पाती
वक्त तो अपनी रफ्तार से भाग रहा है, जैसे हमेशा
भागता है...कल जब तुम्हारी उंगलियों को अपनी उंगलियों में पिरो रहा था...तब भी
जानता था...वक्त भाग रहा है...वही मेट्रो, वही ऑटो और वही बिसलगढ़ी से पंचशील तक
का सफर...जो पिछले एक महीने से कट रहा था...अब बदल गया है...
तब वापस लौटते वक्त याद होती थी अब बेचैनी...अजीब सा डर...फिर भी
लौटता हूं इस उम्मीद में कि इन उंगलियों को जिन्हें मैंने अपनी उंगलियों में पिरो
रखा है...उन्हें जन्म-जन्मांतर के बंधन में बदल दूंगा...ये हौसला पहली बार आया है
कि तुम्हें खुद से जुदा नहीं देख सकता...जानता हूं कि सोचती हो मेरे बारे में...ये
भी कह देना चाहता हूं...जान लोगी क्या मेरी...एकाध फोन करके सांसें भर दिया करो...
तुम्हारी आंखों को देखता हूं...छलक रहा होता है...दुनिया जिसे प्यार
कहती है...हम क्या कहें? चलो नहीं देता कोई नाम...पर इतना तो कह
ही सकता हूं कि ये जो एहसास है इसने मेरे मन के हर झरोखे, हर खिड़की,
हर
दरवाजे को खोल दिया है...रोशनी अब छनकर नहीं खुलकर अंदर आती है...अंदर का सीलन
ताजा हवा के झोंके से मिट गया है...अभी फोन की घंटी घनघनाई...सोचा तुम हो...दिल का
हाल अभी कह डालूंगा...पर तुम न थे...तुम्हारी आंखों को देखता हूं तो खो जाता
हूं...डर भी जाता हूं...रहस्यमयी आंखें
यूं ही उंगलियों को पिरोए दिल्ली की गलियां, नोएडा की सड़कें,
गाजियाबाद के फुटपाथ ही नहीं...पूरी दुनिया के रास्ते तय करना चाहता हूं...जब
तुम्हारे गालों को चूमता हूं तो समाज को अश्लीलता दिखती होगी...पर मेरे लिए वो
पाकीजा लम्हा है...तुम्हारा अचानक चूमकर मुस्कुरा देना सिरहन पैदा कर देता
है...तुम ऐसा ही तो करती आई...कब, क्या उम्मीद नहीं...पर अब उम्मीदें हैं...इतनी
बड़ी की बयां नहीं की जा सकतीं...तुम्हारा बचपना, तुम्हारा बड़प्पन सब प्यारा है
मुझे...
बिना चश्मे के जब तुम देखती हो और मैं उंगलियों को बदल कर दिखाता
हूं...तुमको पता भी नहीं चलता कि कितनी सफाई से मैं अपनी खुदगर्जी पूरा करता
हूं...हां, तुम्हारे चेहरे पर जो खिलखिलाती हंसी आती है वही तो है उस खुदगर्जी का
राज...देखो तुम बात कर लिया करो...सांस भर दिया करो...फोन को तो ऊर्जा मिल जाती है
बिजली की या फिर जैसे भी...और मुझे?
तुम जानती हो कि बिना तुम्हारे मेरी जिंदगी की बैटरी डाउन ही रहती
है...यूं ही सही...पर एक बार मेरे लिए...फिर कहता हूं...जान लोगी क्या मेरी...एकाध
फोन करके सांसें भर दिया करो...
मार्च 2016