Friday, July 23, 2010

..खो गई हैं

फिर वही शाम वही बत्तियां झिलमिला रही हैं
पर रोशनी कहीं खो गई है
हवा की वही रेशमी छुअन
मगर सिरहन कहीं गुम हो गई है
दूर क्षितिज पर टिकती हैं निगाहें
जहां एक होते जमीं आसमां
इनके मिलन के जसे ही
अपने रिश्ते की बनावट हो गई है
ख्वाहिशें चाहती हैं तोड़ना बंदिशों को
पर अब ख्वाहिशें तोड़ने की आदत हो गई है
चाहता हूं प्यार को प्यार से पाना
पर प्यार में भी अब मिलावट हो गई है
टूटे दिल से अब क्या अरमां करें ऐ दोस्त
अब दर्द में भी राहतें हो गई हैं
यकीन-ए-मुहब्बत न करना टूट के
बेवफाई की वफा पे आहट हो गई है
जार-जार रोता है दिल
पर आंखों की नमी कहीं खो गई है
होता था तेरे होने का गुमां
हुए ऐसे दूर
अब तो रास्ते भी खो गए हैं
न जाने क्या गुनाह किया हमने
कि मिलती रही सजा दर सजा
सोचा था अब सजायाफ्ता नहीं
पर ये कैद बड़ी हो गई है
फिर वही शाम, वही बत्तियां झिलमिला रही हैं
पर रोशनी कहीं खो गई है

3 comments:

  1. आपने तो प्यार में भी मिलावट कि बात कह दी....खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  2. its very true and it shows that how much selfishness has come in all the relations whic we can not expect from other but we do with others

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  3. its true which shows that how much selfishness has come in all relations which we can't expect from others but we do with others.

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