Friday, May 28, 2010

डर लगता है..

कभी तुम्हें खोने से डरता था
आज पाने से डर लगता है..
तन्हा होने से डरता था
अब महफिल से डर लगता है..
कभी सब कुछ कह जाता था तुम्हें
आज लब खोलने से डर लगता है..
पास आने की जिद थी कभी
अब तो पास आने से ही डर लगता है..
गुजरती सांसों पर नाम था तेरा
अब तो सांस लेने से ही डर लगता है..
तेरे सजदे में झुकाते थे सिर कभी
मांगा करते थे दुआओं में
खुदा बन गए थे तुम मेरे
अब रब से नजरें मिलाने में डर लगता है..
प्यार इस कदर किया तुझको
कि भूल गए सारा जमाना
ताश के पत्तों से बिखरा वहम मेरा
अब वफा के नाम से भी डर लगता है..
फख्र था जिंदा मुहब्बत पर अपनी
उस मुहब्बत की लाश उठाने से डर लगता है..
किसी अपने ने किया दिल पर ऐसा वार
अनजानों को कहना ही क्या
पहचाने चेहरों से भी डर लगता है..
चाह कर भी नहीं होता किसी पर भरोसा
अब तो यकीं के नाम से ही डर लगता है..
चाहतों की चाह में खाया है धोखा
अब चाहतों को चाहने में डर लगता है..
सोचता हूं पूछूं कई सवाल
प्यार था या था मजाक तेरा
दिल में उतर के किया क्यों दिल से दूर
जवाब दोगे कि नहीं, डर लगता है..
तेरी यादों से लिपटकर जिंदा हैं
छीन न लो यादों को भी, डर लगता है..
बड़ी मुश्किल से साहिल पर आई है कश्ती
अब तो मझधार में जाने से डर लगता है..
कभी तुम्हें खोने से डरता था
आज पाने से डर लगता है..

धर्मेद्र केशरी

5 comments:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति


    word verification ka option hata den....comments dene men aasaani hogi ..

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  2. wow yar bahut khub


    shandar kabhi dar lagta tha tanhai se

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  3. किसी अपने ने किया दिल पर ऐसा वार
    अनजानों को कहना ही क्या
    पहचाने चेहरों से भी डर लगता है..
    चाह कर भी नहीं होता किसी पर भरोसा
    अब तो यकीं के नाम से ही डर लगता है..

    Bahut shaandaar.. ye panktiyan jivan ka anubhav hain.. sunder rachna ke liye badhai..

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  4. आपकी यह पोस्ट ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. खोने से डर लगता है कभी पाने से डर लगता है ...
    अजीब शै है हर बात से डर लगता है ...
    अच्छी लगी कविता ..!!

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