Thursday, December 10, 2009

पाकिस्तान जी,

काफी दिनों से आपको एक पत्र लिखने का मन कर रहा था। आज मन को रोक नहीं पाया और आपके नाम पाती लिखने बैठ गया। आप सोच रहे होंगे कि आपके नाम के आगे प्रिय या कुछ और क्यों नहीं लिखा, तो आप न तो प्रिय कहलाने के लायक हैं और न ही दोस्त। आप ही बताइए क्या करता, झूठी दोस्ती तो मैं निभाने से रहा। आपके घर में इन दिनों रोज बम ब्लास्ट हो रहे हैं। हम कुछ नहीं कहने वाले आपका निजी मामला है।



आप चाहें तो अपनी जनता को खुश रखें और आप चाहें तो उनकी बलि चढ़ाते रहें। ये आप पर निर्भर करता है कि शांति चाहते हैं या बेगुनाहों की मौत। आपने दुश्मनी किस बात पर ठान रखी है। क्या ये सार्वभौमिक सत्य आपकी समझ में नहीं आता कि इस युग में क्या युगो-युगांतर तक हिंदुस्तान का बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं। हां, अपनी ओछी हरकतों से परेशान जरूर कर सकते हैं, जसा कि मुंबई हमले के दौरान देखने को मिला।



आपकी आत्मा जानती है कि मुंबई के गुनहगार कौन हैं और कौन है असली अपराधी, फिर भी आप आंखें मूंदें बैठे हैं। न ही चैन से जीते हैं और न ही चैन से जीते देखना चाहते हैं। जरा आंखें खोलिए, बिना समस्या के समस्या पैदा करने के बजाय अपने देश की प्रगति पर ध्यान दें तो बेहतर है। बहुत कुछ है करने को आतंकवाद फैलाने के सिवा। नाम पाकिस्तान हरकतें नापाक। दुनिया भर में तमाम समस्याएं हैं। कुदरत को बचाने पर ध्यान दीजिए, मानवता का साथ दीजिए, दुनिया में अपने देश का झंडा बुलंद कीजिए।



हमारे यहां कहावत है कि जसी करनी वैसी भरनी। शायद आपने ये कहावत नहीं सुनी, सुनी भी है तो नजरअंदाज करना आपके खून में है, इसलिए अपने घर में मची मार-काट को भी आप खुली आंखों से नहीं देख पा रहे हैं। आंखें खोलिए, कहीं ऐसा न हो कि आपकी इतनी मट्टी पलीद हो जाए कि कहीं मुंह दिखाने के काबिल न रहें। हम तो गांधी जी के रास्ते पर चल रहें हैं, इसलिए अभी चुप हैं। यही कहना है कि चंद्रशेखर आजाद की याद न दिलाएं। आप अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे।



धर्य की भी एक सीमा होती है। अब उस सीमा को न लांघें तो आपके लिए अच्छा है। बिगड़े अगर सुधरता नहीं है तो यहां सुधारने वाले बहुतायत हैं। और क्या कहूं फिलहाल यही चाहता हूं कि अगली बार जब आपको पत्र लिखूं तो खुशी-खुशी पाकिस्तान के आगे प्रिय या दोस्त जरूर लगाऊं। बाकी आपकी मर्जी।

धर्मेद्र केशरी

No comments:

Post a Comment