Friday, September 4, 2009

महाभारत का आधुनिक एपिसोड

महाभारत देखने वालों को आजकल नए महाभारत में बहुत मजा आ रहा है। बी आर चोपड़ा ने अपने धारावाहिक महाभारत को बंद कर दिया तो क्या हुआ, दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए रियल लाइफ में कई धृतराष्ट्र और दुर्योधन हैं। अब भाजपा को ही देख लीजिए। ऐसा लगता है, जसे महाभारत के आधुनिक एपिसोडों का प्रसारण हो रहा हो।


पार्टी में ऐसी घमासान मची है कि पूछिए ही मत। महाभारत में तो फिर भी ठीक था कि दुर्योधन के भाई बंधु उसका साथ देते दिख रहे थे, लेकिन इस आधुनिक महाभारत में अपने ही दर्द देते नजर आ रहे हैं। पार्टी उसूलों, सिद्धांतो से दूर निकल चुकी है। हालात ऐसे बन गए हैं कि न तो निगला जा रहा है और न ही उगला। जिन्ना का जिन्न एक बार आडवाणी के भी सिर पर आया था, खूब हाय तौबा भी मची, पर अबकी जसी हालत नहीं थी। जसवंत सिंह को तो अपनी बात कहने तक का मौका नहीं मिला।


वो बस बरबराते रहे कि हमें तो किनारे कर दिया, आडवाणी जी के सुरखाब के पर लगे थे। सच कहें तो महाभारत कम रामायण का सीन भाजपा में ज्यादा बन रहा है। ‘घर का भेदी लंका ढाएज्, विभीषण ने भले ही रामकाज को अच्छे तरीके से चलाने के लिए श्रीरामचंद्र जी से हाथ मिला लिया हो, लेकिन कहा तो उन्हें घर का भेदी ही जाता है। कुछ ऐसा ही हाल भाजपा के नेताओं का भी है।
अंदर की बातें बाहर करने में जरा भी नहीं हिचक रहे हैं लोग। भाजपा में एक नहीं, बल्कि कई विभीषण पैदा हो गए हैं, जो अदृश्य रूप से अपनी ही जड़ खोदने में लगे हैं। एक तो हर कोई सिंहासन झटकने के मूड में है। बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है, इसलिए इसकी टोपी उसके सिर किया जा रहा है कि क्या पता इस बहती गंगा में हाथ ही धो लें।

ये भूलकर कि ये कोई मखमली सिंहासन नहीं, बल्कि कांटों की सेज पर सोने जसा होगा, पर किसी न किसी को तो आना ही है, मगर कोई एक ऐसा बंदा नहीं है, जो अपनी जिम्मेदारियों से नाता जोड़ ले। लोक सभा चुनावों ने वैसे भी पार्टी की हालत पतली कर दी है। आगे श्रीराम ही मालिक। वैसे भगवान राम भी तंग आ गए हैं, इनके रोज-रोज के दल बदलने से, इसलिए वो भी चुपचाप हैं, क्योंकि उनके इन्ही कथित बंदों ने उन्हें मानहानि पहुंचाया है।


कहते हैं दूसरे के घर में झगड़ा देखने में पड़ोसियों को बहुत मजा आता। कांग्रेस कुछ वैसे ही चटखारे लेकर चुपचाप जायके का मजा उठा रही है, ये भूलकर कि वक्त से किसकी यारी है, आज मेरी तो कल तेरी बारी है।
धर्मेद्र केशरी

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