बड़े-बूढ़ों ने कहावतें और मिसालें ऐसे ही नहीं दी हैं। उनके पीछे न जाने कितने ही तर्क छिपे होते हैं। अब जसे कई बार आपने सुना होगा कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी कितने काम का है। कितनी बार आपने इस पर अमल किया होगा। सरकारें भी ऐसा करती हैं तो क्या बुराई है। खद्दरधारी बेचारे कभी-कभी देश के दौरे पर होते हैं, चकाचक सूट पहनकर, फिर भी कोई न कोई पीछे से बोल ही देता है गरीबी हटाओ। कुछ कह तो पाते नहीं बेचारे हां, एक कसम खाकर वहां से चलते हैं कि वो अब गरीबी मिटाकर ही रहेंगे। वैसे भी हमारे यहां भूखे नंगे लोग हैं ही किस काम के। भूख से बिलबिलाने की वजह से कोई काम नहीं करते और नंगे रहकर इज्जत खराब कर देते हैं।
ऊपर से पार्टियों का गरीबी मुद्दा बवाल। लिहाजा गरीबी को हटाने के लिए वो कमर कसकर तैयार हैं। गरीबों पर तो हाथ कुछ ज्यादा मेहरबान है। अपने ‘पंजेज् में रखता है बिलकुल। अब गरीबी हटाने के लिए ये लोग न रहेगा बांस.. वाली कहावत चरितार्थ करते हैं तो इसमें बुराई क्या है। न रहेंगे गरीब और न रहेगी गरीबी। इसके लिए सरकार ने पूरी तरह से कमर कस लिया है। अनाजों के दाम, डीजल-पेट्रोल के भाव, चीनी के दाम बढ़ाकर सरकार अपने उसी मकसद को पूरा कर रही है। देखिए दाम बढ़ेंगे, तो लोग खरीद नहीं पाएंगे और जब पेट की जरूरतें भी।
रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरतों में फंसे आम आदमी को अब कपड़ा मकान तो मयस्सर नहीं होना, रोटी के भी लाले पड़ गए हैं। ये स्थिति ही ऐसी बना देंगे कि आने वाले दिनों में लोगों को रोटी भी नहीं मिलने वाली। गरीब खत्म तो गरीबी खुद ब खुद खत्म। गरीबों को हटाने के लिए सरकार को ये कदम तो उठाने ही पड़ेंगे। पहले महानगरों से गरीबों को गायब करो। महंगाई इतनी करवा दो कि दस-पंद्रह हजार रुपए वेतन पाने वाले गरीब यहां से रवाना हो जाएं। इससे कम वाले तो खुद ब खुद भाग खड़े होंगे। और क्या।
अगर दिल्ली की ही बात करें तो छोटे-मोटे वेतन वालों की यहां औकात ही क्या है। शीला सरकार दिल्ली को न्यूयॉर्क बनाएगी, फिर न्यूयॉर्क जसी दिल्ली में गरीबों के लिए तो कोई जगह रहने वाली है नहीं। गरीब ऑटोमैटिक गायब। गांवों में तो हालत और भी खराब है। भुखमरी से तंग होकर बेचारे गरीब वहां भी जाएंगे तो भुखमरी की तमाम बहनें उनका स्वागत करने के लिए पहले से वहां खड़ी मिलेंगी। जिसके शिकार गांव के लोग हो ही रहे हैं। सरकार बड़ा सराहनीय कार्य कर रही है। महंगाई बढ़ने से देश का भला ही होने वाला है। गरीबों के खात्मे के साथ ही गरीबी भी मिट जाएगी। फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
धर्मेद्र केशरी