Thursday, April 16, 2009

क्या-क्या sahenge लौहपुरुष

कुर्सी जो करवा दे, वो कम। इस उम्र में भी इतना कुछ ङोलना पड़ रहा है। एक साथ कितने बवाल ङोलेंगे, लौहपुरुष आडवाणी जी। सभाओं ने हैरान तो कर ही रखा है अब श्रोता और जनता भी परेशानी की वजह बन गए हैं। पता नहीं वोटिंग के दिन वोट देंगे या नहीं, लेकिन अपना ‘चप्पलाशीर्वादज् जरूर दे रहे हैं। एक रैली में उन्हें ये दिन देखना पड़ा जो उन्होंने भरी जवानी में कभी नहीं देखा होगा। खर, अब आडवाणी जी भले ही खिसिया रहे हों, लेकिन चुनावी मौसम में पक्का उसे माफ कर देंगे। जनता भी कम नहीं, उन्हें पता है कि पांच साल तक बंदा शक्ल नहीं दिखाने वाला, कोर-कसर अभी निकाल लो।

सारा कसूर बुश पर चले जूते का ही है। वही अपनी बिरादरी को उकसा रहा है। इराक में चले जूते ने इतनी आवाज की कि दुनिया भर के जूते-चप्पलों का स्वाभिमान जाग गया है। अब वो पैरों में ही नहीं पड़ना चाहते, सिर पर भी पड़ने को आतुर हैं। कभी पूंजीवादी जूते पड़ते थे, अभी भी पड़ रहे हैं, लेकिन कहते हैं ना कि हर किसी का दिन बदलता है। चुनावी मौसम में लोकतांत्रिक जूता पड़ रहा है और लोग खुशी-खुशी इसे खाने को तैयार भी हैं। वोट की खातिर जूता महात्म्य की पूजा होने लगी है। लौहपुरुष जी, वो चप्पल इस दुर्घटना का जिम्मेदार नहीं है, बल्कि बुश पर पड़ा जूता इन सब का अगुआ है।

प्रधानमंत्री बनने पर इन्हें छोड़िएगा नहीं। खर, बात अपने नेताजी के तकलीफ की हो रही है। इधर सोनिया गांधी उन पर कंधार बम फोड़ रही हैं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें बयान बहादुर करार देते हैं। राहुल और प्रियंका भी कम नहीं, जसे आडवाणी जी को ही निशाने पर ले लिया हो। बाबरी मस्जिद का अतीत भी उनका गला पकड़े हुए है। तल्खी का आलम तो ये है कि पी एम और पी एम इन वेटिंग की बोलचाल फिलहाल बच्चों की तरह बंद हो गई है। जिन्ना की समाधि से निकला भूत भी अभी उनके पीछे ही है और लगता नहीं कि हाल-फिलहाल पीछा भी छोड़ेगा।

वो भी सेाच रहें होंगे, कहां जिन्ना के चक्कर में फंस गए। था छत्तीस का आंकड़ा, मिसाल महानता की दे दी। एक अकेले नेता पर चारों ओर से गोले दागे जा रहे हैं। ऊपर से ये चप्पल कांड। लौहपुरुष होने का एक फायदा तो है, इसीलिए इतना बवाल भी ङोल पा रहे हैं आडवाणी जी। अब तो राम ही इनकी कुछ मदद कर सकते हैं, पर इस बार भगवान राम भी नाराज चल रहे हैं। वजह, राम का नाम बार-बार बदनाम जो हो रहा है।
धर्मेद्र केशरी

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