Monday, May 9, 2011

गोली-गोली पर लिखा है गोलीबाजों का नाम


आज प्रवचन करने का मूड है। लेकिन मैं बाबाओं जसा प्रवचन नहीं करने वाला, इसलिए न तो हाथ जोड़ने की जरूरत है और न ही आंख बंद कर ध्यान लगाने की। ओके, प्रवचन स्टार्ट। जितने भी यूनिवर्सल ट्रथ यानी सार्वभौमक सत्य हैं उन्हें ऐसे ही सार्वभौमिक नहीं कहा जाता। उसके पीछे छिपी है सच्चाई। उन्हीं में सें एक है जसी करनी वैसी भरनी। जो बोया है काटना भी वही पड़ता है यानी बबूल के पेड़ पर आम लगने से रहे। किस फिल्मी हीरो बाबा ने कहा था ये तो याद नहीं पर जो कहा था वो जरूर याद है कि किसी न किसी बुलेट पर मारने वाले का भी नाम लिखा ही होता है। क्या सॉलिड ज्ञान है। सच है।

लादेन चच्चा के अंत ने एक बार फिर ये साबित कर ही दिया कि गोली मारने वाले को भी एक दिल गोली ही मिलती है। जहां चच्चा छिपे थे वहां तो अमेरिका 9/11 स्टाइल में विमान घुसाने की ही सोच रहा था, पर चच्चा की भी किस्मत में थी बुलेट ही। अब सोचता हूं कि ये ज्ञान पहले बांटता तो शायद उन तक भी पहुंच जाता और वो मान लेते (मजाक कर रहा हूं..अगर चच्चा को पता चलता कि ये ज्ञानवाणी उनके लिए है तो मुङो भी समय से पहले ही लंबलेट कर देते), पर ऊपर जाकर उन्हें प्रवचन सुनाने का फिलहाल मेरा कोई इरादा नहीं। वैसे सैम अंकल को भी सुधरने की जरूरत है। हां तो ज्ञान की बात ये कि कुछ भी करने से पहले ये सोच जरूर लिया जाए कि आज नहीं तो कल उसका भी हश्र कुछ वैसा ही होने वाला है, जसे वो गुल खिला रहा है। 

हमारे यहां भी लादेनों की कमी नहीं है। वीरप्पन दादा जंगल के टारजन थे। पर क्या करें, दांत दर्द की दवा जंगल में मिलने से रही। बहुत रेकी की थी उसने भी लोगों के मारने के लिए, पर एक दिन दांत का इलाज कराने निकले वीरप्पन दादा की रेकी पुलिसवालों ने ऐसे की कि सीधे नरक के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पास वो इलाज करने निकल गए। जिस गोली से वो बेकसूरों का कत्ल किया करता था, वैसी ही गोली उसके भी सीने में जज्ब हो गई। चित्रकूट में ददुआ जी भी कुछ ऐसे भी करामात दिखा रहे थे। दशकों बंदूक की दहशत के नीचे लोगों को जीने के लिए मजबूर कर रखा था।

उसे ग्रामीणों का मसीहा भी कहा जाता था, पर ऊपर वाला, जो सब का मसीहा है, उसकी नजर में भी ये ठीक नहीं था और एक दिन सरकारी गोली उसे भी निगल गई। ना जी, न ही ये क्राइम स्टोरी है और न ही क्राइम पेट्रोल के अगले एपिसोड की झलक। ये तो एक रिमाइंडर है, उन लोगों के लिए, जो गोली और बंदूक के दम पर राज करने की सोचते हैं।
थोड़ा और इतिहास बांचा जाए। हिटलर को अपने खून पर नाज था और अपने इसी भ्रम की वजह से उसने न जाने कितनों निर्दोषों को मौत की नीद सुला दिया, पर उसे भी अपने किए का हिसाब देना पड़ा। फूलन देवी ने मजबूरी में हथियार उठाया और खून की होली खेली। बाद में वो राजनीति में आईं, लेकिन गोली का जवाब गोली से ही मिला। किसने मारा क्यों मारा ये मुद्दा नहीं, बात कुदरत के इंसाफ और इन सार्वभौमिक सत्यों की है। लादेन चच्चा की वजह से ये चैप्टर खोला है, पर इतने गोलीबाजों के नाम हैं कि एक छोटे लेख में लिखा नहीं जा सकता। 

आप भी याद कीजिए अपने आसपास के कुछ वैसे महानुभावों को और उनका हश्र देखेंगे तो अंत गोली से ही लिखी होगी या उससे भी बुरा। अब आप कहेंगे कि बाबा (वैसे आई एम स्मार्ट डूड) ये जो इंडिया के घपलबाजे, घोटालेबाज हैं, उनका भी कुछ होगा या नहीं? तो बच्चा..इनका तो और भी बुरा हाल होने वाला है। कोई गोली मारे न मारे, पर इनके कौन-कौन से अंग सड़ेंगे, बताऊंगा तो आपका खाना खराब हो जाएगा। 

वैसे इस प्रवचन के पीछे आशय सिर्फ इनके कर्मो के फल का नहीं है, बल्कि हर किसी को एक बार सोचने का बहाना दे रहा हूं। झांककर देखा जाए कि हमने ..जसी करनी वैसी भरनी वाला कितना और कैसा काम किया है। फिर जो किया है, उसका फल तो वैसा ही मिलने वाला है। खर, अभी ज्ञान गंगा यहीं बांध रहा हूं, फिर कभी ऐसे ही प्रवचन करने जरूर आऊंगा।
धर्मेद्र केशरी



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