Friday, September 18, 2009

मुफ्त की सलाह सेवा

अक्सर लोगो को, महापुरुषों को कहते सुना है कि किसी को बिना मांगे मुफ्त की सलाह नहीं देनी चाहिए, पर ये दिल है कि मानता ही नहीं। दिन भर में जब तब दो-चार बंदों को पर उपदेश झाड़ न लो, चैन ही नहीं मिलता है। इतनी बार झिड़कियां खा चुका हूं, पर ये आदत भी नेताओं की तरह है, सुधरती ही नहीं।

एक बार एक बंदा बारिश में भीगता चला जा रहा था, मैंने मानवीयता के नाते बोल दिया, दोस्त भीगो मत तबीयत खराब हो जाएगी, नजला-जुकाम से परेशान होकर बिस्तर पर पड़ोगे और दवाइयों पर पैसे खर्च करोगे सो अलग। मेरा कहना ही था कि बंदा फट पड़ा- अबे, तुझसे कोई सलाह तो मांगी नहीं मैंने और तू ये सलाह दे रहा है कि बद्दुआ। तबीयत भी खराब होगी तो तुझसे या तेरे बाप से..। उसकी पूरी बात सुने बिना मैं वहां से नौ दो ग्यारह हो गया और खुद को फटकारते हुए कसम खाई कि कभी किसी के फटे में अपनी टांग नहीं अड़ाऊंगा, पर साहब फिर वही, आदत।

कुत्ते की दुम सीधी हो सकती है, पर आदतें, भगवान ही मालिक हैं। घर पहुंचते वक्त रास्ते में एक भिखारी टकरा गया। उसने भगवान के नाम पर कुछ मांगा, मैंने सोचा इसे कुछ दूंगा तो जल्द ही इसकी बिरादरी में शामिल होने का नंबर मेरा भी होगा, पर कुछ न कुछ तो देना ही था। दे डाली वही, बिन मांगी सलाह। कहा- भाई कुछ काम-वाम करो, हट्टे-कट्टे होकर मांगने में शर्म नहीं आती। मेहनत की कमाई खाओगे तो नींद भी अच्छी आएगी। मेरा इतना कहना ही था कि बंदा मेरी ओर खिसियाई नजरों से देखा, जसे कह रहा हो, अबे जो मांगा वो दिया नहीं, फालतू की सलाह अपने पास ही रख।

ऐसे ही एक दिन मैं एक नेताजी के भाषण समारोह में पहुंचा। नेताजी अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में डींगे हांक रहे थे। आदत से मजबूर चुप कैसे रहता। नेताजी को नेकनीयत रखने और जनता के भलाई की सलाह दे डाली। फिलहाल तो नेताजी ने मुस्कुराकर मुङो अपने साथ वाली कुर्सी पर बिठा दिया और साथ भी चलने को कहा। सोचा था नेताजी मेरी सलाह से इतने प्रभावित हुए हैं कि उनका हृदय परिवार्तन हो गया है, पर भइए बात कुछ और थी। मेरी सलाह नेताजी को इतनी खल गई कि उन्होंने अपने मुस्तंडों से ऐसी-ऐसी जगह सिंकाई करवाई कि बयां करने के काबिल भी नहीं बचा। किसी तरह जान बचाकर वहां से भागा।

रास्ते में एक प्रेमी जोड़ा मिला। हंसते-खिलखिलाते। दिल पर चोट खाए बंदा ठहरा, लिहाजा रहा नहीं गया और उसे भी उसकी प्रेमिका से दूरी बनाकर रहने की सलाह दे डाली। उसने पिटाई तो नहीं की, पर मुंह से जितने विश्लेषण निकाल सकता था, उसमें कंजूसी नहीं बरती। फिलहाल तो मैंने ये मुफ्त की सलाह सेवा बंद करने की ठानी है, पर कब तक, मुङो खुद नहीं पता।
धर्मेद्र केशरी

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