Saturday, October 24, 2009

दलित की झोपड़ी में

एक दिन मेरा भी मन हुआ कि नेता बनकर देखता हूं। नेता बनना कोई मुश्किल काम तो है नहीं। झूठ बोलने में महारत हासिल होनी चाहिए। झूठ तो मैं बचपन से ही बोलता आ रहा हूं। स्कूल,कॉलेज हर जगह कइयों बार झूठ बोलकर अपना काम साधा है। नेतागिरी के इस अर्हता को मैं अच्छे से पूरा कर सकता हूं।


लिहाजा सफेद खद्दर के कपड़ों को सिलवाकर दूसरे दिन ही निकल पड़ा अपने मुहल्ले में। चचा चूरन ने कभी मुङो इस भेष में देखा नहीं था। उन्हें लगा मैं किसी फैंसी ड्रेस कम्पटीशन में जा रहा हूं या ड्रामे में नेता-वेता का रोल कर रहा हूं, पर जब उन्होंन सच्चाई जानी तो दंग रह गए। मेरा पीठ ठोंकते हुए भ्गवान से और भी झूठ बुलवाने की दुआ की।


खर, चचा चूरन से फारिग होकर आगे ही बढ़ा था कि सूरन सिंह मिल गए। उन्होंने मेरे रंग-ढंग का प्रयोजन समझा तो समझाने बैठ गए। असल में वो एक हारे और दुत्कारे हुए नेता रह चुके थे। अक्सर असफल लोग ही सफलता का मूल मंत्र दिया करते हैं, जसे टीवी पर फ्लॉप क्रिकेटर, म्यूजिक रियलिटी शो में फ्लॉप सिंगर और भी न जाने क्या-क्या।


खर, मुङो गुरु के रूप में सूरन सिंह की अमृतवाणी सुनने को मिल रही थीं। वही घिसे-पिटे पुराने राग सुनकर बोर हो रहा था। घोटाला, दलाली, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, झूठ में तो मैं अर्जुन की तरह पारंग त हूं ही। चचा से कहा कुछ नया आइडिया तो। चचा ने पास के दलित बस्ती में रात बिताने चले जाओ। आजकल लोग यही करके अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। मुङो ये बात बड़ी मार्के की लगी। मैं भी पहुंच गया रात बिताने दलित की झोपड़ी में।


मैंने टीवी पर एक महाशय को देखा था कि उन्होंने दलित के घर के बाहर मेज पर बैठकर खाना तो खाया, पर वो खाना उसके चूल्हे से नहीं था, बल्कि बाहर से मंगवाया था। नेता बनना था, इसलिए मन मारकर चल पड़ा उसी राह। हां, अपने साथ एक खाना बनाने वाला और भाड़े के कुछ टट्ट भी ले लिए। पहुंच गया एक झोपड़ी के बाहर, बोला- रात बिताने आया हूं। दरवाजा खोलने वाली महिला ने ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा और बोली तुङो शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए। तेरा घर नहीं है, जो तू यहां अपनी रात काटेगा।


मैं सन्न, सोचा कुछ हो रहा कुछ और। काफी मनाने पर वो महिला मान गई। मैंने भी साथ गए खानसामे को खाना बनाने के लिए कह दिया। इतना सुनते ही उस महिला का पारा चढ़ गया और वो ढोंगी, राक्षस का उपाधि देते हुए बेलनों से पिल पड़ी। अजी दलित के घर में रात बिताने को कौन कहे, सिर पर पैर रखकर भागे कि कहीं नेता बनने से पहले ही जूतिया न दिए जाएं।
धर्मेद्र केशरी

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