नेताजी के सामने चैनलों के माइक की दुकान सज चुकी थी। गिनते—गिनते जब थकान होने लगी तो नेताजी के कहे पर फोकस किया। एक फ्रेंच कटिए संवाददाता ने पूछा नेताजी पाकिस्तान की ओर से लगातार हमले हो रहे हैं, लेकिन सरकार खामोश बैठी है? सवाल दगा, नेताजी उफन ही रहे थे सत्ता पक्ष पर, धांय से अपना जवाब भी ठेल दिया। किसी ने सोचा नहीं था ऐसा होगा, जनता से कहा था पाकिस्तान आंख नहीं दिखाएगा, पर हो क्या रहा है, इससे बड़ी दुख की बात कोई और नहीं हो सकती।
नेताजी के ललाट पर इतनी चिंता की लकीरें कुलबुलाने लगीं जैसे चींटियां अपने बिल से निकल आई हों। सवाल खत्म होते ही चश्मिश मोहतरमा ने सवाल दागा, नेताजी रेप की घटनाएं तो रूक ही नहीं रहीं हैं, बुजुर्ग महिला को भी नहीं छोड़ा जा रहा, आपका क्या कहना है? नेता जी की ललाट पर और भी चिंता की लकीरें निकल आईं। जवाब दिया, हमारी सरकार में कभी किसी बुजुर्ग महिला के साथ तो कम से कम बलात्कार नहीं हुआ, इससे बड़ी दुख की बात कोई और नहीं हो सकती। उनके माथे के बल थोड़ा आराम फरमाते उससे पहले ही एक और सवाल दग गया, नेताजी घर वापसी पर क्या कहेंगे? नेता जी ने मुखमुद्रा बदली, बोले— हम धर्म निरपेक्षता के पुजारी हैं, हमारी सरकार में धर्म भले ही बदले जाते रहे हों, पर घर वापसी की किसी ने कोई बात नहीं की, हम निंदा करते हैं, इससे बड़ी दुख की बात कोई और नही हो सकती।
तभी एक सज्जन जो जिनके हाथ में मोबाइल था, नेताजी के मुंह के पास ले जाकर बोले— नेताजी काले धन के मुद्दे पर क्या कहेंगे? सवाल पर थोड़ा हड़बड़ा से गए नेताजी। नेताजी का चेहरा फक पड़ गया, जैसे किसी ने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, पर अभिनय में अभ्यस्त नेताजी ने बात संभाली बोले— यही तो हम कहते हैं काला धन वाला धन कुछ नहीं है, जनता को काला धन के नाम पर ठगा गया है। आखिर अभी तक पैसा सबके एकाउंट में क्यों नहीं आया, इससे बड़ी दुख की बात कोई और नहीं हो सकती। तभी किसी ने सवाल बम दागा कि नेताजी दस लखिए सूट पर भी तो कुछ कहिए। नेताजी को तो यही मौके चाहिए था, बोले अरे हम तो गरीब पार्टी से ठहरे हमारे, हम खादी से ही काम चलाते हैं, गरीब का पैसा लूट कर हम दस लाख का सूट नहीं पहन सकते, इससे बड़ी दुख की बात कोई और नहीं हो सकती।
तभी किसी बुजुर्ग टाइप रिपोर्टर ने नेताजी से पूछ लिया, पर नेताजी पिछली सरकार के घोटाले में सबसे ज्यादा नाम आपका ही उछला था,आप पार्टी के सबसे रईस व्यक्ति भी हैं, आपकी सरकार में महंगाई की तरह बलात्कार भी बढ़ा था और भ्रष्टाचार भी, इस पर क्या कहेंगे? इस बार चिंता की लकीरें फन्न से गायब हो गईं और त्योरियां चढ गईं। तमतमाते हुए बोले— कहां के रिपोर्टर हो जी। सवाल पूछना भी नहीं आता। बात इस सरकार की हो रही है या उस सरकार की। कोई सिद्ध करके दिखाए हम पर आरोप। संवाददाता सम्मेल निरस्त हो चुका था। जब तक दूसरों की गिरहबान पर हाथ था ठीक था, खुद पर आते ही मामला गड़बड़ा गया। सही ही तो कहा था नेताजी ने। सरकार ये हो या वो, हर कोई जनता को ही उल्लू बनाता आया है और महाराज आरोप जल्दी सिद्ध होते भी हैं क्या? इससे भी बड़ी दुख की बात हो सकती है, लेकिन ये दुख की बात जरूर है।
धर्मेंद्र केशरी
Atee uttam mitra.
ReplyDeleteKafi achha article likha hai.
Aise hi aage bhi tarakki karte raho.
bahut bahut dhanyawad mitra aage bhi aapke pyar aur sahyog ka akankshi
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