Monday, May 28, 2018

भरी कोरी जिंदगी


लिखना उस जगह पर जो खाली है कितना आसान है
भरे मिटे पन्नों पर कोई कलम चलती कहां है
कोरा सा वो कागज पर कोरा कहां है
जिंदगी लिखी थी उस पन्ने पर
पन्ना ही बचा जिंदगी कहां है
कोरा सा वो कागज पर कोरा कहां है
उस पन्ने पर स्याही दुलार की थी
गुस्साई आंखों में प्यार की थी
पथराई नजरों में इंतजार की थी
स्याही का रंग स्याह हो गया
खाली पूरा कतार हो गया
उम्मीदों की वो दवात कहां है
कोरा सा वो कागज पर कोरा कहां है
उमड़ते जज्बातों की लंबी है फेहरिस्त
सब कुछ लिख जाने का अरमान बहुत है
पर हो चुकी देर है अब तो
लिखने का वो साजो सामान कहां है
कोरा सा वो कागज पर कोरा कहां है
भरे मिटे पन्नों पर कोई कलम चलती कहां है

कोरा सा वो कागज पर कोरा कहां है

धर्मेंन्द्र केशरी

No comments:

Post a Comment