उन्हें छुटपन में ही उस्ताद दाबिर खां का संस्कार प्राप्त हुआ है। 1942 में उन्होंने मुंबई का रुख किया और कृष्णा चंद्र डे व सचिन बर्मन के साथ काम करना शुरू किया। यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई।

मन्ना डे के गानों की एक खास बात रही है, खास बात ये कि उन्होंने अपने गानों में शास्त्रीय गायन को हमेशा जिंदा रखा। शास्त्रीय गायन सीखने के लिए उन्होंने उस्ताद अमान अली खान और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से संगीत की दीक्षा भी ली है।
कम ही लोगों को पता है कि मन्ना डे ने फिल्म में अभिनय भी किया है। ‘रामराज्यज् फिल्म में मन्ना डे साहब ने गायन के साथ-साथ अभिनय भी किया। ‘रामराज्यज् इकलौती हिंदी फिल्म है, जो गांधी जी ने भी देखी। फिल्म ‘तमन्नाज् से उन्होंने पाश्र्व गायन में पूरी तन्मयता से कदम रखा। इसें बाद उन्होंने ‘महाकविज्,‘विक्रमादित्यज्,‘प्रभु का घरज्,‘बाल्मिकीज् और ‘गीत गोविंदज् जसी फिल्मों में अपनी आवाज दी।

उन दिनों वो साल भर में एक बार ही गाने का मौका पाते थे, क्योंकि उस दौर में फिल्में कम बना करती थीं। 50 के दशक में मन्ना डे का नाम इंडस्ट्री के बड़े गायकों में शुमार किया जाने लगा। उन दिनों राजकपूर की फिल्मों का बोलबाला था। राजकपूर के लिए अक्सर मुकेश ही गाया करते थे, पर मन्ना डे की गायन क्षमता से राज साहब भी प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने ‘श्री 420ज् और ‘मेरा नाम जोकरज् में उनसे गाना गवाया। ‘ए भाई जरा देख के चलोज् आज भी उसी शिद्दत से सुना जाता

के बैनर तले बनी फिल्म ‘बॉबीज् का ‘ना मांगूं सोना चांदीज् में भी मन्ना डे ने अपनी आवाज दी है।
मन्ना डे की सुरीली आवाज हर दौर के लोगों की पसंद बनी। उन्होंने ‘शोलेज्,‘लावारिसज्,‘सत्यम शिवम सुंदरमज्,‘क्रांतिज्,‘कर्जज्,‘सौदागरज्,‘हिंदुस्तान की कसमज्, जसी तमाम फिल्मों के गीतों को स्वर दिया। उन्होंने देश के महान शास्त्रीय गायकों में शुमार पंडित भीमसेन जोशी के साथ केतकी गुलाब जूही चंपक बन फूले गाकर अपनी अद्वितीय सुर साधना का परिचय दिया। मन्ना डे द्वारा गाए हिट गानों की लंबी फेहरिस्त है, जो उस जमाने में रिकार्ड तोड़ तो सुनी ही जाती थी आज के दौर में भी उतना ही हिट है। फिल्म ‘शोलेज् में किशोर कुमार के साथ गाया ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगेज् इतना हिट हुआ कि आम लोग आज भी इस गाने को गाकर ही अपनी दोस्ती की मिसाल पेश किया करते हैं।


उन्होंने हर तरह के गानों से संगीत का गुलदस्ता सजाया है। रुमानी गीतों में मन्ना डे का अंदाज दिल की गहराइयों को छूने में कोई कसर नहीं छोड़ता। आ जा सनम मधुर चांदनी में हम, प्यार हुआ इकरार हुआ, हर तरफ अब यही अफसाने हैं, मेरे दिल में है इक बात, जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो, ये रात भीगी-भीगी ये मस्त नजारे, चुनरी संभाल गोरी उड़ी-उड़ी जाए रे, ये हवा ये नदी का किनारा में वो रुमानियत महसूस की जा सकती है। क्लासिकल गीतों को गाने में तो जसे उन्हें महारथ हासिल है, रितु आए रितु जाए, छम-छम बाजे रे पायलिया, भोर आई गया अंधियारा,आयो रे कहां से घनश्याम, लागा चुनरी में दाग को याद करना सुहाता है, वहीं जानी-मानी मद्धिम लय में ऐ मेरी जोहरा जबीं, ये इश्क इश्क है, यारी है इमान मेरा, न तो कारवां की तलाश है जसी कव्वाली और महफिल के गीत भी खासे लोकप्रिय रहे हैं। कव्वाली के लिए तो उन्हें ही याद किया जाता रहा है।


फिलासफी से भरे गीत भी मन्ना डे ने खूब गाए हैं। उन गानों में जिंदगी कैसी ये पहेली हाय, चुनरिया कटती जाए रे उमरिया घटती जाए रे, क्या मार सकेगी मौत औरों के लिए जो जीता है, नदिया चले चले रे धारा, हंसने की चाह ने मुङो कितना रुलाया है, कसमें वादे प्यार वफा सब॥ प्रमुख हैं। संगीतकार आनंद जी ने जब कसमें वादे प्यार वफा गाने के लिए मन्ना डे को कहा तो उन्होंने समझा कि ये तेज गति से चलने वाला गीत होगा, लेकिन आनंद जी ने बताया कि इस गाने का टेम्पो ऐ मेरे प्यार वतन की तरह है तो वो खुश हो गए।

भक्ति गीत गाने की वजह से एक समय उनके ऊपर भक्ति गायक का ठप्पा भी लगाया गया। दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा भी उन्हें कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
मन्ना डे को 1969 में फिल्म ‘मेरे हुजूरज् के लिए और 1971 में बांग्ला फिल्म ‘निशी पद्मज् के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। मध्य प्रदेश सरकार 1985 में उन्हें लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। जिंदगी के नब्बे साल पूरे कर चुके इस बेहतरीन गायक को किसी पुरस्कार से तोला नहीं जा सकता है। उनकी उपस्थिति ही हमारे लिए दो सदियों को जीवन्त और गौरवान्वित करने वाले दस्तावेज की तरह है।
धर्मेद्र केशरी

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