Wednesday, April 8, 2015

एक जैसी स्वामीभक्ति की अलग-अलग सौगात, नेताजी को मेवा मिला घबड़ू को पड़ी लात!



घबड़ू आज घबड़ाया नहीं था। एक नेताजी ने उसे प्रमोशन का मंत्र दे दिया था। ये वही नेताजी थे, जिन्होंने पहले भी उसके गुरु को न पसंद करने वालों को पड़ोसी मुल्क जाने की सलाह दी थी। उस वक्त का फायदा ये था कि उसके गुरु ने चेले को अपने खेमे में ले लिया, इस बार भी फायदा होना ही होगा, बाद में होगा। घबड़ू को ये आइडिया उस वक्त भी आया था, जब एक नेताजी ने कहा था कि वो अपनी मैडम के लिए जान तक दे सकते हैं।

मैडम को उनकी चापलूसी मतलब स्वामीभक्ति इतनी पसंद आई कि ए ग्रेड कैटेगरी में शामिल कर लिए गए। भले ही पार्टी का बंटाधार हो गया, पोस्ट बदल दी गई हो, लेकिन मैडम जी का उनके प्रति प्यार खत्म नहीं हुआ। सच तो ये है कि मैडम के लिए जितने लोगों ने स्वामीभक्ति दिखाई और जी हुजूरी की, सभी को उच्च पद प्राप्त हुए। सेवा का मेवा खूब रगड़ा उन्होंने। वही लोग कड़ी निंदा कर रहे हैं। आखिर मैडम को आगे भी तो खुश रखना है।

खैर घबड़ू को मिल गया नया आइडिया, सो घबड़ू ने सोचा कि अपने मालिक के प्रति वफादारी दिखाकर प्रमोशन पाने का यही शानदार मौका है।
घबड़ू रोज की तरह दुकान पर काम कर रहा था। एक ग्राहक आया, शिकायती लहजे में बोला साह जी सामान में खोट था, माल अच्छा नहीं दिया आपने, गलत बात है ये। घबड़ू तो स्वामीभक्ति दिखाने की ताव में था ही। साह जी कुछ बोलते उससे पहले ही पटककर चढ़ बैठा ग्राहक पर और बोला मेरे मालिक को आंख दिखाता है। तुझे मेरे मालिक का माल नहीं पसंद आ रहा है तो भाग जा पड़ोस की दुकान में किसी ने तुझे मना नहीं किया है। साह जी कुछ कह पाते उससे पहले ही घबड़ू ने ग्राहक को दो चांटो का स्वाद भी चखा चुका था। साह जी अपनी गद्दी से कूदकर आए और को डपटते हुए ग्राहक के पैर पकड़ लिए। ग्राहक अपने मुखारबिंद से साह जी और घबड़ू की मां बहन को एक करता हुए देख लेने की धमकी के साथ वहां से निकला।

साह जी घबड़ू पर पिल पड़े तो जवाब मिला कि कोई उन पर आंख दिखाए घबड़ू बर्दाश्त नहीं कर सकता। अब साह जी क्या करते आखिर घबड़ू ने उनकी स्वामीभक्ति के लिए ऐसा किया था। चाहकर भी घबड़ू को कुछ न कह सके। घबड़ू को लगा कि तीर निशाने पर लगा है अब मालिक की दया दृष्टि उस पर बरसेगी जरूर। ग्राहकों का सिलसिला लगा रहा। थोड़ी देर बाद एक और साह जी से माल की समय से डिलीवरी न होने की शिकायत करने लगा। वो साह जी पर चढ़ा ही जा रहा था। घबड़ू के सामने एक और सुनहरा मौका था, उसे फिर पड़ोस जाने की सलाह देने वाले और अपनी जान लुटाने वाले नेताओं का मंत्र याद आने लगा। इस बार भी घबड़ू ने ग्राहक को जमकर पेला।

साह जी के मना करने के बावजूद वो ग्राहक को लतियाता रहा और पड़ोस की दुकानों में जाने की सलाह देता रहा। साह जी के सब्र का बांध टूट गया। घबड़ू के पीठ पर चढ गए और मुक्केबाजी की प्रतियोगिता में जुट गए। दुखी मन से घबड़ू ने कहा कि मैं आप के लिए यहां अपनी जान की बाजी लगा रहा हूं और मुझे ही दिए जा रहे हैं। साह जी ने कहा— तेरे इस करतूत से तो मेरे सभी ग्राहक भाग जाएंगे, भाग यहां से अपनी स्वामिभक्ति लेकर, नहीं चाहिए तेरी स्वामीभक्ति।

घबड़ू आंखों में आंसू भर कर दुकान से निकला, नेताजी की सीख उस पर भारी पड़ गई। वो सोच रहा था कि नेताजी ऐसा बोलें तो उनकी पौ बारह और यहां तो वो नौकरी से गया। आखिर गलती हुई कहां? उसने भी तो वही किया था जो नेताजी ने किया था, फिर नेताजी कैसे बच गए?

धर्मेंद्र केशरी

No comments:

Post a Comment