Monday, May 9, 2011

..दुम कभी सीधी नहीं हो सकती


शाहिद अफरीदी का बहुत-बहुत शुक्रिया। आप जसे भाई साहब हैं जो पुराने कहावतों को जिंदा रखे हुए हैं। उनका सम्मान करते हैं। नहीं तो गिरगिटों और उनको को भला कौन याद करता। भाई, पहले ही क्लियर कर दूं कि मैंने किसी को कुछ कहा नहीं है, कोई गाली-वाली नहीं दे रहा। मैं तो कुछ पुरानी कहावतों को ही दोहरा रहा हूं। गिरगिट का रंग बदलना और उसकी दुम सीधी न होना, दोनों शाहिद अफरीदी भाईजान पर सटीक बैठती है। 

सेमीफाइनल की हार के बाद बहुत बौखलाए हुए हैं अफरीदी भाई। बौखलाएं भी क्यों.. हारे ही ऐसी टीम से हैं, जिस देश से कभी जीत नही पाए। गरम लोहे की छड़ को हाथों में लेने का दर्द तो समझा ही जा सकता है। फिलहाल अफरीदी के नाश्ते और सब्जियों का चौकस जुगाड़ हो गया है। असल में उन पर अंडे, टमाटर और सड़े आलू बेतहाशा पड़े, जिसमें से अच्छा माल छांटकर उने अपने घर में रख लिया और महीनों का बंदोबस्त हो गया। वैसे भी हार के बाद उनका खाता बंद होने वाला है, ऐसे में उनकी जनता ने आलू, प्याज, अंडे फेंककर..मतलब भेजकर अपना प्यार जताया है। 

खर मुद्दे की बात पर आते हैं। उनके बयानों का क्या किया जाए। पहले तो भाई ने कहा कि हम हिंदुस्तानियों से इतनी नफरत क्यों करते हैं..चलो भाई ने एक बार फिर बता दिया कि वो हमसे नफरत करते हैं। रजिस्टर्ड। फिर वो अपने घर से बाहर निकले। सोचा फूल मिलेंगे, पर पड़ गए पत्थर। अब करें तो क्या करें। जो बोला था उसे वापस तो लेना ही था, तो भई उन्होंने अपने घर के सामने वाली सड़क से ही लिया यू टर्न और वापस चले आए। वैसे भी ये लोग सिर्फ यू टर्न लेने में ही माहिर हैं। कितनी बार यू टर्न मारा होगा, अब तो याद भी नहीं आता। फिर क्या था, बोली भी बदली और खुद को बताने लगे पिटे तीस मार खां। अफरीदी भी कम नहीं, अपनी बड़ाई उन्हें खुद करनी पड़ रही है। खर, जसी उनकी आत्मा कहे वो करें, हमसे क्या। 

आप सोच रहे होंगे कि इतने दिनों बाद मुङो शाहिद भइए की याद क्यों आ रही है। दरअसल, एक रात मैं जब ऑफिस से घर जा रहा था तो अपने गली के उसको एक गिरगिट से बतियाते देखा। रात को गिरगिट और उसे साथ देखकर मैं ठिठक गया। कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा। दोनों शाहिद साहब की चर्चा कर रहे थे। गिरगिट बड़ा खुश, पर वो बेहद खफा था उन पर। गिरगिट इसलिए खुश था, क्योंकि अफरीदी ने उनकी लाज रख ली थी। 

कहावत को चरितार्थ किया था, अपना रंग बदलकर। सफल तो उन्होंने दुम वाली कहावत को भी किया था, पर फिर भी भौं भौं यूनियन नाराज थी। गिरगिट तो वहां से शाहिद का गुणगान करते हुए चला गया, पर उसकी आंखों में दर्द उभर आया। बड़ा भावुक हूं मैं भी। वैसे तो उनको देखकर ही मेरी घिग्घी बंध जाती है, लेकिन उसे दुखी देखकर उसके पास जाने की हिम्मत कर बैठा। ऊपर से चर्चा थी शाहिद अफरीदी कि, मैं कहां पीछे रहता पूछ ही बैठा- अरे वो गया अपने घर तुम क्यों परेशान होते हो और उसने तो तुम्हारा नाम ही ऊंचा किया है। 
इस पर वो बोला- क्या खाक नाम ऊंचा किया है..लोग उसे भारत विरोधी के रूप में जानते थे। आज तक उसने यहां की तौहीन ही की है। ऐसा लगता है कि जसा बंदा क्रिकेटर नहीं, आईएसआई का मुलाजिम हो। जितनी बार भी मुंह खोला कड़वाहट ही घोली है। उससे उम्मीद भी यही होने लगी थी, लेकिन पहली बार कुछ अच्छा बोला था, लेकिन फिर आ गया अपनी औकात में। 

हमारी बिरादरी बड़ी खुश थी। खुशी इस बात कि थी कि अब शायद ये कहा जाए कि .. दुम भी सीधी हो सकती है, पर उसने तो बेड़ा गर्क कर दिया। इमेज सुधारने का मौका ही गंवा दिया..फिर अब सीधी हो भी जाए तो लोग यकीन नहीं करने वाले और तुम भी निकल लो अभी नहीं तो भूल जाऊंगा कि मेरा हाल चाल लेने निकले थे। मैं चुपताप गिरगिट और दुम के बारे में सोचते हुए वहां से खिसक लिया।
धर्मेद्र केशरी


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