जिन्न विन्न से बचकर ही रहना चाहिए। कब, कौन, क्या गुल खिला जाए कहा नहीं जा सकता है, पर लोग जिन्नों से बचना कहां चाहते हैं। दरअसल, बचपन में पीपल के पेड़ के पास से खासकर दोपहर को गुजरते वक्त हर बड़े हो चुके बच्चे ने ये कहानी सुनी होगी कि पीपल के पेड़ पर जिन्नों का वास होता है, जो नुकसान भी पहुंचा सकते हैं और फायदा भी। वैसे मेरे घरवाले फायदे की कहानी ज्यादा बताते रहे हैं। फिर अलादीन के जिन्न की कहानी भी तो देख रखी है। यकीन मानिए, सोते-जागते वैसे ही जिन्न की कामना करता हूं, ताकि बिगड़े काम आसानी से बन जाएं। ये तो रही मेरी बात, अब मुद्दे की बात।
जसवंत सिंह ने भी कुछ ऐसा ही सोचकर जिन्ना के जिन्न का आह्वान किया था। जिन्ना का जिन्न आया भी, लेकिन उन्हें पार्टी से बाहर कराकर ही दम लिया। जसवंत सिंह जिन्ना के जिन्न से बखूबी परिचित भी हैं। कई साल पहले जिन्ना के जिन्न ने बवाल मचवाया था। फिर भी वो जिन्ना के जिन्न को बुलाने से नहीं चूके। सिंह साहब ने सोचा जिन्ना का जिन्न उनकी मदद कर सकता है। मदद कौन सी चाहिए थी वो तो वो ही जानें, पर जसवंत सिंह अब जिन्ना के जिन्न को दोबारा नहीं बुलाना चाहेंगे।
बेचारे लौहपुरुष आज तक उस वार से बच नहीं पाए हैं। लौहपुरुष क्या, इतिहास पुरुष भी जिन्ना के जिन्न से नहीं बचे हैं। आजादी के इतने साल बाद भी जिसे भी जिन्ना के जिन्न को जगाने की कोशिश की है, वो विवादों में ही रहा है। सच-झूठ तो परे हो जाता है, विवाद की राख बचती है। वैसे जिन्नों की कमी नहीं है। राजनीति में तो अधिकतर जिन्नों ने नुकसान ही पहुंचाया है। राजीव गांधी जसे बेदाग छवि के राजनेता को बोफोर्स का जिन्न आज भी परेशान करता है। लालकृष्ण आडवाणी को जिन्ना के जिन्न ने तो पटका ही है, कंधार का जिन्न कभी पीछा ही नहीं छोड़ता।
लालू यादव कितनी भी सरपट रेल दौड़ा चुके हों, बिजनेस गुरु का खिताब हासिल कर लिया हो, पर भैंसों के चारे वाला जिन्न उनके साथ ही रहता है। तब से लेकर आज तक अंधेरे में लालू जी की परछाई ने साथ छोड़ दिया होगा, पर उस अजीब जिन्न ने उनका साथ नहीं छोड़ा है और आने वाले दिनों में छोड़ता दिख भी नहीं रहा। आडवाणी जी जब भी कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलते हैं, कंधार का जिन्न पहले ही उनके सिर पर बैठा दिख जाता है। बोलने से पहले ही उनकी बात ठिठोली में ले ली जाती है। जसवंत सिंह की किताब ने ऐसा कबाड़ा किया है कि आने वाले दिनों में पार्टी के महाभारत जिन्न की भी चर्चा की जाती रहेगी।
धर्मेद्र केशरी
आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.
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