Monday, April 19, 2010

अलविदा मामा

हैलो, प्रणाम पापाजी
खुश रहो, कैसे हो?

ठीक हूं, आप कैसे है?

हम भी अच्छे हैं, मिर्जापुर जा रहा हूं।

क्यों, दीदी के लिए लड़का-वड़का देखने..

नहीं, तुम्हारे मामा अब इस दुनिया में नहीं रहे, उन्हीं के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए जा रहे हैं।

कब..!

कल रात ग्यारह बजे, आज उनकी मिट्टी मिर्जापुर आने वाली है, तुम्हारी अम्मा भी हैं साथ में, बात करोगे?

दे दीजिए..हैलो अम्मा

हां भैया

अम्मा, मामा नहीं रहे..आप ज्यादा रोइएगा मत

(रोते हुए) हां..

अपना ध्यान रखना अम्मा..पापा देखिएगा अम्मा रोकर अपनी तबीयत न खराब करें।

ठीक है..रखता हूं, बाद में बात करूंगा।

मामा अब नहीं रहे। ये सोचकर आंखों की कोर से आंसू खुद ब खुद ढुलक पड़े। दूर हूं, उनके अंतिम संस्कार में भी जाने से बच गया। उन मामा के अंतिम दर्शन भी न कर सका, जिन्होंने कभी अपनी गोद में खिलाया था, टॉफियां देते थे, खूब लाड़ करते थे। अब वही मामा नहीं रहे। परदेस में रहने का यही फायदा है, सिर्फ कुछ बूंद आंसुओं से ही किसी अपने के लिए शोक व्यक्त कर लेते हैं, क्योंकि हमें तो उन अपनों का अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं होना। आंसू बचा लिए मैंने।

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