Wednesday, January 28, 2009

पैसा सिर्फ पैसा नहीं है

आजकल एक विज्ञापन टीवी पर छाया हुआ है। ‘मेरे देश में पैसा सिर्फ पैसा नहीं हैज्। कितनी गूढ़ बात कही गई है इस विज्ञापन के जरिए। सही बात है हमारे देश में पैसा सिर्फ पैसा कहां है। ये तो माई-बाप है। इसके बिना गुजारा नहीं होना। यकीन नहीं आता तो रामालिंगा राजू से पूछ लो। पहले तो भाई साहब ने अपनी साख बनाई। देश में ही नहीं विदेश में भी। पैसे से तिजोरी भरते गए। जब कुबेर का खजाना भर गया तो पलट गए। सात हजार करोड़ पचा गए डकार भी नहीं ली।

दिवालिया घोषित कर लिया। पैसे की माया ने ऐसा भरमाया कि लाखों की उम्मीद भी डकार बैठे। पैसा सिर्फ पैसा नहीं रहा इनके लिए, मक्कारी और धोखेबाजी भी बन गया। जब माया की बात चली है तो मायावती को कैसे भूला जा सकता है। पैसा सिर्फ पैसा ही नहीं ‘चंदाज् भी है। भले ही उस ‘चंदेज् के लिए देनदार को अपनी जान तक क्यों न गंवानी पड़े। मंदी के दौर में भी माया ने दुगुनी ताकत से माया को अपनी ओर खींचा है। पैसे की कीमत बाबुओं, अफसरों और अधिकारियों से पूछो। कितनी मुश्किल से कई जगह बंटते-बंटते उनके जेबों में भी पहुंचती है। फिर अब तो ‘खुफिया नजरोंज् से बचकर भी इस काम को अंजाम देना पड़ता है। पैसा सिर्फ पैसा नहीं ‘चक्करघिन्नीज् भी है। रिश्तों की रंगोली पैसों से ही बनती है।

गर्लफ्रेंड को गिफ्ट देना है तो पॉकेट में मनी भी होनी चाहिए और ‘पॉकेट मनीज् से काम चलना नहीं है। चाहिए ढेर सारा पैसा। यारों से यारी भी पैसे से ही निभती है। पैसों के लिए ही भाई, भाई का गला काटकर खून की रंगोली सजा रहा है। अपने नेताओं से बढ़िया पैसों की महिमा का बखान भला कौन कर पाएगा। पूरे बगुला भगत होते हैं। चुपचाप, पानी में एक टांग पर खड़े ध्यानमग्न, लेकिन जसे ही पैसों की गंध मिलती है झपट पड़ते हैं, ये भी नहीं देखते कि कहां से खा रहे हैं। जनता का पैसा खाते हैं तो कुछ समझ में भी आता है, जानवरों और मुर्दो को भी नहीं छोड़ते हैं। भैंसों का चारा तक पचा लेते हैं। यहां का पैसा विदेशों की तिजोरियों में बंद कर मर जाते हैं।

बस, बेचारा किसान और गरीब ही इन पैसों की कीमत नहीं समझता और गरीबी और उधारी के बोझ तले अपनी जान दे देता है। उसे पैसों की कीमत समझ में भी कैसे आएगी, उसके पास पैसा तो है ही नहीं। कभी कोई इनसे पूछे तो बताएंगे ‘मेरे देश में पैसा सिर्फ पैसा नहीं है।

धर्मेद्र केशरी

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