Wednesday, November 6, 2019

अब भूतों के लिए जगह कहां?



3-6-2008
धर्मेंद्र केशरी
एक बार मेरे एक मित्र मेरे कमरे पर रात बिताने के लिए रूके। कमरा इसलिए कि एनसीआर में छोटे-मोटे लोग घरों में नहीं बल्कि तंग कमरों में ही रहते हैं। नींद नहीं आ रही थी तो बातों का सिलसिला चल पड़ा। मेरे दोस्त ने अचानक मुझसे सवाल किया- भूत प्रेतों में यकीन करते हो कि नहीं? मैंने कहा- बिलकुल करता हूं, जब इस धरा पर इंसान हैं, भगवान हैं तो शैतान भी ज़रूर ही होंगे। उन्हे न जाने क्या सूझा कि कहने लगे कभी सच्ची के भूत को देखा है? मैं ठहरा डरपोक इंसान, मैंने कहा-यार भूत, चुड़ैलों की बात न करो तो बेहतर है।
मैंने मना तो कर दिया फिर भी भूतों के बारे में जानने का इच्छुक भी था। वो समझ गया कि मैं उसकी भूतिया कहानी में इंट्रेस्ट ले रहा हूं। मेरे मित्र ने अपनी आपबीती सुनाई कि- गांव में एक दिन जब वो खेत को पार कर रहा था तो कुछ लोग सफेद कपड़ों में जाते दिखे। पहले तो उसने वहम समझा। जब कुछ आगे बढ़ा तो फिर वही लोग सामने से टकरा गए। किसी तरह मन पक्का करके वह आगे बढ़ा तो फिर वही लोग दिख गए। अब तो उसका धैर्य टूट गया और भागता हुआ घर पहुंच कर राहत की सांस ली।
उसने बताया कि असल में वो भूत थे। मैंने पूछा- जब तुमने भूत देखा था तो टाइम कितना हो रहा था। उसने बताया कि यही कोई रात के एक से दो बजे के बीच का समय रहा होगा। मैंने घड़ी पर निगाह डाली पूरे डेढ़ बज रहे थे। थोड़ी देर बाद मेरे मित्र को नींद आने लगी उसने कहा कि बत्ती बुझा दो। मैं डर रहा था मैंने कहा लाइट बंद कर दी तो नींद नहीं आएगी और क्या पता अंधेरे में कोई भूत-वूत आ गया तो? मेरा इतना कहना था कि वो हंसने लगा कहा- यार तुम भी कमाल की बात करते हो नोएडा में इंसानों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है भूत यहां कहां से आ जाएंगे?
नोएडा या दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जब इंसानों के लिए जगह नहीं तो भूत बेचारे कहां विचरण करेंगे। दोस्त तुम्हे भूतों से डरने की कोई ज़रूरत भी नहीं क्योंकि यही हाल अब लगभग पूरे देश का हो गया है और जिस स्पीड से जनसंख्या बढ़ रही है भूतों के आने का कोई चांस ही नहीं बनता है। दोस्त की बात में दम था। लेकिन मैं कोई रिस्क नहीं ले सका और लाइट बुझाकर सोने का साहस मुझमें नहीं आया।
धर्मेंद्र केशरी

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