Friday, October 2, 2009

हमारी भी अरज सुनो

यही होना बाकी था। कुछ देर घर से बाहर सुकून से बिताने को मिलते थे, अब इंसाफ के तराजू में उसे भी तौल दिया गया। क्या बताऊं, पुरुष होना गुनाह हो गया है। हमारे दर्द, दुख को कोई भी सुनने वाला नहीं है। बताओ भला, ये कोई बात हुई। हर मोड़ पर धमकियां सुनने को मिलती ही हैं, मुंबई हाइकोर्ट ने एक और परेशानी बढ़ा दी। देर से घर लौटे तो कानूनी कार्यवाही होगी। हे राम, अब करें भी तो क्या। एक तो वैसे ही हर वक्त सेटेलाइट की तरह इनके संपर्क में रहते थे। क्यों,कैसे,कब,कहां,क्या कर रहे हैं, ये जानकारियां उपलब्ध करानी ही पड़ती थी, एक और बवाल।

घर में जितनी देर भी रहो मोहतरमा चैन की सांस के लेने के लिए भी ताने मारती थीं, भागकर ऑफिस आते थे, लेकिन अब तो यहां भी उनकी मर्जी चल रही है। घर से बाहर क्यों थे, बताओ। क्या बताऊं कि ये दुर्दशा ङोली नहीं जाती है। क्या बताऊं कि बाहर शेर बना रहता हूं, घर पहुंचने पर ही शक्ल बदल जाती है। घर से बाहर रहकर बीवी रूपी अटैक से बचा रहता हूं, लेकिन घर आते ही, इनके तीरों से घायल। और तो और अब बहाने भी नहीं बना सकते। बहाना बनाया कि अंदर। देर से आने का स्पष्टीकरण भी देना पड़ेगा। हे भगवान, अब पति-पत्नी का ये साथ आपसी कम कागजी ज्यादा होता जा रहा है। अभी कल को कहेंगी कि फलां त्योहार पर फलां जेवर चाहिए। बंदा काम करेगा, तभी कुछ और हासिल करके मैडम की इच्छाओं की पूर्ति करेगा। जाहिर है देर रात काम करना पड़ सकता है।

अब तो ये भी नहीं कर सकते, कोर्ट का डंडा जो चल गया है, लेकिन ये भी तय है कि उनकी मुरादों को पूरा करने के लिए आधी रात क्या, सारा दिन-पूरी रात काम करके भी आएं तो वो बुरा नहीं मानेंगी और शिकायत भी नहीं करेंगी। बातों ही बातों में तो ये जबरदस्त आइडिया निकल कर आ गया गुरु। पर ध्यान से कहीं ये प्लान भी घ्वस्त न हो जाए। अभी तक तो मोहतरमा दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की धमकियां दिया करती थीं, अब उनके हाथ एक और अस्त्र लग गया है।

भगवान ही जानते हैं शादी के बाद आवाज ही नहीं निकलती मांगूंगा क्या खाक! फिल्मों में देखा करता था कि मायके जाने की धमकियां दिया करती थीं, लेकिन अब तो मायके जाने का नाम भी नहीं लेतीं, धमकी तो दूर की बात है। उल्टा मुङो ही घर से निकालने की बात करती हैं। अब तो भगवान ही मालिक हैं हमारे चैन, अमन और सूकून का।
धर्मेद्र केशरी

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